Mnrega: महात्मा गांधी नेशनल रूरल गांरटी एक्ट यानी मनरेगा... देश की ग्रामीण आबादी को रोजगार की गांरटी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने 2 फरवरी 2006 को इस योजना को लागू किया था. कांग्रेस ने अपनी फ्लैगशिप योजना नरेगा को पहले इसे संसद में कानून के तौर पर पारित किया गया. वर्ष 2006 से 2023 तक ये योजना 17 साल पूरे कर चुकी है. इस सफर में नरेगा का नाम मनरेगा भी हुआ तो योजना के नाम कई उपलब्धियां भी रही. वहीं इस सफर में योजना में कई दाग भी लगे. कांग्रेस शासन काल में नरेगा देश की ग्रामीण आबादी को गांव में गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराने के लिए चर्चित रही, लेकिन कांग्रेस शासन काल में ही योजना की खामियों ने भी खूब सुर्खियां बटोरी.
मनरेगा योजना की इन खामियों से गांव स्तर भ्रष्टाचार के कई मामले भी सामने आए, जिसको लेकर देश में राजनीतिक नूरा-कुश्ती भी हुई. हालांकि इस फ्लैगशिप योजना को लागू करने वाली कांग्रेस को वक्त की चाल और जनमत ने केंद्र की सत्ता से बाहर कर दिया और इसी वक्त की चाल और जनमत ने केंद्र की सत्ता पर बीजेपी को काबिज किया, जिस पर मनरेगा को नजरअंदाज करने के आरोप भी लगे. इसी क्रम में किसान तक ने मोदी सरकार के कार्यकाल में मनरेगा मे हुए बदलावों की पड़ताल की है.
किसान तक ने मोदी सरकार के कार्यकाल में मनरेगा में हुए बदलावों की पड़ताल उत्तर प्रदेश, झारखंड और राजस्थान से की है, जिसके तहत कांग्रेस और बीजेपी शासन काल की तुलना करते हुए मनरेगा में जाॅब कार्ड बनाने की व्यवस्था, जाॅब कार्ड से काम आवंट, भुगतान में पारदर्शिता, काम के घंटे, काम की निगरानी, शिकायत का सिस्टम, शिकायत के निपटारे की व्यवस्था जैसे विषयों पर पड़ताल की गई है. ये विषय इसलिए चुने गए हैं क्याेंकि मनमोहन सरकार के दौरान इन्हीं विषयों से जुड़ी खामियों से मामले सामने आते हैं.
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मसलन, अपात्र का जाब कॉर्ड बनाकर दस्तावेजों में काम का फर्जी आवंटन, गलत काम को दिखाकर फर्जी कार्डधारी को भुगतान जैसे मामले सुर्खिया बनते रहे हैं. यहां ये जानना जरूरी है कि ग्रामीण विकास और रोजगार राज्यों का विषय है, लेकिन मनरेगा के लिए केंद्र सरकार फंड आंवटित करती है.
केंद्र की मोदी सरकार में यूपी के अंदर मनरेगा में हुए बदलावों की पड़ताल किसान तक के न्यूज एडिटर निर्मल यादव ने की है. उन्होंने यूपी सरकार में उपायुक्त मनरेगा रामअवतार से बातचीत कर मनरेगा में हुए बदलावों को समझने की काेशिश की है.
वर्ष 2014 से पहले और मौजूदा साल 2023 में मनरेगा जॉब कार्ड बनाने की व्यवस्था की जानकारी देते हुए यूपी में मनरेगा उपायुक्त राम अवतार कहते हैं कि पहले किसी भी मजदूर को जॉब कार्ड बनवाने के लिए ग्रामीण विकास अधिकारी के समक्ष आवेदन करना पड़ता था, लेकिन अब आवेदन की प्रक्रिया को ऑफ लाइन के साथ ऑनलाइन भी कर दिया गया है, जिसके तहत यह अनिवार्य किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति मनरेगा के जॉब कार्ड के लिए व्हाट्स एप पर भी आवेदन करता है तो 15 दिन में उसका जॉब कार्ड बनाना होगा. ऐसा नहीं होने पर सरकार को उसे अतिरिक्त अवधि के बोनस के रूप में निर्धारित राशि का भुगतान करना होगा.
