राज्य में अब तक इस बार रुक-रुक कर ही बारिश हो रही है इससे किसानों ने सब्जी की खेती की है. सब्जी की खेती को लेकर जारी किए सलाह में मौसम विभाग ने कहा है कि भारी बारिश होने के कारण सब्जियों की नर्सरी में जलभराव हो सकता है इससे सब्जियों में सड़न की समस्या हो सकती है.
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के एग्रो इकोनोमी विभाग के वैज्ञानिक डॉ चंद्रशेखर सिंह बताते हैं कि समेकित कृषि प्रणाली हर स्तर के किसानों के द्वारा किया जा सकता है.इसके अलावा भूमिहीन किसान भी इस कृषि प्रणाली को अपना सकते हैं. इसके अलावा जो बड़े छोटे और मंझोले किसान हैं वो भी इस कृषि प्रणाली का लाभ उठा सकते हैं.
आने वाले दिनों में बारिश का अनुमान है, इसलिए खेतों में सिंचाई नहीं करें और किसी भी तरह का छिड़काव नहीं करें. ऐसे मौसम में गेहूं की फसल में रोगों का प्रकोप हो सकता है. खास कर रतुआ रोग का संक्रमण होने की संभावना रहती है. इसलिए लगातार खेतों की निगरानी करते रहें. अगर फसल में इस रोग का सक्रमण दिखाए दे तो डाइथेन एम 45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
फसल में काला, भूरा या पीला रतुआ का प्रकोप होता है तो इससे बचाव के लिए डाइथेन एम-45 का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
सब्जियों की खेती को लेकर जारी सलाह में कहा गया है कि मटर की फसल में फलियों की संख्या बढ़ाने के लिए 20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर डंठलों पर छिड़काव करें.
जिन जगहों पर बारिश नहीं हुई है और खेत में नमी की कमी हैं उन जगहों पर किसान सब्जियों में फूल आने की अवस्था में दो प्रतिशत डीएपी और एक प्रतिशत एमओपी का छिड़काव पत्तियों पर करें.
किसान बारिश को देखते हुए अपने खेतों की हल्की सिंचाई करें और पर्याप्त नमीं बनाए रखें. इसके साथ ही जिन खेतों में नमी की कमी है उन खेतों में सब्जियों में फूल आने के दौरान 2 प्रतिशत डीएपी और एक प्रतिशत एमओपी का पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए.
धान खेती की बात करे तो शुरुआती अवस्था में तापमान में और नमी में बढ़ोतरी के कारण ब्लाइट या ब्लास्ट रोग के संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. इस संक्रमण से पौधों को बचाने के लिए वैभिस्टिन एक ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.
पूर्वी सिंहभूम जिले में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की सीनियर वैज्ञानिक डॉक्टर आरती बिना इक्का ने बताया कि किसानों को स्ट्रॉबेरी की खेती की बिल्कुल फ्री ट्रेनिंग दी जा रही है. जो किसान यहां ट्रेनिंग लेने आते हैं, उन्हें रहने और भोजन की बिल्कुल मुफ्त व्यवस्था की गई है. किसान कृषि विश्वविद्यालय में रहकर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जान सकते हैं.
पराली से पशु चारा बनता है जिसे स्थानीय भाषा में कुटी कहते हैं.जिसमें चोकर मिलाकर पशुओ को खिलाया जाता है. पर जब से पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी है और थ्रेसिंग मशीन का इस्तेमाल बढ़ा है कुटी के दाम भी बढ़ गए हैं.
मेघा अग्रवाल बतातीं है कि छत पर खेती करने का शौक उन्हे विरासत में मिला है. पहले नानाजी बड़े पैमाने पर बागवानी करते थे, उनकी मां भी करती थी, इसे देखकर बचपन से उनके मन में बागवानी करने का शौक बन गया
खेत में मिट्टी को उर्वरक बनाने में पीएसबी बैक्टीरिया का रोल महत्वपूर्ण होता है. इसे खेत में बढ़ाने का सबसे सस्ता और बढ़िया स्रोत देसी गाय का गोबर और गोमूत्र है.
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