दुनिया जलवायु संकट का सामना कर रही है, जिसका असर कृषि क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है. अब केंद्र सरकार ने भी आगामी वर्षों को लेकर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से पैदा होने वाली समस्याओं को लेकर बड़ा अपडेट दिया है. केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि आगामी सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश में वृद्धि होने की संभावना है. अगर ऐसा होता है तो इससे खेती योग्य जमीन की मिट्टी के क्षरण (कटाव) की आशंका है. साथ ही इससे खारे पानी वाली जमीन बढ़ने की संभावना है.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सदन में यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मिट्टी क्षरण (Soil Degradation), बारिश पैटर्न के प्रोजेक्शन और फसल पैदावार पर क्लाइमेट चेंज के कारण पड़ने वाले असर के आकलन को लेकर सिमुलेशन मॉडलिंग स्टडी की है.
'बिजनेसलाइन' की रिपोर्ट के मुताबिक, इस स्टड़ी में यह जानकारी निकलकर सामने आई है कि खरीफ सीजन के दौरान होने वाली बारिश में 2050 4.9 से 10.1 प्रतिशत और 2080 तक 5.5 से 18.9 प्रतिशत की लिमिट में बढ़ोतरी होने का अनुमान है. वहीं, रबी सीजन की बारिश में 2050 तक 12 से 17 प्रतिशत और 2080 तक 13 से 26 प्रतिशत की लिमिट तक बढ़ोतरी होने के आसार हैं.
मंत्री ने जानकारी दी कि बारिश में बढ़ाेतरी होने से 2050 तक खेती की जमीन को सालाना 10 टन प्रति हेक्टेयर मिट्टी का नुकसान होगा. वहीं, क्लाइमेट चेंज के कारण साल 2030 तक खारेपन से जूझ रहा क्षेत्र 6.7 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 11 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच सकता है.
अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन के असर को रोकने के उपाय नहीं किए जाते हैं तो ऐसी स्थिति में साल 2025 तक बारिश आधारित धान की पैदावार में 20 प्रतिशत गिरावट हो सकती है और 2080 तक यह गिरावट 1047 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. वहीं, सिंचित चावल की पैदावार साल 2050 तक 3.5 प्रतिशत घट सकती है और 2080 इसके 5 प्रतिशत घटने की आशंका है.
जलवायु परिवर्तन का गेहूं की पैदावार पर भी बुरा असर पड़ने की संभावना है. इस स्थिति में 2050 में गेहूं का उत्पादन 19.3 प्रतिशत घट सकता है और 2080 में 40 प्रतिशत कम हो सकता है. वहीं, खरीफ मक्का की पैदावार 2050 में 10 से 19 प्रतिशत गिर सकती है और 2080 में 20 प्रतिशत से ज्यादा घट सकती है.
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