झारखंड: फ्री मिल रही स्ट्रॉबेरी फार्मिंग की ट्रेनिंग, रहना-खाना भी बिल्कुल मुफ्त

झारखंड: फ्री मिल रही स्ट्रॉबेरी फार्मिंग की ट्रेनिंग, रहना-खाना भी बिल्कुल मुफ्त

पूर्वी सिंहभूम जिले में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की सीनियर वैज्ञानिक डॉक्टर आरती बिना इक्का ने बताया कि किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती की बिल्कुल फ्री ट्रेनिंग दी जा रही है. जो किसान यहां ट्रेनिंग लेने आते हैं, उन्हें रहने और भोजन की बिल्कुल मुफ्त व्यवस्था की गई है. किसान कृषि विश्वविद्यालय में रहकर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जान सकते हैं.

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झारखंड: फ्री मिल रही स्ट्रॉबेरी फार्मिंग की ट्रेनिंग, रहना-खाना भी बिल्कुल मुफ्तझारखंड में स्ट्रॉबेरी की खेती को मिल रहा बढ़ावा

झारखंड में अब किसान स्ट्रॉबेरी की खेती कर अपनी गरीबी दूर कर सकते हैं. इसके लिए झारखंड कृषि विश्वविद्यालय ने बड़ी पहल की है. यह विश्वविद्यालय किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती करने की ट्रेनिंग देगा. इस ट्रेनिंग से किसान जान सकेंगे कि स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करनी है ताकि उन्हें अच्छी आमदनी हो सके. अब कई राज्यों में स्ट्रॉबेरी की खेती होने लगी है जिससे किसान लाभान्वित हो रहे हैं. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के किसानों को इसका फायदा दिलाने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया गया है.

झारखंड के कई इलाके के किसान अभी तक परंपरागत खेती पर निर्भर हैं. वे धान, गेहूं, सब्जी आदि की खेती करते आ रहे हैं. इस खेती के साथ बड़ी समस्या ये है कि बारिश न हो या सिंचाई की उपयुक्त सुविधा न हो, तो अच्छी पैदावार नहीं मिलेगी. किसान की मेहनत और उसका पूरा खर्च बर्बाद हो जाएगा. अभी ऐसा ही देखा जा रहा है. इस समस्या से निजात दिलाने के लिए किसानों को नकदी फसल और आधुनिक खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इसमें ऐसी फसलें शामिल हैं जो बाजार में किसानों को अधिक मूल्य दिला सकती हैं. इसी में एक है स्ट्रॉबेरी की खेती.

पूर्वी सिंहभूम में मिल रही ट्रेनिंग

झारखंड का पूर्वी सिंहभूम जिला धान प्रधान क्षेत्र है जहां किसान इसी फसल पर अधिक आश्रित हैं. यहां अधिक बारिश हो जाए तो भी समस्या है और कम बारिश हो तो सिंचाई की परेशानी खड़ी हो जाती है. इससे किसानों को धान की खेती में नुकसान पड़ता है. दूसरी ओर सब्जियों की खेती भी पूरी तरह से मौसम पर आधारित है. सब्जियों की खेती में एक और बड़ी समस्या ये है कि अगर एकाएक बहुत अधिक खेती हो जाए तो बाजार में सब्जियों के रेट गिर जाते हैं. झारखंड में अभी यही हाल गोभी की खेती के साथ देखी जा रही है. पैदावार इतनी अधिक हो गई कि गोभी के दाम एक-दो रुपये पर पहुंच गए हैं. किसान परेशान होकर गोभी के खेतों में ट्रैक्टर चला रहे हैं ताकि अगली फसल की बुआई हो सके.

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स्ट्रॉबेरी की खेती में ऐसी समस्या नहीं देखी जाती. इसकी खेती वैसे मौसम में भी हो सकती है जहां धान और गेहूं उगाया जाता है. सिंचाई के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती. ड्रिप इरीगेशन यानी कि बूंद-बूंद पानी से स्ट्रॉबेरी की फसल को जिंदा रखा जा सकता है. इससे किसानों का पानी पर होने वाला खर्च बचता है. स्ट्रॉबेरी को पैक कर उसे कुछ दिनों तक रख भी सकते हैं. फल तोड़ने के बाद उसके पकने के बीच कुछ दिन मिल जाते हैं. इस दौरान अपनी उपज को दूर-दूर के बाजार में पहुंचाने की मोहलत मिल जाती है.

स्ट्रॉबेरी की दिनों दिन बढ़ी मांग

सबसे खास बात स्ट्रॉबेरी की कीमत है. आजकल ऑनलाइन कंपनियां ग्राहकों को पर स्ट्रॉबेरी की सप्लाई करती हैं जिसके लिए 250 ग्राम स्ट्रॉबेरी की कीमत 50 रुपये तक होती है. यानी स्ट्रॉबेरी 200 रुपये किलो तक बिक रही है. इससे किसानों को लाभ मिल रहा है. किसान खुद भी चाहे तो पैकिंग कर स्ट्रॉबेरी की सप्लाई कर सकता है. इसमें उसे किसी बिचौलिये को कमीशन देने की मजबूरी नहीं होगी और उसका लाभ बढ़ जाएगा. इसकी मार्केट डिमांड काफी ज्यादा होने के कारण कीमत आसमान छू रही है.

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किसानों की आमदनी बढ़ाने और उन्हें खेती-बाड़ी में लाभ दिलाने के लिए झारखंड सरकार का संस्थान बिरसा कृषि विश्वविद्यालय आगे आया है. इसके लिए किसानों को खेती की तकनीक बताई जा रहा है. पूर्वी सिंहभूम जिले में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की सीनियर वैज्ञानिक डॉक्टर आरती बिना इक्का ने बताया कि किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती की बिल्कुल फ्री ट्रेनिंग दी जा रही है. जो किसान यहां ट्रेनिंग लेने आते हैं, उन्हें रहने और भोजन की बिल्कुल मुफ्त व्यवस्था की गई है. किसान कृषि विश्वविद्यालय में रहकर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जान सकते हैं.

कम लागत में अधिक मुनाफा

स्ट्रॉबेरी की खेती सीमित संसाधनों में की जा सकती है जिसमें पानी की जरूरत बहुत कम होती है. इसकी खेती लागत की तुलना में कई गुना ज्यादा मुनाफा देने वाली होती है. अभी स्ट्रॉबेरी का उपयोग खाने के कई सामानों में किया जाता है. जैसे आइस्क्रीम, केक, सॉफ्ट ड्रिंक्स में स्ट्रॉबेरी का इस्तेमाल सबसे अधिक हो रहा है. इससे स्ट्रॉबेरी की मांग में तेजी देखी जा रही है. लिहाजा, जो किसान इसकी खेती करते हैं, उनके मुनाफे की संभावना बढ़ जाती है. आरती बिना इक्का कहती हैं कि पूर्वी सिंहभूम के किसान साल में एक बार ही फसल उगाते थे, लेकिन अब स्ट्रॉबेरी की खेती बार-बार कर सकेंगे और अपनी कमाई बढ़ा सकेंगे.(इनपुट/अनूप सिंह)

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