देश की सियासत में पराली नाम का एक नया चैप्टेर जुड़ गया है. दिल्ली-एनसीआर में पराली को लेकर खासा हो-हल्ला होता है. सेटेलाइट से पराली पर नजर रखी जाती है. पराली जलाने पर किसानों के खिलाफ एफआईआर तक हो जाती हैं. वजह जो भी रहती हो, लेकिन खेत में पराली जलाने के बहुत सारे केस सामने आते हैं. पराली जलाना किसान के लिए खौफ और बदनामी का सबब बन गया है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज किसान अपने खेत की पराली का इस्तेमाल करने के साथ ही दूसरे किसान की पराली खरीद रहे हैं.
यह दावा है पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना के वाइस चांसलर डॉ. सतबीर सिंह गोसाल का. उनका कहना है कि पीएयू की सरफेस सीडिंग ऑफ व्हीट टेक्नोलॉजी से यह सब मुमकिन हुआ है. इसके चलते पराली का निपटान तो हो ही रहा है साथ में गेहूं और भूसे का उत्पादन बढ़ने के साथ ही पानी और खाद का खर्च भी कम हो रहा है.
ये भी पढ़ें- एक्सपर्ट बोले, स्कूल-कॉलेज से निकलेगा छोटे किसानों को बचाने का रास्ता, जानें कैसे
वीसी डॉ. सतबीर सिंह गोसाल ने किसान तक को बताया कि हमने तीन साल यूनिवर्सिटी के खेतों में सरफेस सीडिंग ऑफ व्हीट टेक्नोलॉजी से गेहूं की बुवाई की. इसमे करना यह होता है कि जिस दिन धान की कटाई हो तो उसी दिन गेहूं का बीज बो देना चाहिए. साथ ही फर्टिलाइजर भी डाल देना चाहिए. इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि धान की कटाई और गेहूं की बुवाई के बीच कुछ दिन का अंतर रखा जाए.
बुवाई से पहले पानी लगाने की जरूरत भी नहीं है. ये सब करने के बाद घास कटर कम स्प्रेडर को चला देना चाहिए. यह पराली के चार-चार इंच के टुकड़े कर उसे खेत में फैला देता है. दिन में यह सब करने के बाद शाम को पानी लगा देना चाहिए. इतना सब होने के बाद आप देखेंगे कि एक-एक बीज फूट कर ऊपर आ जाता है.
ये भी पढ़ें- जलवायु परिवर्तन: एक्सपर्ट बोले, खेती में अब हर छोटे काम के लिए भी जरूरी है मशीन, जानें वजह
डॉ. सतबीर सिंह गोसाल ने बताया कि सरफेस सीडिंग ऑफ व्हीट टेक्नोलॉजी का पहला सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि आपकी पराली का निपटान हो जाता है, वो भी उसे जलाए बिना. दूसरा फायदा ये है कि गेहूं में एक पानी की बचत हो जाती है. दूसरे एक एकड़ में एक से डेढ़ क्विंटल तक गेहूं का उत्पादन बढ़ जाता है. भूसे की बात करें तो एक हेक्टेयर में एक ट्रॉली भूसा ज्यादा होता है. क्योंकि पराली को मिट्टी में मिला दिया तो उसने एक बढ़िया खाद के रूप में काम किया, जिसके चलते खेत में खाद कम लगानी पड़ी.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today