सरकार किसानों के लिए खेती को तकनीक के माध्यम से आसान और मुनाफे का सौदा बनाना चाहती है. इसके तहत ड्रोन तकनीक को भी किसानों तक पहुंचाया जा रहा है. किसानों को 2030 तक ड्रोन तकनीक से लैस करने की परियोजना का पायलट प्रोजेक्ट यूपी में झांंसी स्थित केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय में शुरू किया गया है. इसमें किसान महज एक फोन कॉल या मैसेज के जरिए ड्रोन से अपने खेत में दवा का छिड़काव कर सकते हैं. विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को यह सहूलियत मुफ्त में दी जा रही है.
ड्रोन पायलट डा आशुषोष शर्मा ने बताया कि इस ड्रोन का वजन 15 किग्रा है. इसमें दवा का छिड़काव करने के लिए 10 लीटर की टंकी है. इस प्रकार उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के दिशानिर्देशों के मुताबिक इस ड्रोन को 500 मीटर से 2 किमी तक की रेंज में फसलों पर दवा का छिड़काव किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि ड्रोन उड़ाने से पहले एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से अनुमति लेनी पड़ती है.
डा आशुषोष शर्मा ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय ने खेती में ड्रोन के इस्तेमाल का पायलट प्रोजेक्ट तीन महीने पहले शुरू किया है. इसमें किसानों को व्हाट्सएप ग्रुप के जरिए सीधे तौर पर जोड़ा गया है. इसके लिए किसान व्हाट्सएप नंबर 8858609246 पर सूचित कर ड्रोन को अपने खेत पर मंगा सकते हैं.
उन्होंने बताया कि एक बार इस नंबर पर सूचित करने वाले किसान को ड्रोन के ग्रुप से जोड़ दिया जाता है. किसान की मांग पर ड्रोन को खेत पर ले जाकर दवा का छिड़काव किया जाता है. उन्होंने कहा कि 2030 तक चलने वाली इस परियोजना के तहत किसान को मुफ्त में ड्रोन की सेवाएं दी जाती हैं.
डा आशुषोष शर्मा ने बताया कि इस ड्रोन से 500 मीटर से 2 किमी तक के दायरे में 1 एकड़ क्षेत्रफल में महज 10 मिनट में 10 लीटर दवा के घोल का छिड़काव कर दिया जाता है. जबकि सामान्य तौर पर किसानों को इस काम में 4 घंटे तक का समय लगता है और इसके लिए उसे 300 रुपये तक मजदूरी भी देनी पड़ती है. उन्होंने बताया कि अभी तक झांसी जिले के तमाम गांवों में किसानों की मांग पर 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ड्रोन से फसलों पर छिड़काव किया जा चुका है.
उन्होंने बताया कि किसान स्वयं भी ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल कर सकें, इसके लिए उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा प्रशिक्षित भी किया जा रहा है. इसके लिए किसान को महज 10 वीं कक्षा तक शिक्षित होना जरूरी है. इच्छुक किसान को इसके लिए डीजीसीए के समक्ष आवेदन करना होगा. मात्र तीन दिन में किसान को ड्रोन उड़ाने में दक्ष कर दिया जाता है.
इसके बाद उसे एक प्रमाण पत्र मिलता है. इसके आधार पर किसान ड्रोन तकनीक का खेती में इस्तेमाल कर सकता है. इसकी कीमत के बारे में डा शर्मा ने बताया कि इसकी बाजार कीमत 10 लाख रुपये है. सरकार किसानों को इसकी खरीद पर 40 फीसदी की छूट भी दे रही है.
विश्वविद्यालय में चल रहे किसान मेले में शामिल हुए स्थानीय किसान रोहित द्विवेदी ने बताया कि किसानों के लिए यह बेहद उपयोगी है. उन्होंने कहा कि किसानों को इसकी कीमत ज्यादा होने के कारण समूह या एफपीओ के माध्यम से इस्तेमाल करना मुफीद रहेगा.
डाॅ आशुषोष शर्मा ने बताया कि इस ड्रोन का इस्तेमाल सिर्फ दवा के छिड़काव में ही नहीं, बल्कि बागवानी में भी किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि ड्राेन में सेंसर और कैमरा का बखूबी इस्तेमाल किया गया है. इसमें लगे सेंसर और कैमरे फसलों एवं ऊंचे फलदार दरख्तों में रोग की पहचान करके किसान को आगाह कर देते हैं. कैमरे से यह पता चलता है कि खेत या बाग में कितने इलाके में रोग फैला है. इसका नक्शा भी कैमरा बना कर किसान को देता है.
साथ ही ड्रोन में सेंसर के माध्यम से क्रैश होने का खतरा खत्म कर दिया गया है. सेंसर की मदद से ड्रोन को फसल और पेड़ों से निश्चित दूूूरी पर रखा जाता है. इससे ड्रोन क्रैश नहीं होता है. उन्होंने बताया कि इस ड्रोन की एक खूबी यह भी है कि जब भी इसकी बैटरी खत्म होने लगती है, यह जिस स्थान से उड़ता है, उसी स्थान पर खुद ब खुद वापस पहुंच जाता है.
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