अच्छी फसल में बीज अहम भूमिका निभाते हैं और देशी बीजों को जीनोम को सहेजना जरूरी है. क्योंकि देशी बीज कम होते जा रहे हैं, इसलिए पर्यावरण अनुकूल खेती और पौध जैव-विविधता के लिए स्वदेशी बीजों के जीनोम को बचाना जरूरी है.देशी बीजों को संरक्षित करने के लिए केंद्र सरकार की परियोजना मॉडल जीनोम क्लब के तहत बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर में मॉडल जीनोम क्लब की स्थापना की जाएगी.इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत विश्वविद्यालय को 59.10 लाख रुपए की राशि प्राप्त हुई है.
केंद्र सरकार की इस परियोजना के तहत विश्वविद्यालय की तरफ से मॉडल जीनोम क्लब द्वारा राज्य में फैली पौध जैव-विविधता को संजोने का काम किया जाएगा. राज्य में बहुत से किसान संगठन व किसान हैं, जो जैव-विविधता एवं परंपरागत किस्मों को बचाने का कार्य करते हैं. वहीं क्लब विभिन्न फसलों के पुराने एवं परंपरागत बीजों के संरक्षण करने वाले सूबे के किसानों और किसान समूहों, सहित अन्य संगठनों को सम्मानित करेगी. इसके अलावा मार्डन जीनोम क्लब उपलब्ध पौध जैव- विविधता और विभिन्न फसलों की परंपरागत एवं पुरानी किस्मों के बीजों का समुचित मूल्यांकन और दस्तावेजीकरण किया जाएगा.क्लब किसानों, वैज्ञानिकों, स्कूली बच्चों को प्रशिक्षण के माध्यम से जैव विविधता के संरक्षण और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को लेकर जागरूक करेगी.
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बिहार कृषि विश्वविद्यालय(बीएयू) के कुलपति डॉ डीआर सिंह ने बताया कि पुरानी एवं परंपरागत किस्मों का बचाव बहुत ही जरूरी है. इसके लिए बीएयू सबौर मे मॉडल जीनोम क्लब की स्थापना एक महत्वाकांक्षी परियोजना है. क्योंकि इन किस्मों कि उपज भले ही कम हो, लेकिन इनमे गुणवत्ता एवं रोग एवं कीट प्रतिरोधक क्षमता छिपी होती है,आगे उन्होंने बताया कि इसके इस्तेमाल से नई एवं उन्नतशील किस्में तैयार की जा सकती हैं. मुझे पूरा भरोसा है कि यह परियोजना बिहार के किसानों के लिए वरदान साबित होगी. उन्होंने कहा कि पौध जैव विविधता का संरक्षण भविष्य में किए जाने वाले सभी प्रकार के फसल सुधार कार्यक्रम के लिए बेहद जरूरी है. इससे की विभिन्न फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित नई परियोजना के तहत औद्योगिक, वाणिज्यिक, चिकित्सा और सौंदर्य सहित अन्य विभिन्न दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण पौधों की किस्मों की पहचान कर उनके प्रसार और उत्पादन के दायरे को बढ़ाने की संभावना का भी आकलन किया जाएगा. जिससे राज्य में जैव विविधता एवं पौधा किस्मों के संरक्षण से जुड़े किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सके. विभिन्न पौध किस्मों के डीएनए फिंगर-प्रिंटिंग और बार-कोडिंग पर कार्य किया जाएगा. वहीं महत्वपूर्ण पौध किस्मों को बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की किया जाएगा. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के तहत एक 'मॉडल जीनोम प्रयोगशाला-सह-संग्रहालय' स्थापित किया जाएगा, ताकि लोगों को राज्य में उपलब्ध पौधों की जैव विविधता की एक झलक मिल सके. पहले तीन साल की अवधि के बाद, परियोजना को प्रगति और वित्तीय मूल्यांकन के आधार पर बढ़ाया जाएगा..
आपको जानना जरूरी है कि पुराने जमाने में किसान हर साल बीज को अगले साल के लिए खुद सहेज कर रखते थे, लेकिन अब बदलते समय के साथ खेती की तकनीक बदल रही है और किसान पुरानी परंपरा को भूलकर हाईब्रिड बीजों की ओर भागने लगे हैं. किसान स्वदेशी बीजों को बचाना भूल गए हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि किसानों ने धीरे-धीरे स्वदेशी बीजों को खो दिया है. हाईब्रिड बीज से बेहतर फसल पैदा होती है, लेकिन इन फसलों पर कीट ,बीमारी ज्यादा प्रकोप और पोषक तत्व भी कम हो जाता है.
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