मां गांग मॉडल के तहत की गई प्राकृतिक खेती, Photo Credit: Kisan Takदेश में प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को बढ़ावा देने की मुहिम के बीच रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग भी बढ़ रहा है. ऐसे में खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ रहा है. मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए अमृत कृषि (Amrut Krishi) किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है. अमृत कृषि के फायदे को देखते हुए हम इसे प्राकृतिक खेती का उन्नत रुप कह सकते हैं. जिसमें किसान ऐसी किसी भी वस्तु का उपयोग नहीं करता, जिसे खरीदने के लिए उसे बाजार जाना पड़े. इस तरह से यह कई जगहों पर प्रचलन में आ रहा है और किसान इसे अपना रहे हैं.
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के बिजनेस एंड प्लानिंग डिपार्टमेंट के सीइओ सिद्धार्थ जायसवाल बताते हैं कि वर्तमान समय में खेती तीन प्रकार से की जा रही है. रासायनिक खेती, जैविक खेती और प्राकृतिक खेती. अमृत कृषि प्राकृतिक खेती का ही एक स्वरूप है. रासायनिक खेती में सभी प्रकार के रसायनों का इस्तेमाल किसान कर सकते हैं, जबकि जैविक खेती में किसान खाद से लेकर कीटनाशक तक अपने घर में खुद तैयार कर सकता है या फिर बाजार से भी खरीद सकता है. जैविक खेती में किसान दोनों ही रास्ता अपना सकता है.
प्राकृतिक खेती में खेत के लिए खाद और कीटनाशक का निर्माण किसानों को खुद से करना पड़ता है. प्राकृतिक खेती प्रणाली में किसान को बाजार से किसी भी प्रकार से प्रस्संकृत वस्तु खरीदने की आवश्यक्ता नहीं होती है. जबकि अमृत कृषि प्राकृतिक खेती का भी उन्नत स्वरूप है. इसमें एक स्वस्थ मिट्टी का ही निर्माण किया जाता है. यह एक ऐसी मिट्टी होती है जिसे तैयार करने बाद किसान को 15 से 20 साल तक अपने खेत में खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होती है. बस इस दौरान मिट्टी के उचित रख-रखाव की जरूरत होती है.
एक किलो गोबर, एक किलो गोमूत्र, 50 ग्राम गुड़ और 10 लीटर पानी में घोल बनाकर तैयार करते हैं. इसे तीन दिन तक रखते हैं और फिर ये अमृत जल बनकर तैयार हो जाता है. प्राकृतिक खेती में जीवामृत का इस्तेमाल हो रहा है. इसमें और अमृत जल में अंतर यह है कि जीवामृत में बेसन का उपयोग होता है और साथ ही इसे बनाने में सात दिन का समय लगता है.
दरअसल वैज्ञानिकों ने उपजाऊ मिट्टी की गुणवत्ता का जो मापदंड तय किया है वह मिट्टी में मौजूद एनपीके की मात्रा है. इसके बाद फिर दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्व आते हैं. पर सोचने वाली बात यह है कि मिट्टी में पौधौं को पोषण देते वाला कोई भी ऐसा तत्व नहीं है जिसका आविष्कार इंसान ने खुद से किया है. सभी की सिर्फ खोज की है. इसका अर्थ यह है कि सभी तत्व प्रकृति में पहले से मौजूद हैं, परंतु उस स्वरूप में उसका इस्तेमाल पौधा सीधे नहीं कर पाता है.
इसके लिए सूक्ष्म जीवाणु जैसे बैक्टीरिया और वायरस होते हैं जो उन तत्वों को तोड़ने का काम करते हैं ताकि पौधो के इस्तेमाल के लायक हो सके. इसलिए मिट्टी की गुणवत्ता का मापदंड इससे होना चाहिए था की मिट्टी में ऐसे जीवाणुओ की मात्रा कितनी है और कौन कौने से जीवाणु मौजूद हैं, पर यहां मिट्टी में एनपीके की उलपब्धता को मिट्टी के मापदंड का पैमाना बना दिया गया.
खेत में मिट्टी को उर्वरक बनाने में पीएसबी बैक्टीरिया का रोल महत्वपूर्ण होता है. इसे खेत में बढ़ाने का सबसे सस्ता और बढ़िया स्रोत देसी गाय का गोबर और गोमूत्र है. फिलहाल बाजार में संशोधित करके पीएसबी बैक्टीरिया मिलता है. जो काफी महंगा होता है. पर जब किसान के पास सब कुछ उपलब्ध है तो फिर सस्ते चीज को किसान इतना महंगा क्यों खरीदेंगे?
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today