घर के बाहर रखी गई पराली फोटोः किसान तकपराली का निस्तारण देश के किसानों खास कर उत्तर प्रदेश, पंजाब हरियाण दिल्ली और बिहार के किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है. धान या गेहूं की कटाई के बाद तुरंत उस जमीन पर खेती करने के लिए किसान खेती की सफाई करना चाहते हैं जिसके कारण पराली को खेत में ही जला देते हैं. जाहिर सी बात है इसके जलने से काफी धुंआ होता है, जिससे हवा में भयंकर प्रदूषण होता है. राज्य और केंद्र सरकार इससे निजात पाने के लिए लगातर किसानों के बीच जागरूकता पैदा कर रही है और पराली नही जलाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.
पर इसके बावजूद पराली जनाले की घटनाओं में कमी नहीं आ रही है. पहले दिल्ली पंजाब उत्तर प्रदेश फिर अब बिहार में भी भारी मात्रा में पराली जलाया जा रहा है. पर झारखंड में अभी तक पराली जलाने की तस्वीर सामने नहीं आई है. यहां पर हलाकिं अधिकांश लोग अब धान की छंटाई के लिए थ्रेसिंग मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके कारण खेत पर ही पराली छोड़ देते हैं. पर इसके बाद वो लोग इसे अपने घरों के पास ले जाकर रख देदे हैं.
काफी लंबे समय से खेती करने वाले किसान अनंत प्रसाद बताते हैं कि एक वो दौर था जब किसान सब कुछ पारपंरिक तरीके से करता था इसके कारण जो पराली बचती थी उसे पशु बड़े की चाव से खाते थे. खास कर गर्मी के दिनों मे जब हरे चारे की कमी हो जाती है तब इससे पशुओं के चारे के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा बारिश के मौसम में भी जब सभी जगह पर धान की खेती कर दी जाती है तब यही पराली गाय और भैंसो के लिए भोजन का काम करती है. अनंत आगे कहते हैं पर अब दुर्भाग्य की बात है कि खेत में मशीनों का अधिक इस्तेमाल हो रहा है इसिलए कृषि में मवेशियों की पूछ कम हो रही है और लोग गाय या भैंस पालने से परहेज कर रहे हैं. इसके कारण अब पराली का अधिक इस्तेमाल नहीं है. पर पर भी लोग इसे खेत या खाली जगहों पर सड़ा देते हैं. जलाते नहीं है.
वहीं अन्य दूसरे किसान रामहरी उरांव बताते हैं पराली से पशु चारा बनता है जिसे स्थानीय भाषा में कुटी कहते हैं.जिसमें चोकर मिलाकर पशुओ को खिलाया जाता है. पर जब से पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी है और थ्रेसिंग मशीन का इस्तेमाल बढ़ा है कुटी के दाम भी बढ़ गए हैं. पराली को ना जलाकर पशु चारा के रुप में इसका कर सकते हैं. इसके अलावा इसका प्रयोग प्लास्टिक मल्चिंक के विकल्प के तौर पर किया जा सकता है. यह पूरी तरह ऑर्गेनिक भी होता है और मिट्टी को इससे कोई नुकसान भी नहीं होगा. इसलिए यहां के किसान इसे नहीं जलाते हैं.
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