scorecardresearch
इस बेकार घास से बनेगी ऑर्गेनिक चाय और कपड़े, किसानों का बढ़ेगा रोजगार

इस बेकार घास से बनेगी ऑर्गेनिक चाय और कपड़े, किसानों का बढ़ेगा रोजगार

बिच्छू घास जिसे मास्टर जी की बेंत समझते थे या गरीबों की सब्जी समझते थे, उसे ऐसा रूप दिया जा रहा है जिसे अब चाय के रूप में दूर-दूर देशों में बेचा जा सकेगा. इसके रेशे से अंगवस्त्र, जैकेट या शॉल बनाकर लोगों तक पहुंचाया जाएगा. उत्तराखंड के कई इलाकों में बिच्छू घास बहुतायत में होती है, लेकिन उसका उपयोग पूरा नहीं हो पाता.

advertisement
बिच्छू घास से बनेगी ऑर्गेनिक और हर्बल चाय (फोटो क्रेडिट-freepik) बिच्छू घास से बनेगी ऑर्गेनिक और हर्बल चाय (फोटो क्रेडिट-freepik)

पहाड़ों में बिच्छू घास (सिसोन) बहुत अधिक मात्रा में होती है. अमूमन इसका प्रयोग बच्चों को डराने में या सब्जी बनाने में होता है. मगर अब इसका प्रयोग ऑर्गेनिक चाय और कपड़ा बनाने में भी किया जाएगा. इसके लिए रानीखेत में तैयारी भी शुरू कर दी गई है. रानीखेत के ताड़ीखेत में बुधवार को एक रोजगार ट्रेनिंग प्रोग्राम का आयोजन किया गया. इस प्रोग्राम में महिला समूहों को बिच्छू घास सिसौण से ऑर्गेनिक चाय और रेशे से कपड़ा बनाने की ट्रेनिंग दी गई. इस प्रोग्राम में महिला किसानों को बताया गया कि बेकार समझी जाने वाली बिच्छू घास से कैसे अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है.

ट्रेनिंग प्रोग्राम में अल्मोड़ा ग्रामीण उद्यम वेग वृद्धि परियोजना (REAP) और उत्तराखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा बिच्छू घास से रेशा, धागा और कपड़ा तैयार करने की ट्रेनिंग दी गई. प्रोग्राम में विशेष कार्याधिकारी (पर्यटन) भास्कर खुलबे, ग्राम्य विकास विभाग के सचिव डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने भी हिस्सा लिया. ट्रेनिंग प्रोग्राम का मुख्य उद्देश्य पहाड़ों से पलायन को रोकना और बेकार पड़ी बिच्छू घास का उपयोग करना था. कार्यक्रम का उद्घाटन रानीखेत से विधायक प्रमोद नैनवाल ने किया. इस बारे में जानकारी देते हुए प्रमोद नैनवाल ने बताया कि पहाड़ के उत्पादों का वैज्ञानिक दोहन कर रोजगार पैदा करना असली लक्ष्य है.

ये भी पढ़ें: Brimato: अब एक ही पौधे से पैदा होंगे टमाटर और बैंगन, वैज्ञान‍िकों ने नाम‍ द‍िया ब्रिमेटो

रानीखेत के विधायक ने कहा, हमारा मुख्य उद्देश्य है कि उत्तराखंड पलायन मुक्त हो. यहां के जो भी कृषि उत्पाद हैं या औषधियां हैं, उनको रोजगार से जोड़ने के लिए NRLF और REAP की मदद से पूर्व आईएस और प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे से निवेदन किया गया था. इसमें बिच्छू घास से चाय और कपड़े बनाने का प्रस्ताव उनके सामने रखा गया था. अब बहुत जल्दी ही महिला समूहों को बिच्छू घास से रेशे निकालने और चाय बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी. इससे किसानों को खासकर फायदा होगा क्योंकि उनके कृषि उत्पाद और उनकी उगाए गए औषधीय पौधे रोजगार का साधन बनेंगे. 

इसी प्रोग्राम में पर्यटन सलाहकार भाष्कर खुल्बे ने कहा, बिच्छू घास जिसे मास्टर जी की बेंत समझते थे या गरीबों की सब्जी समझते थे, उसे आज ऐसा रूप दिया जा रहा है जिसे अब चाय के रूप में दूर-दूर देशों में बेचा जा सकेगा. इसके रेशे से अंगवस्त्र, जैकेट या शॉल बनाकर लोगों तक पहुंचाया जाएगा. उत्तराखंड के कई इलाकों में बिच्छू घास बहुतायत में होती है, लेकिन उसका उपयोग पूरा नहीं हो पाता. थोड़ा उपयोग होता भी है, तो केवल पारंपरिक तौर पर. अब इस उपयोग को बढ़ाकर रोजगार के स्तर तक ले जाने की तैयारी शुरू हो गई है.

ये भी पढ़ें: 24 फरवरी को जयपुर कूच करेंगे किसान, इन चार मांगों पर करेंगे विरोध प्रदर्शन

इस घास का नाम बिच्छू घास इसलिए पड़ा है क्योंकि गलती से भी त्वचा से छू जाए तो वहां झनझनाहट शुरू हो जाती है. इसे छूने से दर्द भी होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बिच्छू घास में हिस्टामिन पाया जाता है. इसका पौधा छह फीट तक का होता है और इसमें फूल जुलाई-अगस्त में आते हैं. यह घास बहुत गर्म होती है, इसलिए ठंडी जगहों में रहने वाले लोग इसकी सब्जी आदि बनाकर खाने में इस्तेमाल करते हैं. 

बिच्छू घास के कई फायदे हैं जिनमें एक हर्बल टी भी है. इस हर्बल चाय से मोटापे से राहत मिलती है. पहाड़ों के कई किसान बिच्छू घास की स्पेशल खेती करते हैं जिसकी मांग हर्बल टी के लिए बड़ी मात्रा में होती है. यह चाय देश के अलावा विदेशों में भी सप्लाई होती है. बिच्छू घास से ग्रीन टी भी बनाई जाती है जिसकी विदेशों में भारी मांग है. इसे देखते हुए अल्मोड़ा में महिलाओं को बिच्छू घास से चाय, कपड़े और शॉल आदि बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी.(रिपोर्ट/संजय सिंह)