देश में नकदी फसल के रूप में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.लेकिन, मौसम में होने वाले बदलाव, शीतलहर और ठंड के बढ़ने के साथ ही आलू की फसल में कई तरह के रोग और कीट लगने लगते हैं. इससे कई किसानों को काफी नुकसान भी झेलना पड़ता है. इस तरह के नुकसान से बचने के लिए किसानों को उचित प्रबंधन की जानकारी होनी बहुत जरूरी है. ऐसे में बिहार के कृषि विभाग ने आलू की फसल में लगने वाले रोग और कीटों की पहचान और प्रबंधन का वैज्ञानिक तरीका बताया है. आइए जानते हैं आलू में लगने वाले रोगों की पहचान और रोकथाम के बारे में.
आलू के पौधे अब थोड़े बड़े होने लगे हैं. इस बीच आलू की फसल पर सफेद भृंग कीट संक्रमण देखा जा रहा है. इस कीट के लगने से आलू का पौधा सूख जाता है. ये कीट आलू की जड़ों को चट कर जाते हैं. मादा कीट मिट्टी में अंडे देती है, जिससे मटमैले रंग के कीट फसल को नुकसान पहुंचाते हैं.
कृषि विभाग के अनुसार, किसानों को इस कीट से फसलों के बचाव के लिए शाम के 7 से 9 बजे के बीच में 1 लाइट ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाना चाहिए. इसके साथ ही किसानों को कार्बोफ्यूरान 3 जी की 25 किलो मात्रा (प्रति हेक्टेयर) का उपयोग बुवाई के समय या कुछ दिनों के बाद करना चाहिए.
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आलू की फसल के लिए पछेती झुलसा रोग बहुत खतरनाक होता है. इस रोग के प्रकोप में आलू के पौधे की पत्तियों के किनारा और ऊपर का भाग सूख जाता है. वहीं, पत्ती के सूखे भाग को हाथ से रगड़ने पर खर-खर की आवाज आती है. इस तरह, किसान इस रोग की पहचान आसानी से कर सकते हैं. साथ ही इस रोग के लगने से किसानों को उत्पादन में 40 से 50 फीसदी का नुकसान उठाना पड़ता है.
कृषि विभाग के अनुसार, बुवाई के 15 दिनों के अंतराल पर मैंकोजेब 175 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. इस रोग का अधिक संक्रमण होने पर मैंकोजेब, मेटालैक्सिल और कार्बेण्डाजिम मैन्कोजेब को मिलाकर करीब 2 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करनी चाहिए. इस छिड़काव से आप अपनी फसल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.
मौसम में बदलाव होते ही आलू में लाही कीट का आक्रमण हमेशा से देखा जा रहा है. लाही गुलाबी या हरे रंग का होते हैं. यह पौधे की पत्तियों से रस चूस कर पौधों को कमजोर कर देते हैं, जिसके कारण पत्ते और तन्ने खराब हो जाते हैं. यह आलू के अलावा सरसों और अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचाते हैं.
इस रोग से बचने के लिए किसानों को आलू की फसल पर ऑक्सी डेमेटान-मिथाइल 25 प्रतिशत में 1 लीटर प्रति हेक्टेयर, थियाथोमैक्स 25 प्रतिशत में 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर के दर से पानी के साथ घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
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