खेती-किसानी में फसलों पर कीटों का लगना एक आम बात है. कीटों की बढ़ती हुई समस्या से कई बार किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना भी करना पड़ता है. लेकिन अब किसानों को कीट के हमले से परेशान होने की जरूरत नहीं है. दरअसल, अब कपास किसान राहत की सांस ले सकते हैं. उनके सबसे बड़े दुश्मन खतरनाक कीट बॉलवर्म के खिलाफ लड़ाई में एक नया हथियार शामिल हो गया है. ये हथियार AI-संचालित फेरोमोन ट्रैप है. ये मशीन AI से चलेगी और खेतों में कीटों को पकड़ने में किसानों की मदद करेगी. आइए जानते हैं क्या है AI से चलने वाली इस मशीन की खासियत और फायदे.
फेरोमोन ट्रैप मशीन खास तौर पर उन इलाकों के लिए फायदेमंद है, जहां पिंक बॉलवर्म का प्रकोप बहुत ज्यादा होता है. हालांकि, कम कीट वाले इलाकों में भी, बॉलवर्म का जल्दी पता लगाने से प्रकोप को रोका जा सकता है. ऐसे में कपास की खेती करने वाले राज्यों में इस मशीन का उपयोग बड़े तौर पर किया जा सकता है. वहीं बात करें कपास उत्पादन वाले राज्यों की तो इसमें महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, राजस्थान, पंजाब और कर्नाटक शामिल हैं.
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फेरोमोन ट्रैप एक ऐसी गंध छोड़ता है जो पिंक बॉलवर्म मॉथ को आकर्षित करती है. वहीं, ये ट्रैप AI तकनीक से लैस है. ये मशीन पकड़े गए मॉथ, विशेष रूप से पिंक बॉलवर्म की पहचान कर सकता है. साथ ही यह पकड़े गए मॉथ की संख्या का विश्लेषण करता है, जिससे किसानों को उनके खेतों में कीटों की गतिविधि का वास्तविक समय का डेटा मिलता है. इसके अलावा डेटा के आधार पर सिस्टम किसानों को समय पर कीट अलर्ट भेजता है. साथ ही किसानों को कीट प्रबंधन की सलाह भी मिलती है, जिससे उन्हें पिंक बॉलवर्म की आबादी बढ़ने से पहले कार्रवाई करने में मदद मिलती है.
वास्तविक समय के डेटा से किसान महत्वपूर्ण नुकसान होने से पहले फसलों को बचा कर सकते हैं. वहीं, AI-संचालित सलाह उन्हें सबसे प्रभावी कीट नियंत्रण विधियों को चुनने में मदद करती है, जिससे समय, धन और संसाधनों की बचत होती है. साथ ही इस मशीन के इस्तेमाल से बढ़ी हुई फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है और बेहतर क्वालिटी का कपास मिलता है.
यह मशीन कृषि के भविष्य की एक झलक मात्र है. आजकल खेती से लेकर मौसम से जुड़ी जानकारी जानकारी के लिए एआई तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. इससे किसानों को रियल टाइम में हर तरह की जानकारी मिलती है. इससे किसानों को अपनी फसलों का प्रबंधन करने में मदद मिलती है. एआई की मदद से मौसम से जुड़ी जानकारी किसानों को पहले मिल जाती है जिससे वे फसल बचाव के उपायों पर तुरंत काम करते हैं. आने वाले समय में इस तरह की तकनीक और भी तेजी से बढ़ने की संभावना है.
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