`धुआं, सिंचाई, यूरिया....` पाले से फसलों को भारी नुकसान का खतरा, बचाव के लिए ये हैं जरूरी उपाय

`धुआं, सिंचाई, यूरिया....` पाले से फसलों को भारी नुकसान का खतरा, बचाव के लिए ये हैं जरूरी उपाय

इस मौसम में पाले के कारण फसलों को भारी नुकसान हो सकता है, जो किसानों के लिए चिंता का विषय बन गया है. खासकर, रबी फसल जैसे गेहूं, मटर, सरसों, और चना. इन फसलों पर पाले का असर गंभीर हो सकता है. पाला जब वातावरण में ठंडा होता है, तो वह फसलों पर जमा हो जाता है और फसलों के विकास को रोकता है, जिससे उपज में गिरावट होती है. ऐसे में किसानों को पाले से बचाव के लिए कुछ जरूरी उपाय अपनाने की जरूरत है.

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`धुआं, सिंचाई, यूरिया....` पाले से फसलों को भारी नुकसान का खतरा, बचाव के लिए ये हैं जरूरी उपायपाला है फसलों का दुश्मन

आजकल मौसम में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है, जिससे फसलों और पेड़-पौधों को नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है. जब ठंड अधिक हो, शाम के समय हवा का बहाव बंद हो जाए, रात्रि में आकाश साफ हो और आर्द्रता का स्तर अधिक हो, तो ऐसी परिस्थितियों में पाला पड़ने की संभावना सबसे अधिक होती है. दिन के समय धूप से धरती गर्म हो जाती है. यही गर्मी रात में विकिरण के माध्यम से वातावरण में चली जाती है. इस प्रक्रिया के कारण जमीन को गर्मी नहीं मिल पाती और आसपास के वातावरण का तापमान कई बार शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे भी नीचे चला जाता है.

इस स्थिति में ओस की बूंदें या जलवाष्प बिना तरल रूप में परिवर्तित हुए सीधे बर्फ के छोटे कणों में बदल जाती हैं, जिसे पाला कहा जाता है. कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज (पश्चिम चंपारण) के हेड डॉ. आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह दी है कि दिसंबर और जनवरी के महीनों में पाला पड़ने की संभावना अधिक होती है, जिससे फसलों को गंभीर नुकसान हो सकता है. किसानों को पाले से बचाव के लिए उपाय अपनाने चाहिए.

जानें, कब पड़ता है पाला?

डॉ आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि जब वातावरण का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या उससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह रुक जाता है, जिससे पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर पानी जमा हो जाता है और ठोस बर्फ की एक पतली परत बन जाती है. इसे पाला कहा जाता है. पाला पौधे की कोशिका की दीवारों को नुकसान पहुंचाता है और कोशिका छिद्र (स्टोमेटा) को नष्ट कर देता है. पाला कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और वाष्प के आदान-प्रदान को भी बाधित करता है. इसके वजह से पौधे की पत्तियां और फूल मुरझा जाते हैं और झुलस कर बदरंग हो जाते हैं. दाने छोटे बनते हैं, फूल झड़ जाते हैं. नतीजतन फसलों का उत्पादन अधिक प्रभावित होता है.

पाले से प्रभावित होने वाली फसलें

डॉ सिंह के अनुसार पाला पड़ने से आलू, टमाटर, मटर, मसूर, सरसों, बैंगन, अलसी, जीरा, अरहर, धनिया, पपीता जैसी फसलें अधिक प्रभावित होती हैं. पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेहूं, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इसकी चपेट में आ जाती हैं. शीत लहर और पाला सर्दी के मौसम में सभी फसलों को नुकसान पहुंचाता है. टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता और केले के पौधे और मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम आदि सब्जियों से अधिकतम 70 से 80 फीसदी तक नुकसान हो सकता है. अरहर, चना, मटर में 60 से 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी और गेहूं और जौ में 10 से 20 फीसदी का नुकसान होता है.

