पराली की समस्या अकेले उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि हरियाणा , पंजाब में भी बनी हुई है. गेहूं धान की फसलों की कटाई के बाद फसल अवशेष को किसान बड़े ही आसान तरीके से खेतों में ही जला देते हैं जिसके चलते वातावरण पर इसका बुरा प्रभाव भी दिखाई देता है. वही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रभावी प्रबंधन के लिए किसानों को खूब प्रोत्साहित किया जा रहा है. कृषि विभाग के द्वारा पराली का कैसे उपयोग करके खेत को उपजाऊ बनाएं. ये तरीके भी सिखाए जा रहे हैं. प्रदेश के रायबरेली जनपद के ऊंचाहार क्षेत्र के मियांपुर गांव के रहने वाले किसान जे.पी सिंह ने प्रभावी प्रबंधन का बेहतरीन मॉडल प्रस्तुत किया है उन्होंने प्राकृतिक खेती का जीरो बजट मॉडल को चुना है. इस मॉडल के जरिए उन्होंने अपने खेत में पराली को बिछा दिया है और आलू और गन्ने की एक साथ खेती भी की है. उनके इस मॉडल को सरकार के द्वारा सराहा भी जा रहा है. वही उन्हें पुरस्कृत भी किया जा चुका है.
उत्तर प्रदेश में कृषि विभाग के द्वारा हर जिले में किसानों को पराली गुर सिखाए जा रहे हैं. रायबरेली के किसान जग्गी प्रसाद सिंह ने पराली का प्रबंधन बीते 5 सालों से कर रहे हैं. वहीं उनके मॉडल को ही अब कृषि विभाग के द्वारा दूसरे जिले में भी किसानों को दिखाया जा रहा है. प्रभारी प्रबंधन के इस मॉडल के चलते कृषि विभाग के द्वारा उनको कई बार पुरस्कृत किया जा चुका है. प्रगतिशील किसान जग्गी प्रसाद सिंह बताते हैं कि पराली के माध्यम से खेतों में नमी बनी रहती है. वही फिर घन जीवामृत और जैविक डी कंपोजर के माध्यम से पराली खेत में ही खाद बन जाती है जिससे उनका खेत उपजाऊ होता है. उन्होंने पराली के लेयर के साथ आलू और गन्ने की खेती की है. वही उनका यकीन है कि किसी भी रासायनिक खाद के बिना प्रयोग किए उनकी फसल का उत्पादन बेहतर होगा.
प्रगतिशील किसान जग्गी प्रसाद सिंह बताते हैं कि उन्होंने प्राकृतिक खेती का जीरो बजट मॉडल को अपनाया है. वह पिछले कई सालों से जीरो बजट खेती कर रहे हैं. उन्होंने एक बीघे में गन्ना और आलू की खेती प्राकृतिक विधि से की है. इस स्थिति में उन्हें ₹15000 की लागत आई है जबकि 50 से 60 का मुनाफा हो जाएगा. उनको जीरो बजट खेती पर कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. उनके इस मॉडल को कृषि विभाग के द्वारा दूसरे किसानों को भी दिखाया जा रहा है.
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