हरियाणा के सैकड़ों कृषि कर्मचारी सैलरी की बाट जोह रहे हैं. वे इस इंतजार में हैं कि आज नहीं तो कल सैलरी आ ही जाएगी. ऐसा देखते-देखते 7 महीने बीत गए, मगर खाते में कोई पैसे नहीं आए. इसमें कृषि विभाग के असिस्टेंट टेक्नोलॉजी मैनेजर (ATMs) और ब्लॉक टेक्नोलॉजी मैनेजर (BTMs) शामिल हैं.
समाचार पत्र ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार की ओर से चलाई जाने वाली एटीएमए (कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी) योजना के तहत कृषि विभाग में कार्यरत सहायक प्रौद्योगिकी प्रबंधक (एटीएम) और ब्लॉक प्रौद्योगिकी प्रबंधक (बीटीएम) पिछले करीब सात महीने से वेतन का इंतजार कर रहे हैं. उनके वेतन का 60 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार देती है, जबकि बाकी 40 फीसदी राज्य सरकार देती है.
कर्मचारियों ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच तालमेल की कमी के कारण उनका वेतन अटका हुआ है और पिछले साल सितंबर से उन्हें भुगतान नहीं किया गया है. आत्मा स्टाफ हरियाणा के बैनर तले कर्मचारियों ने इस महीने की शुरुआत में अपने लंबित वेतन के संबंध में मुख्यमंत्री हरियाणा को एक ज्ञापन सौंपा था और राज्य वेतन नीति बनाने की मांग की थी ताकि कर्मचारियों को वेतन पाने के लिए महीनों तक इंतजार न करना पड़े.
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ज्ञापन में कर्मचारियों ने बताया कि प्राकृतिक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, फसल अवशेष प्रबंधन, जल शक्ति अभियान, फसल कटाई प्रयोग, मेरा पानी मेरी विरासत, पीएम किसान निधि, पीएम फसल बीमा समेत अलग-अलग सरकारी योजनाओं में ठेका कर्मचारियों की अहम भूमिका है, लेकिन केंद्र से बजट में देरी के कारण कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पा रहा है और उन्हें घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है.
अंबाला में एक सहायक तकनीकी प्रबंधक (एटीएम) ने कहा, "हम विभाग के लिए किसानों से जुड़ी सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार, फसल कटाई प्रयोग, मिट्टी के नमूने लेना और कई तरह के सर्वेक्षण समेत सभी फील्ड काम करते हैं और विभाग और किसानों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी होने के बावजूद कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है. हमने आला अधिकारियों से बार-बार अनुरोध किया है कि वेतन समय पर दिया जाए, लेकिन कुछ नहीं हुआ."
एक अन्य कर्मचारी ने कहा, "केवल हम ही जानते हैं कि वेतन के बिना हम कैसे काम चला रहे हैं. अगले महीने, नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो जाएगा और अन्य अभिभावकों की तरह हमें भी अपने बच्चों के लिए किताबें खरीदने और उनके स्कूल और एडमिशन फीस का भुगतान करने के लिए पैसे की जरूरत है. हम नियमित नौकरी नहीं मांग रहे हैं, लेकिन कम से कम हमें समय पर वेतन तो मिलना चाहिए. हमें राज्य की ओर से नियुक्त किया गया है, इसलिए यह तय करना राज्य का नैतिक कर्तव्य है कि कर्मचारियों को हर महीने वेतन मिले."
इस बारे में आत्मा ने कहा कि इस योजना के तहत सालाना बजट 22 करोड़ रुपये है और राज्य में लगभग 450 कर्मचारी इस योजना के तहत काम कर रहे हैं. सरकार को एक राज्य वेतन नीति तैयार करनी चाहिए और यह तय करना चाहिए कि कर्मचारियों को केंद्र से देरी होने पर भी उनका वेतन मिले और वेतन का भुगतान करने के लिए अपने इमरजेंसी फंड का इस्तेमाल करें.
एक कर्मचारी ने कहा, "हमें बताया गया है कि विभाग कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने के लिए कुछ फंड का उपयोग करने की कोशिश कर रहा है. हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले वेतन दिया जाए."
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इस बीच, अंबाला के कृषि उपनिदेशक डॉ. जसविंदर सैनी ने कहा, "ATMA योजना के तहत कर्मचारियों को अभी तक उनका वेतन नहीं मिला है और हमने इस मामले को बड़े अधिकारियों के सामने उठाया है. हमें उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही उनका पेंडिंग वेतन मिल जाएगा."
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