तोरई को नकदी फसल के रूप में जानी जाती है. इसके पौधे बेल और लता के रूप में उगते हैं, जिस कारण इसे लता वाली सब्जियों की श्रेणी में रखा जाता है. तोरई को अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे तोरी, झींगी और तुरई आदि. इसके पौधों में आने वाले फूल पीले रंग के होते हैं. फूल नर और मादा रूप में निकलते हैं, जिनके निकलने का समय भी अलग-अलग होता है. तोरई की खेती के लिए बारिश का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है. अगर आप भी तोरई की खेती से अच्छी पैदावार और मुनाफा कमाना चाहते हैं तो कुछ बातों का खास खयाल रखना होगा. जैसे की 3G कटिंग. अब क्या है ये 3G कटिंग और इससे क्यों बढ़ती है पैदावार आइए जानते हैं.
पौधे की वृद्धि के लिए उसे खाद, जरूरी पोषण के लिए पानी की जरूरत होती है और समय-समय पर कटिंग की भी जरूरत होती है. आइए समझते हैं कि कटिंग तकनीक क्या है. दरअसल, पौधे की पहली शाखा पहली पीढ़ी होती है, जिसे 1G कहते हैं. उसी शाखा से निकलने वाली शाखाएं दूसरी पीढ़ी होंगी, जिसे 2G कहते हैं. वहीं दूसरी पीढ़ी की शाखा से निकलने वाली शाखाओं को तीसरी पीढ़ी यानी 3G कहते हैं. इसी तरह आगे की शाखाओं को 4th और 5th पीढ़ी कहते हैं.
ये भी पढ़ें: छोटे किसान IFS मॉडल से पांच गुना कमाएं मुनाफा, जानिए कैसे काम आएगी ये तकनीक
पौधों की इस कटिंग तकनीक में 3G कटिंग को सबसे बेहतर माना जाता है. जब पौधे की शाखा लगभग 1 मीटर लंबी हो जाती है और उसमें 6-7 पत्तियां आने लगती हैं, तो उसके ऊपरी हिस्से को काट दिया जाता है. इसके बाद वह शाखा ऊपर की ओर ज्यादा नहीं बढ़ती, बल्कि उसमें से दूसरी शाखाएं निकलने लगती हैं, जो अगली पीढ़ी की होती हैं. इन शाखाओं को भी 1 मीटर तक बढ़ने दिया जाता है, जिसके बाद उन्हें काट दिया जाता है, जिससे आगे की शाखाएं निकलने लगती हैं.
बीज अंकुरित होने के बाद जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, पहले चार पत्तों तक कोई भी शाखा न बढ़ने दें. अगर कोई शाखा उगी है, तो उसे ब्लेड से काटकर हटा दें. पौधे के अंत तक यानी जब तक पौधा अपना जीवन काल पूरा न कर ले, तब तक पहली चार पत्तियों तक कोई भी शाखा न बढ़ने दें.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today