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वहीं जाॅब कार्ड बनाने के नियम में हुए अन्य बदलावों की जानकारी देते हुए वह कहते हैं कि पहले गांव के प्रधान की सिफारिश पर ही जॉब कार्ड बन जाता था, लेकिन अब इसे आधार से लिंक कर दिया गया है.
यूपी में मनरेगा उपायुक्त राम अवतार कहते हैं कि पहले मनरेगा में काम का एस्टीमेट बनाने के लिए मैनुअल प्रणाली थी. अब इसे एक सॉफ्टवेयर की मदद से तैयार किया जाता है. जिससे फर्जी कामों को मनरेगा में दर्शाना बंद हुआ है.मसलन, पहले प्रधान की सिफारिश पर काम पूरा होने की पुष्टि होती थी, अब इसके लिए तीन स्तरीय जियो टेगिंग प्रणाली अपनाई जाती है. पहली जियो टैगिंग काम शुरू होने से पहले, दूसरी काम के दौरान और तीसरी जियो टैगिंग काम पूरा होने पर होती है.
यूपी में मनरेगा में हुए बदलावों की जानकारी देते हुए मनरेगा उपायुक्त राम अवतार कहते हैं कि पहले किसी मजदूर के काम काे मापने का मानक दिहाड़ी मजदूरी था, अब काम का मानक क्षेत्रफल को बनाया गया है. इसमें हर दिन के हिसाब से मजदूर के लिए तय कर दिया जाता है कि उसे कितने वर्ग मीटर तक खुदाई या अन्य कोई काम करना है. इसके आधार पर मनरेगा मजदूर का एक कार्यदिवस मान लिया जाता है. इस प्रकार पहले मजदूरों को ज्यादा काम करने के एवज में कम भुगतान होता था, मगर अब जितना काम उतना भुगतान होता है.
यूपी सरकार में मनरेगा उपायुक्त राम अवतार कहते हैं कि पहले मजदूरों की हाजिरी मस्टर रोल के जरिए मनरेगा मेट लगाते थे. अब एनएमएमएस एप के जरिए मनरेगा साइट के साथ जियो टैगिंग करके मजदूर की हाजिरी लगती है. तो वहीं पहले प्रधान के माध्यम से मस्टर रोल के आधार पर मजदूरी का भुगतान होता था, लेकिन अब डीबीटी के माध्यम से भुगतान होने के कारण प्रक्रिया पारदर्शी बनी है और अब पेमेंट भी जल्दी हो जाता है.
मनरेगा उपायुक्त राम अवतार किसान तक से बातचीत में कहते हैं कि पहले मनरेगा में किसी मजदूर की शिकायत का निस्तारण 45 दिन के भीतर करना अनिवार्य था, लेकिन अब शिकायत करने के लिए ऑनलाइन व्यवस्था सीपी ग्राम पोर्टल पर की गई है. इस पर 30 दिन के भीतर शिकायत का निस्तारण करना अनिवार्य कर दिया गया है.
झारखंड के अंदर मनरेगा में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद कितना बदलाव हुआ, मोदी सरकार से पहले क्या व्यवस्था थी, इसकी पड़ताल किसान तक के वरिष्ठ संवाददाता पवन सिंह राठौर ने की है. उन्होंने झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर से इस मामले को लेकर बातचीत की है.
झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर ने बातचीत में बताया कि राज्य में मनरेगा जॉब कार्ड बनाने की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 से पहले जॉब कार्ड बनाने की जो व्यवस्था थी, आज भी उसी पर काम होता है. जॉब कार्ड बनाने के लिए आवेदक को ग्राम सभा, पंचायत भवन या फिर प्रखंड मुख्यालय में जाकर रोजगार सेवक से मिलकर आवेदन देना होता है. आवदेन के बाद आवेदक को तुरंत ही जॉब कार्ड दे दिया जाता है.
