आंध्र प्रदेश के पल्यावानापल्ली गांव के कुछ किसानों ने खेती के लिए नया तरीका ईजाद किया है. किसान वाटर शेयरिंग फॉर्मूला से खेती कर रहे हैं. इससे पानी की बर्बादी भी नहीं हो रही है और खेती में उपज भी ज्यादा हो रही है. वाटर शेयरिंग फॉर्मूला को बेहतर तरीके से संचालित करने के लिए किसानों ने वाटरयूजर ग्रुप बनाया है. किसानों ने इसके लिए एक समझौता किया है. जिसके तहत इससे जुड़ा कोई भी किसान 10 साल तक नया बोरवेल नहीं लगा सकता. किसानों के इस नए प्रयोग से इलाके में भूजल के लेवल में सुधार हुआ है.
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक पल्यावानापल्ली गांव में किसान वाटर शेयरिंग फॉर्मूला को अपनाकर खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि पहले खेती के लिए पानी कम मिलता था. जिससे खेती करने में दिक्कत आती थी. इसकी वजह से उपज भी कम होती थी. लेकिन अब पानी साझा करने से फायदा हो रहा है. उनका कहना है कि इससे खेती में भी फायदा हो रहा है और भूजल लेवल में भी सुधार हो रहा है.
पल्यावानापल्ली गांव के 16 किसान इस प्लान से जुड़े हैं. इन सभी किसानों के कॉमन कनेक्शन हैं. गांव में 38 एकड़ जमीन पर साझा बोरेवेल बिछाए गए हैं. इस गांव में इस कार्यक्रम की शुरुआत साल 2012 में हुई थी. सबसे पहले इन किसानों एक वॉटर शेयरिंग ग्रुप बनाया. सभी किसानों 2500-2500 रुपए दिए और इसका रजिस्ट्रेशन कराया. सभी किसानों ने स्टाम्प पेपर पर समझौता किया कि वे एक दशक तक बोरवेल नहीं खोदेंगे. इन 16 किसानों में से 4 के पास बोरवेल है. जबकि 12 किसान बिना बोरवेल वाले हैं.
पल्यावानापल्ली गांव में 2200 फुट पाइट से खेतों को जोड़ा गया है. इस पाइप के जरिए पानी की सप्लाई होती है. इसका ज्यादा फायदा खरीफ की फसल के समय होती है. खरीफ के सीजन में बोरवेल किसान कॉमन पाइपलाइन से इस ग्रुप से जुड़े किसानों को पानी देते हैं. इसमें बुआई, फूल या फल आने और कटाई के समय पानी की जरूरत पड़ती है.
साल 2007 में हैदराबाद के वॉटरशेड सपोर्ट सर्विसेस एंड एक्टिविटीज नेटवर्क (वासन) ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की थी. आज इस प्रोग्राम से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के 73 गांव जुड़े हैं. रिपोर्ट के मुताबिक वासन के एक्जीक्यूटिव सेक्रेटरी ए. रवींद्र बताते हैं कि साल वासन ने वर्ल्ड बैंक और एपडीएमपी की मदद से इस प्रोग्राम की शुरुआत की थी. लेकिन अब लगातार इससे किसान जुड़ते गए. अब हालात ये हैं कि किसान खुद इस कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं. इसका फायदा भी हो रहा है. इन गांवों में भूजल स्तर में काफी सुधार हुआ है.
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