आईएआरआई दीक्षांत समारोह में आईसीएआर द्वारा विकसित सब्जियों और फसलों की नई किस्में होंगी जारी

आईएआरआई दीक्षांत समारोह में आईसीएआर द्वारा विकसित सब्जियों और फसलों की नई किस्में होंगी जारी

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली का 61 वां दीक्षांत समारोह (convocation) राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम हॉल में आयोजित किया जाएगा. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आईसीएआर द्वारा विकसित धान, गेहूं, फल, मक्का, और कई सब्जियों की किस्में राष्ट्र को समर्पित करेंगे.

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आईएआरआई दीक्षांत समारोह में आईसीएआर द्वारा विकसित सब्जियों और फसलों की नई किस्में होंगी जारी कई फसलों की किस्में हुईं विकसित, फोटो साभार: pexels

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद देश की कृषि अनुसंधान और शिक्षा में उत्कृष्टता का प्रतीक रहा है. संस्थान ने न केवल कृषि अनुसंधान शिक्षा और विस्तार में प्रगति के लिए राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली का नेतृत्व किया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानव संसाधन विकास के लिए योगदान दिया है. संस्थान ने अफगानिस्तान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एएनएएसटीयू) कंधार और अफगानिस्तान तथा उन्नत कृषि अनुसंधान और शिक्षा केंद्र (एसीएआरई) येजिन कृषि विश्वविद्यालय म्यांमार की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली का 61 वां दीक्षांत समारोह (convocation) मनाया जा रहा है. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आईसीएआर द्वारा विकसित धान, गेहूं, फल, मक्का, और कई सब्जियों की किस्में राष्ट्र को समर्पित करेंगे. ऐसे में आइए जानते हैं इस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से-

ये होंगे कार्यक्रम में शामिल

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली का 61 वां दीक्षांत समारोह (convocation) राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर भारत रत्न श्री सी. सुब्रमण्यम हॉल में आयोजित किया जाएगा. इस कार्यक्रम में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ होंगे. केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी और शोभा करंदलाजे भी इस कार्यक्रम के दौरान सम्मानित अतिथि होंगे. इस अवसर पर डेयर के सचिव एवं महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कुलपति एवं निदेशक डॉ. ए. के. सिंह फाउंडर और संयुक्त निदेशक (शिक्षा) डॉ. अनुपमा सिंह, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डॉ. विश्वनाथन चिन्नसामी तथा संयुक्त निदेशक (प्रसार) डॉ. रविन्द्र पडारिया भी उपस्थित रहेंगे.

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फसलों की अनेक किस्म विकसित हुईं 

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि संस्थान के द्वारा विकसित धान, गेहूं, फल, मक्का, और कई सब्जियों की किस्में राष्ट्र को समर्पित करेंगे. इस साल शस्य फसलों में 16 किस्मों को विकास किया गया है. गेहूं में, एचडी 3406 और एचडी 3407 सहित 10 किस्में जारी की गईं जो कि पत्ती, तना और स्ट्राइप रस्ट की रक्षा करने वाले हैं. इसके अलावा एमएएस के माध्यम से विकसित एचडी 3411 को समय पर बुवाई वाली सिंचित स्थितियों के लिए जारी किया गया था. साथ ही एचडी 3369, एचआई 1650 (पूसा ओजस्वी), एचआई 1653 (पूसा जाग्रति), एचआई 1654 (पूसा अदिति), एचआई 1655 (पूसा हर्ष), एचआई 8826 (पूसा पौष्टिक) और एचआई 8830 (पूसा कीर्ति) को विभिन्न कृषि पारिस्थितिकी के लिए विकसित किया गया है. इस साल IARI ने चावल की दो शाकनाशी सहनशील (इमेजेयापायर) किस्मों पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985 को विकसित किया है. 

इन छात्रों को मिलेंगी डिग्रियां

इस कार्यक्रम में 402 छात्र डिग्रियां प्राप्त करेंगे जिनमें विदेशी छात्र भी शामिल हैं. इस अवसर पर छात्रों को मेरिट पुरस्कार भी दिए जाएंगे. आपको बता दें कि नई शिक्षा नीति के तहत आईएआरआई में 306 स्नातक (Graduate) छात्रों का पहला बैच और विभिन्न कार्यक्रमों में आउटरीच केंद्र शुरू किए गए हैं. आईएआरआई नई दिल्ली, आईएआरआई, झारखंड और आईएआरआई, असम में छात्रों को बीएससी कृषि (ऑनर्स) में भर्ती कराया गया है. IARI ने अपने सहयोगी संस्थानों के साथ मिलकर बीटेक (इंजीनियरिंग), बीटेक (जैव प्रौद्योगिकी) और बीएसएस सामुदायिक विज्ञान (ऑनर्स) के लिए यूजी कार्यक्रम भी शुरू किए है. पूसा के न‍िदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह ने बताया क‍ि अब यहां पर एग्रीकल्चर में ग्रेजुएशन भी करवाया जाएगा. इस सत्र से इसकी शुरुआत कर दी गई है. अब तक स‍िर्फ पीजी कोर्स होते थे. यह कृषि श‍िक्षा का हब बनेगा. 