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जॉब कार्ड मिलने के बाद आवेदक ग्राम सभा में जाकर या रोजगार सेवक,मनरेगा मेट, या प्रखंड मुख्यालय में जाकर 100 दिनों के लिए रोजगार की मांग कर सकता है.
झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर ने बातचीत मनरेगा के तहत काम के आवंटन की जानकारी देते हुए बताया कि झारखंड सरकार ने वित्त वर्ष 2022-23 में मनरेगा के तहत 9 करोड़ मानव दिवस का लक्ष्य दिया था, लेकिन इस अवधि में मनरेगा के तहत 936 करोड़ मानव दिवस पर कार्य किया गया. उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति एक दिन में जितना भी कार्य करता है, उसे मानव दिवस कहते हैं. इसमें काम के घंटे नहीं काम के दिन गिने जाते हैं. 2014 से पहले भी यही नियम लागू था, इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा कि मनरेगा में पहले यह व्यवस्था थी की काम मांगने पर मजदूर को 100 दिनों का काम मिलेगा, लेकिन 2019 के बाद झारखंड सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए राज्य के सुदूर इलाकों में 150 मानव दिवस सृजित करने का फैसला किया था, जो अभी चल रहा है.
झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर किसान तक से बातचीत में कहते हैं कि मनरेगा में काम के घंटे की गिनती नहीं होती है बल्कि मानव दिवस निर्धारित किए जाते है, जिसके तहत किसी काम को पूरा करने के लिए दिनों की समयसीमा निर्धारित की जाती है.साथ ही वह बताते हैं कि मनरेगा में कभी भी मशीन से काम करने की इजाजत नहीं है. इसमें शुरुआत और अभी में कोई बदलाव नहीं आया है.
ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर किसान तक से बातचीत में कहते हैं कि पहले शिकायतों लिए मनरेगा मजदूर को चिट्ठी लिखनी पड़ती थी, इसलिए शिकायत का निपटारा देरी से होता था, हालांकि एक टॉल फ्री नंबर भी था, लेकिन मजदूरों के बीच जागरूकता का अभाव था. वहीं वह आगे बताते हैं कि साल 2014 के बाद डिजिटलाइजेशन हुआ, इसके बाद से सोशल मीडिया और टॉल फ्री नंबर के जरिए शिकायत आती हैं, जिसका निपटारा 24 घंटे के अंदर ही हो जाता है. टॉल फ्री नंबर में शिकायत मिलने के बाद संबंधित पंचायत के रोजगार सेवक से बात करके पूरी जानकारी हासिल की जाती है और फिर मनरेगा जाब कॉडीधारी के पास 24 घंटे के अंदर फोन करके उनके शिकायत का समाधान किया जाता है. यह 2014 के बाद से हो रहा है.
मनरेगा में हुए बदलावों की जानकारी देते हुए झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर कहते हैं कि साल 2017 से जियो टैगिंग की व्यवस्था शुरु हुई है. इससे पहले यह व्यवस्था नहीं थी. इसका फायदा यह हुआ कि मनरेगा के तहत किसी भी योजना पर काम पूरा होता है तो काम से पहले और काम के बाद की तस्वीर अपलोड की जाती है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है सभी योजनाओं की जानकारी तुरंत मिल जाती है. इससे समय पर योजनाओं की जानकारी मिल जाती है. जियो टैगिंग के तहत किसी भी योजना की जानकारी सीआईबी सिटीजन इंफोर्मेशन बोर्ड में दी जाती है.
मनरेगा में हुए बदलावों की जानकारी देते हुए झारखंड सरकार में ग्रामीण विकास विभाग के सचिव चंद्रशेखर कहते हैं कि मनरेगा मजदूरी को भुगतान अब सीधे बैंक खातों में किया जाता है. जिसके तहत सबसे पहले मजदूरों का केवाईसी अपडेट कराया जाता है. इसके बाद उनके अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए जाते हैं.उन्होंने बताया कि बिना केवाईसी मनरेगा मजदूरों का पेमेंट नहीं होता है.मजदूरों को अपने आधार को अपने बैंक खातों से जोड़ना पड़ता है.