पाले से बचाव के लिए ये हैं काम के उपाय 

डॉ आर.पी. सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया है पाले से बचाव के लिए निम्न तरीके अपनाने चाहिए-

  1. खेतों की मेड़ों पर घास फूस जलाकर धुआं करें, ऐसा करने से फसलों की आसपास का वातावरणगर्म हो जाता है पाले के प्रभाव से फसलें बच जाती हैं.
  2. पाले से बचाव के लिए किसान फसलों में सिंचाई करें. सिंचाई करने से फसलों पर पाले का प्रभाव नहीं पड़ता है.
  3. पाले के समय दो व्यक्ति सुबह के समय एक रस्सी को उसके दोनों सिरों को पकड़कर खेत के एक कोने से दूसरे कोने तक फसल को हिलाते रहें जिससे फसल पर पड़ी हुई ओस गिर जाती है और फसल पाले से बच जाती है.
  4. अगर किसान नर्सरी तैयार कर रहे हैं तो उसको घास फूस की टटिया बनाकर अथवा प्लास्टिक से ढकें और ध्यान रहे कि दक्षिण पूर्व भाग खुला रखें ताकि सुबह और दोपहर धूप मिलती रहे.
  5. पाले से दीर्घकालिक बचाव के लिए उत्तर पश्चिम मेंड़ पर और बीच-बीच में उचित स्थान पर वायु रोधक पेड़ जैसे शीशम, बबूल, खेजड़ी, शहतूत, आम और जामुन आदि को लगाएं तो सर्दियों में पाले से फसलों को बचाया जा सकता है.
  6. अगर किसान फसलों पर गुनगुने पानी का छिड़काव करते हैं तो फसलें पाले से बच जाती हैं.
  7. पाले से बचाव के लिए किसानों को पाला पड़ने के दिनों में यूरिया की 20 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए अथवा थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 80% डब्लू डी जी की 40 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है.
  8. ऐसा करने से पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जीवद्रव्य का तापमान बढ़ जाता है वह जमने नहीं पाता है फसलें पाले से बच जाती हैं.
  9. फसलों को पाले से बचाव के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश की 15 ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं.
  10. किसान भाई फसलों को पाले से बचाने के लिए ग्लूकोज 25 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें.
  11. फसलों को पाले से बचाव के लिए एनपीके 100 ग्राम और 25 ग्राम एग्रोमीन प्रति 15 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव किया जा सकता है.

डॉ आर पी सिंह का कहना है कि आजकल आंधी-पानी की वजह सरसों, गेहूं, चना, मसूर, अरहर की फसल की नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. अधिक पानी बरसने से फफूंद लगने के कारण सरसों की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और तेज हवाओं से जो पौध गिर गई है और दाने अच्छी तरह से पके नहीं हैं उनमें नुकसान की संभावना अधिक है. इसे देखते हुए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए.

  • बाऱिश और आधी से जो गेहूं की फसल गिर गई है उनमें भी उत्पादन प्रभावित होगा. गिरी हुई पौध में दानों का पूर्णरूपेण विकास नहीं होगा, दाने सिकुड़ जाएंगे, दानों का वज़न घटेगा.
  • इसी प्रकार चना, मसूर और अरहर में वारिस और तेज हवाओं से फूल गिर गए हैं. ऐसी स्थिति में समुचित फलियों का निर्माण न होने के कारण उत्पादन प्रभावित होगा.
  • अगर 2-3 दिनों तक बदली और बूंदा-बांदी होती रहती है तो फसलों पर रोग और कीट का प्रकोप अधिक होता है.
  • डॉ सिंह ने कहा कि ऐसी दशा में किसानों को निम्न उपाय अपनाने चाहिए-
  • जिस खेत में अधिक पानी भर गया हो उसमें से पानी निकाल दें.
  • अगर सरसों की कटाई हो गई है तो फसल को अच्छी तरह सूखाकर मड़ाई का कार्य करें.
  • चना, मसूर, अरहर की फसल में मौसम साफ होने पर फली छेदक कीट नियंत्रण के लिए इमामेक्तीन बेंजोएट की 1 ग्राम मात्रा प्रति 2 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें.

इन उपायों को अपनाकर किसान भाई अपनी रबी फसलो फसलों को पाले और बदलते मौसम से नुकसान होने से बचा सकते हैं.


 

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