किसान अपनी खेती के लिए जो खाद, बीज और कीटनाशक खरीद रहे हैं वो असली हो इसकी कोई गारंटी नहीं है. यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि एक साल में एग्री इनपुट के 14,840 सैंपल फेल हुए हैं. देश में बड़े पैमाने पर किसानों को चूना लगाने वाले लोग सक्रिय हैं. लेकिन, जांच की व्यवस्था न होने और लचर कानून की वजह से ऐसे लोगों पर लगाम नहीं लग पा रही है. एग्री इनपुट की जांच करना राज्यों का काम है. राज्यों के कृषि विभाग अपने-अपने क्षेत्र में बीज, उर्वरकों और कीटनाशकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इंस्पेक्टरों की नियुक्ति करते हैं. लेकिन, ये इंस्पेक्टर किसानों की मदद की बजाय कुछ और ही करते रहते हैं. यदि बीज, खाद और कीटनाशकों का कोई भी नमूना नकली या दोयम दर्जे का पाया जाता है तो कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन ऐसा करने वाले लोग अक्सर 'सेटिंग' करके छूट जाते हैं. जिससे किसानों को नुकसान होता है.
बड़ा सवाल यह है कि किसानों के साथ जो इतनी बड़ी ठगी हो रही है आखिर उसके जिए जिम्मेदार कौन है. क्या सरकार, इंडस्ट्री या फिर खुद किसान? दरअसल, अगर नकली एग्री इनपुट बेचने वालों के खिलाफ सख्त कानून बनाना चाहती है तो उसके खिलाफ इंडस्ट्री खड़ी हो जाती है. सरकार इनकी जांच के लिए अभी हर जिले में भी लैब नहीं बनवा पाई है. ऐसे में किसान करें तो क्या करें? नकली एग्री इनपुट बेचने वालों को सख्त सजा देने की बजाय जब जुर्माने पर छूट जाने का प्रावधान हो तो फिर कैसे किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले इस काले धंधे पर रोक लगेगी?
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नकली बीजों, कीटनाशकों और उर्वरकों की धोखाधड़ी रोकने और किसानों को सही एग्री इनपुट उपलब्ध करवाने के लिए नियमों और कानूनों की कमी नहीं है. लेकिन, उसका पालन नहीं होता. बड़े पैमाने पर छापेमारी और जांच की कार्रवाई नहीं चलती. कुछ जगहों पर एक्शन लेकर रस्म अदायगी कर दी जाती है. दोष साबित भी हुआ तो जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता है. इसीलिए बीज अधिनियम 1966, बीज नियम 1968, बीज नियंत्रण आदेश 1983, आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955, कीटनाशक अधिनियम 1964, कीटनाशक नियम 1971, उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के रहते हुए भी किसान नकली खाद, बीज और कीटनाशकों की समस्या से जूझ रहे हैं.
बहरहाल, अगर सिर्फ 2023-24 के दौरान ही नकली और दोयम दर्जे के खाद, बीज और कीटनाशकों के पकड़े जाने के मामले देखेंगे तो आपको हैरानी होगी.
1. वर्ष 2023-24 के दौरान 133,588 बीज नमूने लिए गए, जिनमें से 3,630 नमूने खराब पाए गए.
2. वर्ष 2023-24 के दौरान 1,81,153 उर्वरक नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 8,988 नमूने मानक विपरीत पाए गए.
3. वर्ष 2023-24 के दौरान 80,789 कीटनाशक नमूनों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 2,222 नमूने नकली पाए गए.
बहरहाल, अगर कोई किसान खरीदे गए खाद, बीज और कीटनाशक की जांच करवाना चाहे तो उसके आसपास लैब ही नहीं मिलेगी. इसकी तस्दीक आंकड़े खुद कर रहे हैं. केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार 20 जुलाई 2021 तक देश में सीड टेस्टिंग लैब की संख्या सिर्फ 126, फर्टिलाइजर क्वालिटी कंट्रोल लैब की संख्या 83 और पेस्टीसाइड टेस्टिंग लैब महज 74 थे. जिस देश में 140 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन है, 14.5 करोड़ किसान परिवार हैं वहां पर खाद, बीज और कीटनाशकों की जांच करने वाली इतनी कम लैब का होना चौंकाता है.
जब तक हर जिले में इन सब एग्री इनपुट की जांच के लिए लैब नहीं बनेगी और किसान बिल पर इनकी खरीद नहीं करेंगे तब तक नकली एग्री इनपुट बेचने वाले लोग भारत के किसानों और कृषि दोनों को बर्बाद करके पैसा कमाते रहेंगे. किसान नेता अनिल घनवत का कहना है कि कम से कम हर कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में खाद, बीज और कीटनाशकों की जांच करने की व्यवस्था हो. तब जाकर किसान इस समस्या से बच पाएंगे. जुर्गाना लगाकर छोड़ देने के प्रावधान को बदलकर नकली एग्री इनपुट बेचने वालों को जेल में सड़ाने का प्रावधान बनाना होगा, वरना यह सब नहीं रुकने वाला. लचर कानून की वजह से किसानों के साथ ठगी हो रही है.
एग्री इनपुट बनाने वाली कंपनियों की पैरोकारी करने वाले औद्योगिक संगठन इस बात का रोना रोते रहते हैं कि वो खुद मिलावटी खाद, बीज और कीटनाशकों के पीड़ित हैं. क्योंकि नकली या दोयम दर्जे की चीजों की बाजार में आपूर्ति होने की वजह से उन्हें नुकसान हो रहा है. लेकिन, जब कोई राज्य सरकार इसे लेकर सख्त कानून बनाने की बात करती है तो फिर यही संगठन उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं. महाराष्ट्र इसका बड़ा उदाहरण है.
महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को मिलावटी और नकली एग्री इनपुट से बचाने के लिए दिसंबर 2023 में एमपीडीए अधिनियम (Maharashtra Prevention of Dangerous Activities Act (MPDA) में संशोधन करके पांच विधेयक ड्राफ्ट किए थे. ताकि ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उसके पास अतिरिक्त शक्तियां आ जाएं. एग्रो केमिकल और सीड कंपनियों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. जबकि ये बिल मिलावटी, सब स्टैंडर्ड या गलत ब्रांड वाले बीज, उर्वरक और कीटनाशकों से किसानों को बचाने के लिए तैयार किए गए थे.
इंडस्ट्री के दबाव में वो बिल ठंडे बस्ते में डाल दिए गए. उद्योग संगठनों ने धमकी दी थी कि अगर इन्हें पास किया गया तो कई कंपनियां महाराष्ट्र से अपना कारोबार समेट लेंगी. दरअसल, अगर अगर ये अधिनियम पास हो जाते तो मिलावटी, अमानक या गलत ब्रांड वाले बीज, खाद या कीटनाशकों के उपयोग से फसल खराब होने, उपज कम होने या उससे किसानों को आर्थिक नुकसान होने पर संबंधित कंपनियों को किसानों को मुआवजा देना पड़ता.
इन अधिनियमों के उल्लंघन पर आरोपियों को खतरनाक व्यक्तियों, रेत तस्करों और कालाबाजारियों के समान माना जाता और उन पर मुकदमा दर्ज करके गिरफ्तार किया जाता. किसानों की शिकायत पर कंपनियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का भी प्रावधान था. यह कड़े प्रावधान किसानों के हितों की रक्षा कर सकते थे, लेकिन एग्री इनपुट बनाने वाली कंपनियों के उद्योग संगठनों ने ऐसा होने नहीं दिया.
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