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ये किस्में उत्तर-भारतीय मैदानी इलाकों में सीधी बुवाई धान की खेती के लिए उपयुक्त है. वर्ष 2022-23 के दौरान इन किस्मों से 34,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा मिली है. चने में पूसा जेजी 16 एमएएस की ओर से विकसित एक सूखी और सहनशील किस्म शुष्क क्षेत्रों के लिए जारी की गई है. इसके अलावा पूसा सरसों-34 कम इरूसिक अम्ल वाली एक उच्च उपज वाली किस्म भी जारी की गई है. साल 2023 को'अंतर्राष्ट्रीय श्रीअन्न वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. इस सन्दर्भ में संस्थान का प्रमुख ध्यान पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए बायोफोर्टिफाइड बाजरा की किस्मों के विकास पर है. चार बायो फोर्टिफाइड बाजरे की किस्में पीपीएमआई 1280 पीपीएमआई 1281 पीपीएमआई 1283 और पीपीएमआई 1284 (उच्च लौह और जस्ता सांद्रता के साथ) विकसित की गई.
 

वर्षा जल संरक्षण के ल‍िए पूसा ने अमृत जल सरोवर बनाया है.

बागवानी के लिए भी किस्में विकसित

बागवानी फसलों में गुलाब की दो किस्में (पूसा लक्ष्मी और पूसा भार्गव),गेंदा (पूसा पर्व और पूसा उत्सव), ग्लेडियोलस (पूसा रजत), गुलदाउदी (पूसा लोहित) और बोगनविलिया (पूसा आकांक्षा) की पहचान की गई. 

नरम बीज वाली अमरूद की दो किस्में पूसा आरुषि और पूसा प्रतीक्षा क्रमशः लाल और सफेद गूदे के लिए विकसित की गई हैं. इसके अलावा पपीते की पूसा पीत किस्म जारी की गई है जो गाइनोडाओसियस और अर्ध-बौनी है. उच्च उपज देने वाली सब्जियों की किस्मों में बैंगन की पूसा कृष्णा किस्म मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लिए और गाजर की पूसा प्रतीक राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के लिए चिन्हित की गई है.

इसके अलावा एआईसीआरपी (वीसी) की ओर से टमाटर संकर टीओएलसीवी-6 की पहचान की गई है जिसकी उपज क्षमता 70 टन/हेक्टेयर और यह लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधी भी है. सीएमएस प्रणाली का उपयोग करते हुए लाल गोभी का एक संकर पूसा लाल गोभी संकर -1 विकसित किया गया है. इसी प्रकार फूलगोभी (पूसा स्नोबॉल संकर-2-) और शिमला मिर्च (पूसा कैप्सिकम 1) की भी एक-एक किस्म जारी और सूचित की गई है. 

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एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल जिसमें फसल, डेयरी, मत्स्य, कुक्कुट पालन, बतख पालन, बारा, मधुमक्खी पालन, सीमा वृक्षारोपण, बायोगैस इकाई, वर्मी कम्पोस्ट शामिल हैं. पारंपरिक धान गेहूं प्रणाली की तुलना में उच्चतम उत्पादकता, तथा आय एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल से रोजगार में वृद्धि के साथ-साथ प्रति वर्ष 42 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ प्राप्त होता है. संस्थान ने शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) और जैविक खेती पर अध्ययन भी शुरू कर दिया. 

अमृत सरोवर से बचेगा पानी

डॉ. स‍िंह ने पूसा की ओर से बनवाए जा रहे अमृत सरोवर की व‍िज‍िट कराई. ज‍िसमें पूसा पर‍िसर और उसके र‍िसर्च खेतों का बार‍िश का पानी एकत्र होगा. यह पानी पहले नजफगढ़ ड्रेन में जाता था. यह 2.5 एकड़ का है. दावा है क‍ि इसमें भरे पानी से 300 एकड़ में तीन बार स‍िंचाई हो सकती है. इसकी जलधारण क्षमता 50 हजार क्यूब‍िक मीटर पानी की है. 

पूसा डीकम्पोजर की सूक्ष्मजीवी तकनीक धान के पुआल ठूंठों के प्रबंधन के लिए एक पर्यावरण अनुकूल समाधान है जिसका लाइसेंस 24 निजी फर्मों को दिया गया है. रोगजनकों को ऑन साइट पहचानने के लिए लीफ कर्ल वायरस और बकाने रोगजनक का पता लगाने के लिए डायग्नोस्टिक किट का विकास किया गया है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की प्रौद्योगिकियों का प्रसार अपने आउटरीच विस्तार कार्यक्रम के तहत देश के विभिन्न स्थानों पर किया जाता है.

एकीकृत ग्राम विकास कार्यक्रम राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के चयनित संस्थानों/राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और स्वैच्छिक संगठनों के साथ विभिन्न स्तरों पर काम किया जाता है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की सभी प्रदर्शित किस्मों ने सभी स्थानों पर स्थानीय किस्मों की तुलना में काफी अधिक उपज प्राप्त हुई. 

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