रिले क्रॉपिंग प्रणाली एक मल्टी क्रॉपिंग प्रणाली है, जिसके तहत एक ही साल में एक ही जमीन पर अलग-अलग सब्जियां उगाई जाती हैं. इस प्रणाली में अगली फसल पिछली फसल की कटाई से पहले बोई या रोपी जाती है. सब्जियों की मल्टी क्रॉपिंग खेती से अधिक उपज मिलती है और इनकम में बढ़ोतरी, वर्षभर रोजगार, संतुलित उर्वरक का उपयोग, क्रॉप सायकल के माध्यम से सॉइल हेल्थ मेंटेनेंस और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने जैसे फायदे मिलते हैं. अच्छे उत्पादन की सफलता वैरायटी के चयन, उचित बुवाई के तरीके, संसाधनों के सही उपयोग, कीट प्रबंधन, समय पर कटाई जैसी बातों पर निर्भर करती है.
ककड़ी और मिर्च की खेती: इस प्रणाली में नवंबर से मार्च और फरवरी से अक्टूबर में दो बार बुवाई की जाती है. मिर्च फरवरी में मेड़ों पर लगाई जाती है.
मटर-लौकी की खेती: इस सिस्टम के तहत नवंबर से अप्रैल और फरवरी से अक्टूबर के बीच की जाती है. ध्यान रखें कि सर्दियों में लौकी की नर्सरी प्लास्टिक की थैलियों में तैयार की जाती है और फरवरी में तैयार क्यारियों के दोनों ओर 2.5 मीटर और 45 सेंमी. की दूरी पर इसकी रोपाई की जाती है.
ककड़ी और स्पंज लौकी की खेती: इस प्रणाली के तहत इन दो सब्जियों की खेती नवंबर से अप्रैल और मार्च से अक्टूबर के बीच की जाती है. यहां ध्यान रखना होगा कि मार्च में ककड़ी में तैयार जल मेड़ों के वैकल्पिक किनारे पर 3 मीटर की दूरी पर स्पंज लौकी लगाई जानी चाहिए.
आलू-प्याज-हरी खाद: सितंबर से दिसंबर, दिसंबर से मई और जून-जुलाई में इन्हें लगाएं.
आलू-पछेती फूलगोभी-मिर्च: इन्हें अक्टूबर से दिसंबर, दिसंबर से मार्च, और मार्च से अक्टूबर में लगाएं.
आलू-भिंडी-अगेती फूलगोभीः इन्हें नवंबर से फरवरी, मार्च से जुलाई और जुलाई-अक्टूबर तक के लिए लगाएं.
वैसी समान सब्जियां जो कीटों या बीमारियों के प्रति संवेदशील होती हैं, उदहारण के तौर पर टमाटर और मिर्च, उन्हें फसल प्रणाली में एक साथ या एक के पीछे एक नहीं बोएं. गहरी जड़ वाली सब्जियों के बाद उथली जड़ वाली सब्जियां लगाएं, ताकि वे मिट्टी की सभी परतों से पोषक तत्व पा सकें. इसमें मटर और सेम जैसी फलियां लगाना बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है. ये फसलें एटमॉस्फेयर से नाइट्रोजन लेती हैं और गैर-फलीदार फसलों के फायदे के लिए इसे मिट्टी में संग्रहित करती हैं.
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आर्थिक और सामाजिक अध्ययन केंद्र (Centre for Economic and Social Studies-CESS) ने भी एक अध्ययन में बहुफसली पद्धति (Multi-Cropping System) के महत्व के बारे में बताया है.
अधिक उत्पादन: बहुफसली प्रणाली की मदद से छोटे आकार की जमीन से अधिकतम उत्पादकता हासिल की जा सकती है.
पशु चारा संग्रहण: बहुफसली प्रणाली से पशुओं के लिए ज्यादा चारा मिलता है.
फूड सिक्योरिटी: अगर मल्टी क्रॉपिंग में एक या दो फसलें खराब होने पर किसान के लिए बची हुई फसलों से उसके परिवार की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है.
अन्य उपयोग: मल्टी क्रॉपिंग सिस्टम में फसलों से ईंधन भी हासिल होता है.
एक साथ कई फसलें लगाने से कीट की परेशानी कम होती है और मिट्टी के पोषक तत्त्वों, पानी और जमीन का सही से उपयोग होता है.
मल्टी क्रॉपिंग खरपतवार की रोकथाम में भी बहुत सहायक होती है, क्योंकि खरपतवार को कुछ फसलें के साथ उगाने में कठिनाई होती है.
मल्टी क्रॉपिंग के माध्यम से केमिकल फर्टिलाइजर्स और कीटनाशकों के उपयोग को कम किया जा सकता है.
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