Seed Exhibition: बीज प्रदर्शनी में एक नहीं पूरे धान की 100 किस्मों का प्रदर्शन

Seed Exhibition: बीज प्रदर्शनी में एक नहीं पूरे धान की 100 किस्मों का प्रदर्शन

Seed Exhibition:बीज बैंक को किसानों के लिए एक बहुमूल्‍य संसाधन माना जाता है और विशेषज्ञों के अनुसार इससे दुनिया भर में खाद्य संकट को रोका जा सकता है. सदियों पहले, भारत में चावल की एक लाख से ज्‍यादा किस्में थीं. ये किस्में स्वाद, पोषण, कीट-प्रतिरोधक क्षमता और मौसम की अलग-अलग स्थितियों के अनुकूल होने की अद्भुत विविधता से युक्त थीं. ऐसे में इनके बीज आज जलवायु परिवर्तन के इस दौर में और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. 

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Seed Exhibition: बीज प्रदर्शनी में एक नहीं पूरे धान की 100 किस्मों का प्रदर्शनPaddy Seeds: धान के बीजों पर प्रदर्शनी का आयोजन (सांकेतिक तस्‍वीर)

दक्षिण भारत में सावन को 'आदि' के मौसम के तौर पर जाना जाता है. यह वह मौसम होता है जब किसान कई तरह की फसलों को बोते हैं और इस मौसम में उनके लिए बीजों की अहमियत भी बढ़ जाती है. चावल या धान दक्षिण के किसानों के लिए एक महत्‍वपूर्ण फसल है और पिछले दिनों इससे जुड़े एक अहम कार्यक्रम का आयोजन किया गया. बुवाई के मौसम के साथ ही एक बीज प्रदर्शनी का आयोजन कोयंबटूर में हो रहा है. इस प्रदर्शन में धान के बीजों की 100 से ज्‍यादा पारंपरिक किस्मों का प्रदर्शन हो रहा है. इस प्रदर्शनी का मकसद किसानों को आगामी फसल के लिए सही चुनाव करने में मदद मुहैया कराना है. 

हर रविवार को लगता है मेला 

अखबार द हिंदू ने पर्यावरण आंदोलन इयाल वागई की संस्थापक अलगेश्वरी एस के हवाले से लिाखा, 'जैसे ही बुवाई का मौसम शुरू होता है, हम पारंपरिक धान, बाजरा, देशी सब्जियों और और आलू जैसी कंद किस्मों के बीज लाना चाहते थे. इससे क्षेत्र के किसानों को कोंगु बेल्ट की मिट्टी और मौसम के अनुकूल सही बीज चुनने में मदद मिलेगी.' उनका कहना है कि यह महोत्‍सव क्षेत्र के किसानों को जैविक खेती और टिकाऊ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है. हर दूसरे रविवार को आयोजित होने वाला यह महोत्‍सव किसानों को ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए फल और सब्जियों, हरी सब्जियों, कोल्ड प्रेस्ड तेल, बाजरा आदि बेचने के लिए एक साथ लाता है. 

बीज बैंक में नजर आई विविधता 

बीज बैंक को किसानों के लिए एक बहुमूल्‍य संसाधन माना जाता है और विशेषज्ञों के अनुसार इससे दुनिया भर में खाद्य संकट को रोका जा सकता है. सदियों पहले, भारत में चावल की एक लाख से ज्‍यादा किस्में थीं. ये किस्में स्वाद, पोषण, कीट-प्रतिरोधक क्षमता और मौसम की अलग-अलग स्थितियों के अनुकूल होने की अद्भुत विविधता से युक्त थीं. ऐसे में इनके बीज आज जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के इस दौर में और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. 

पारंपरिक किस्‍मों का प्रदर्शन 

इस बीज महोत्‍सव में तमिलनाडु में उगाए जाने वाले धान की कुछ ऐसी किस्‍मों के बीजों की प्रदर्शनी भी थी जिसके बारे में अब शायद ही लोगों को मालूम हो. मालुमुलिंगी या थूयामल्ली, जो चमेली की कलियों जैसे दिखने वाली एक पारंपरिक सुगंधित चावल की किस्म है, उसका बीज भी इस प्रदर्शनी में नजर आया. ऐसा माना जाता है कि धान की यह किस्‍म यह भारी बारिश को झेल सकती है. जैसे-जैसे खेत में पानी बढ़ता जाता है, धान के ये पौधे लंबे होते जाते हैं. 

इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि कैसे लोगों ने इस चावल की किस्म को मूंगा का प्रयोग करके खेत में घूम-घूम कर काटा है. चावल बारिश पर आधारित एक फसल है लेकिन वदान सांबा जैसी किस्में हैं जो ज्‍यादा पानी के बगैर भी उग सकती हैं. कुछ ऐसी किस्‍में जैसे कुझियादिचान, करुथाकर और कुल्लाकर भी हैं जो तेजी से बढ़ती हैं.  

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