इस समय लीची के बाग में फल निकलना शुरू हो गया है. लीची के फूल खिलने के बाद परागण और निषेचन की प्रक्रिया होती है, जिससे छोटे फल विकसित होते हैं. जब ये फल लगभग 1.5-2 सेमी की लंबाई तक पहुंचते हैं और आकार में लौंग जैसे दिखाई देते हैं, तो इस अवस्था को 'लौंग अवस्था' कहा जाता है. इस अहम चरण में उचित देखभाल और प्रबंधन में कमी के वजह से फल गिरने, रोग ग्रस्त होने और फटने की समस्या हो सकती है, जिससे किसानों की साल भर की मेहनत पर पानी फिर सकता है. ऐसे में अगर इस अवस्था में लीची की सही देखभाल की जाए, तो फल की क्वालिटी और उपज दोनों बेहतर होती है और बाजार से अधिक दाम मिलता है.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, समस्तीपुर, बिहार के प्लांट पैथोलॉजी विभाग के हेड के अनुसार, लीची की लौंग अवस्था में विशेष देखभाल की जरूरत होती है, अन्यथा फल झड़ने, रोग लगने और फटने की समस्या हो सकती है. लीची की 'लौंग अवस्था' में फल झड़ने की संभावना अधिक होती है, विशेष रूप से जब खाद और सिंचाई की कमी होती है, जिससे बड़ी संख्या में फल गिर सकते हैं. इस अवस्था के बाद फल तेजी से वृद्धि करने लगते हैं, जिसके लिए पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत होती है. इसी दौरान कीट और रोग संक्रमण का जोखिम भी बढ़ जाता है, जिससे फलों और पत्तियों पर कीटों और रोगजनकों का हमला होने की संभावना अधिक होती है, जिससे लीची का उपज प्रभावित हो सकती है.
लौंग अवस्था में फलों के फटने को रोकने के लिए नियमित और हल्की सिंचाई करना जरूरी होता है, लेकिन जलभराव से बचना चाहिए, क्योंकि इससे जड़ों की ऑक्सीजन आपूर्ति बाधित हो सकती है. ओवरहेड स्प्रिंकलर सिंचाई अपनाने से न केवल उपज और क्वालिटी में सुधार होता है, क्योकि यह बाग के तापमान को सामान्य से 5 डिग्री तक कम रखता है, बल्कि फलों के फटने की संभावना 2 फीसदी से भी कम हो जाती है. इसके अलावा रोग और कीटों का प्रकोप भी कम होता है.
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लीची के 8 से 14 साल की आयु के पौधे में प्रति पौधा 350 ग्राम यूरिया और 250 ग्राम पोटाश दें. 15 वर्ष से अधिक आयु के पौधे को प्रति पौधा 450-500 ग्राम यूरिया और 300-350 ग्राम पोटाश दें. इसके अलावा, 1 फीसदी पोटैशियम नाइट्रेट (KNO₃) का छिड़काव करें. यदि पिछले मौसम में बोरोन का प्रयोग नहीं किया गया था, तो 4 ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए जैविक उर्वरकों, जैसे वर्मीकम्पोस्ट या गोबर खाद का प्रयोग करें. ध्यान रखें कि उर्वरकों का उपयोग तभी करें जब मिट्टी में पर्याप्त नमी हो.
अगर लीची के फलों के गिरने की समस्या दिखाई दे रही है, तो इसकी रोकथाम के लिए प्लेनोफिक्स (NAA) @ 1 मि.ली./3 लीटर पानी का छिड़काव करें. यदि बाग में कीट और रोग संक्रमण के लक्षण दिख रहे हैं, तो नियमित रूप से उनकी निगरानी करें और विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित नियंत्रण उपाय अपनाएं. समय पर सही उपचार करने से उत्पादन की क्वालिटी और मात्रा दोनों में सुधार होता है. साथ ही, जैविक और रासायनिक उपायों का संतुलित उपयोग करें, ताकि फसल स्वस्थ बनी रहे और आर्थिक नुकसान से बचा जा सके.
अनुकूल कृषि-जलवायु परिस्थितियों के साथ उन्नत कृषि तकनीकों का प्रयोग बिहार में लीची की सर्वाधिक पैदावार सुनिश्चित करता है. भारत में लीची उत्पादन में बिहार अग्रणी राज्य है, जो कुल राष्ट्रीय उत्पादन का लगभग 70 फीसदी योगदान देता है. वर्ष 2022-23 में राज्य में 37 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती हुई, जिससे 308.77 हजार मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ. इस वर्ष भी बेहतर प्रबंधन और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके उच्च क्वालिटी वाली लीची का अधिक उत्पादन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
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