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद राजस्थान में मनरेगा में क्या बदलाव हुए हैं और इससे पहले मनरेगा के नियमों की क्या व्यवस्था थी, इसकी पड़ताल किसान तक के वरिष्ठ संवाददाता माधव शर्मा ने की है. उन्होंने राजस्थान सरकार में एक्सईएन अरविंद सक्सेना से इस मामले को लेकर बातचीत की है.
मनरेगा जाॅब कार्ड बनाने के नियमों को लेकर मनरेगा में राज्य स्तर के एक्सईएन अरविंद सक्सेना से किसान तक से बातचीत में कहा कि वर्ष 2014 से पहले भी जॉब कार्ड ऑनलाइन बनते थे और अब भी ऑनलाइन ही बन रहे हैं. हालांकि वह जोड़ते हैं कि वर्ष 2010 से ई- जॉब कार्ड बनना शुरू हुए थे.
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वह आगे कहते हैं कि इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति ऑफलाइन जॉबकार्ड बनवाता है तो उसकी प्रक्रिया पहले की तरह ही है. जॉब कार्ड बनाने के लिए व्यक्ति को ग्राम सभा या पंचायत में जाकर रोजगार सेवक को आवेदन करना होता है. इसके बाद जॉब कार्ड जारी कर दिया जाता है. सक्सेना बताते हैं कि जॉब कार्ड से काम का आवंटन भी पहले की तरह हो रहा है.
किसान तक से बातचीत में एक्सईएन अरविंद सक्सेना कहते हैं कि मनरेगा में तकनीकी बदलाव उनकी शुरूआत 2010 में हो गई थी. धीरे-धीरे तकनीक का इस्तेमाल बढ़ा है. जैसे पहले काम की जियो टेगिंग काम पूरा होने के बाद ही होती थी, लेकिन अब तीन स्तर पर जियो टैगिंग हो रही है. पहली काम शुरू होने से पहले, दूसरी काम के दौरान और तीसरी काम पूरा होने के बाद.
किसान तक से बातचीत में एक्सईएन अरविंद सक्सेना कहते हैं कि मनरेगा में होने वाले भुगतान को लेकर पारदर्शिता बढ़ी है. वह कहते हैं कि साल 2010 के बाद से डीबीटी के माध्यम से पेमेंट हो रहा है, लेकिन अब आधार बेस्ट पेमेंट सिस्टम से अधिक लोगों को भुगतान किया जा रहा है. फिलहाल दोनों तरीके चल रहे हैं, लेकिन सरकार पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एबीपीएस (आधार बेस्ट पेमेंट सिस्टम) को बढ़ावा दे रही है. ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी व्यक्ति के नाम पर कोई अन्य पैसा नहीं उठा रहा. फिलहाल राजस्थान में 255 रुपये प्रति मानव दिवस मजदूरी है.
किसान तक से बातचीत में एक्सईएन अरविंद सक्सेना कहते हैं कि मनरेगा में काम के घंटों में कोई बदलाव नहीं हुआ है. काम के घंटे पहले की तरह आठ घंटे ही हैं. इसमें दिन में एक घंटे का लंच ब्रेक दिया जाता है. यही सिस्टम पहले भी लागू था. हालांकि काम पूरा होने के बाद अपने काम की नपती करा कर जा सकते हैं, लेकिन अगर काम (टास्क) पूरा नहीं है तो आठ घंटे तक रोका जा सकता है. पहले भी यही सिस्टम था.
किसान तक से बातचीत में एक्सईएन अरविंद सक्सेना कहते हैं कि मनरेगा में शिकायत के एक सिस्टम पहले से बना हुआ है, लेकिन अब इस सिस्टम को थोड़ा फास्ट कर दिया है. अब शिकायत कई तरह से की जा सकती है. ऑनलाइन सिस्टम भी शुरू किया गया है. इसके अलावा शिकायतों का निपटारा सात दिन में करने का प्रावधान है, लेकिन शिकायतों का निपटारा समय पर नहीं हो रहा है. यह बड़ी समस्या है.
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