भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने अगले तीन से चार दिनों के दौरान देश के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम तापमान में 2-4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की भविष्यवाणी की है. उत्तर-पश्चिम भारत के कई स्थानों पर यह वृद्धि 5 डिग्री सेल्सियस तक हो सकती है. बिहार में मार्च के अंतिम सप्ताह में तापमान में तेज वृद्धि होने की संभावना है, जिससे गेहूं और जौ जैसी फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.
हाल ही में हुई बारिश के बाद बिहार में अब तापमान में बढ़ोतरी देखी जा रही है. मौसम विज्ञान केंद्र, पटना के अनुसार, अगले कुछ दिनों तक आसमान साफ रहेगा, जिससे दिन के तापमान में तीव्र वृद्धि हो सकती है. मौसम विभाग ने किसानों और आम जनता को गर्मी से बचाव के उपाय करने की सलाह दी है. पश्चिमी विक्षोभ कमजोर पड़ चुका है और पश्चिमी और पछुआ हवाओं का प्रभाव बना हुआ है. ये हवाएं समुद्र तल से 3.1 किमी से 7.6 किमी की ऊंचाई तक फैली हुई हैं. हालांकि, भूमध्यरेखीय हिंद महासागर और दक्षिण-पूर्व बंगाल की खाड़ी में चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र सक्रिय है, लेकिन इसका प्रभाव बिहार के मौसम पर नहीं पड़ेगा.
मौसम पूर्वानुमान के अनुसार, 25 मार्च को बिहार में अधिकतम तापमान 32 से 34 सेंट्रीग्रेड और न्यूनतम तापमान 18° सेंट्रीग्रेड से 20° सेंट्रीग्रेड के बीच रहने की संभावना है. पछुआ हवाओं के कारण गर्मी का प्रभाव अधिक महसूस किया जा सकता है.
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कृषि विज्ञान केंद्र के पूर्वी चंपारण के हेड डॉ. आर.पी. सिंह ने बताया कि बिहार में धान और गेहूं की फसल चक्र पद्धति अपनाई जाती है. धान की कटाई में देरी होने के कारण गेहूं की बुवाई भी कई बार देर से होती है. यदि तापमान सामान्य से अधिक बढ़ता है, तो देर से बोई गई गेहूं की फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. गेहूं के परागण के वक्त अधिकतम तापमान 30 सेंट्रीग्रेड से अधिक नहीं होना चाहिए.
अधिक तापमान से दाने सही तरीके से नहीं बनते, जिससे उत्पादन में कमी आती है. गेहूं के दाने बनने की अवस्था (ग्रहण अवस्था) में उच्च तापमान से उपज की क्वालिटी खराब हो सकती है. बढ़ते तापमान के कारण मिट्टी में नमी तेजी से समाप्त होती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता बढ़ जाती है.
डॉ. आर.पी. सिंह के अनुसार बढ़ता तापमान गेहूं और जौ की फसल के लिए एक गंभीर खतरा हो सकता है क्योंकि गेहूं के दाने सिकुड़ जाते हैं और बालियों की संख्या कम हो जाती है. उत्पादन में गिरावट आती है. गर्मी के तनाव से पराग और पुंकेसर निष्क्रिय हो जाते हैं, जिससे परागण प्रभावित होता है. भ्रूण का विकास रुक जाता है, जिससे दानों की संख्या घट जाती है. दानों का भराव प्रभावित होता है और उनका वजन कम हो जाता है.
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कृषि वैज्ञानिक के अनुसार, कुछ उपाय अपनाकर बढ़ते तापमान के प्रभाव को कम किया जा सकता है. हल्की सिंचाई से तापमान के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है. देर से बोई गई फसल में पोटेशियम नाइट्रेट (13:0:45), चिलेटेड जिंक और चिलेटेड मैगनीज का छिड़काव फायदेमंद होता है. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आर.पी. सिंह के अनुसार, 30°C से अधिक तापमान गेहूं की फसल के लिए हानिकारक होता है. यदि तापमान 35°C से ऊपर चला जाए, तो फसल को भारी नुकसान हो सकता है. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे समय पर सिंचाई और उचित कृषि तकनीकों को अपनाकर अपनी फसल को बचाने के प्रयास करें.
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