आजकल मौसम में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है, जिससे फसलों और पेड़-पौधों को नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है. जब ठंड अधिक हो, शाम के समय हवा का बहाव बंद हो जाए, रात्रि में आकाश साफ हो और आर्द्रता का स्तर अधिक हो, तो ऐसी परिस्थितियों में पाला पड़ने की संभावना सबसे अधिक होती है. दिन के समय धूप से धरती गर्म हो जाती है. यही गर्मी रात में विकिरण के माध्यम से वातावरण में चली जाती है. इस प्रक्रिया के कारण जमीन को गर्मी नहीं मिल पाती और आसपास के वातावरण का तापमान कई बार शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे भी नीचे चला जाता है.
इस स्थिति में ओस की बूंदें या जलवाष्प बिना तरल रूप में परिवर्तित हुए सीधे बर्फ के छोटे कणों में बदल जाती हैं, जिसे पाला कहा जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज (पश्चिम चंपारण) के हेड डॉ. आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह दी है कि दिसंबर और जनवरी के महीनों में पाला पड़ने की संभावना अधिक होती है, जिससे फसलों को गंभीर नुकसान हो सकता है. किसानों को पाले से बचाव के लिए उपाय अपनाने चाहिए.
डॉ आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि जब वातावरण का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह रुक जाता है, जिससे पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर पानी जमा हो जाता है और ठोस बर्फ की एक पतली परत बन जाती है. इसे पाला कहा जाता है. पाला पौधे की कोशिका की दीवारों को नुकसान पहुंचाता है और कोशिका छिद्र (स्टोमेटा) को नष्ट कर देता है. पाला कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और वाष्प के आदान-प्रदान को भी बाधित करता है. इसके वजह से पौधे की पत्तियां और फूल मुरझा जाते हैं और झुलस कर बदरंग हो जाते हैं. दाने छोटे बनते हैं, फूल झड़ जाते हैं. नतीजतन फसलों का उत्पादन अधिक प्रभावित होता है.
डॉ सिंह के अनुसार पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैंगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता जैसी फसलें अधिक प्रभावित होती हैं. पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इसकी चपेट में आ जाती हैं. शीत लहर और पाला सर्दी के मौसम में सभी फसलों को नुकसान पहुंचाता है. टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता और केले के पौधे और मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम आदि सब्जियों से अधिकतम 70 से 80 फीसदी तक नुकसान हो सकता है. अरहर, चना, मटर में 60 से 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी और गेहूं और जौ में 10 से 20 फीसदी का नुकसान होता है.
डॉ आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया है पाले से बचाव के लिए निम्न तरीके अपनाने चाहिए-
डॉ आर पी सिंह का कहना है कि आजकल आंधी-पानी की वजह सरसों, गेहूं, चना, मसूर, अरहर की फसल की नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. अधिक पानी बरसने से फफूंद लगने के कारण सरसों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और तेज हवाओं से जो पौध गिर गई है और दाने अच्छी तरह से पके नहीं हैं उनमें नुकसान की संभावना अधिक है. इसे देखते हुए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए.
इन उपायों को अपनाकर किसान भाई अपनी रबी फसलो फसलों को पाले और बदलते मौसम से नुकसान होने से बचा सकते हैं.
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