पिछले कुछ सालों में भारत और दुनिया के कृषि बाजारों में स्ट्रॉबेरी फल की मांग में भारी वृद्धि हुई है. भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती का कुल क्षेत्रफल लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसके स्वाद आकार और पोष्टिक तत्वों की वजह से इसकी मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है. अनुमान है कि वर्तमान में भारतीय किसान लगभग 1,500 से 2,000 हेक्टेयर भूमि पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती ज्यादातर पहाड़ी इलाकों जैसे नैनीताल, रानीखेत, महाबलेश्वर और पंचगनी में की जाती है.
भारत में स्ट्रॉबेरी की औसत पैदावार 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर के बीच है. इस फल की बढ़ती लोकप्रियता के कारण घरेलू बाजार में स्ट्रॉबेरी की मांग बढ़ती जा रही है. भारतीय कृषि बाज़ार मध्य पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में बड़ी मात्रा में स्ट्रॉबेरी का निर्यात करता है. ये सभी आंकड़े बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती भारतीय किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है. इसी कड़ी में आइए जानते हैं स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़ी जरूरी बातें और खाद डालने का सही समय.
स्ट्रॉबेरी ठंडे से हल्के तापमान में पनपती है. उनकी वृद्धि के लिए उपयुक्त तापमान सीमा 15 डिग्री सेल्सियस और 25 डिग्री सेल्सियस के बीच है. इसकी फसल अधिक गर्मी सहन नहीं कर पाती. इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती ज्यादातर भारत के पहाड़ी इलाकों में की जाती है. स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 5.5 और 6.5 के बीच पीएच स्तर वाली सूखी और दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए मिट्टी कार्बनिक पदार्थ से भरपूर होनी चाहिए और उसमें जल धारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए.
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स्ट्रॉबेरी की जड़ें उथली होती हैं. इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए किसानों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि इसकी जड़ों में ज्यादा पानी न भरें. हालांकि नियमित और नियंत्रित पानी देना आवश्यक है, लेकिन मिट्टी अत्यधिक गीली नहीं होनी चाहिए.
स्ट्रॉबेरी के पौधे बहुत नाजुक होते हैं इसलिए इन्हें नियमित रूप से खाद और उर्वरक देते रहना चाहिए. मृदा परीक्षण के अनुसार खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें. सामान्य भूमि के लिए भूमि की तैयारी के समय प्रति एकड़ 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद, नाइट्रोजन 75-100 किग्रा. 40-120 किग्रा. फास्फोरस एवं 40-80 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए. रोपाई के बाद उपरोक्त घुलनशील उर्वरक ड्रिप सिंचाई विधि से देना चाहिए.
रोपण के तुरंत बाद पौधों की सिंचाई ड्रिप या स्प्रिंकलर से करें. नमी को ध्यान में रखते हुए नियमित अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. स्ट्रॉबेरी में फल आने से पहले माइक्रो स्प्रिंकलर से सिंचाई कर सकते हैं. फल आने के बाद ड्रिप विधि से ही सिंचाई करें, ताकि फल खराब न हों.
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