Paddy: इस विधि से करें धान की बुआई तो 6000 रुपये प्रति एकड़ बचेगा खर्च, पानी भी कम लगेगा

Paddy: इस विधि से करें धान की बुआई तो 6000 रुपये प्रति एकड़ बचेगा खर्च, पानी भी कम लगेगा

धान जल प्रधान फसल है जिसमें पानी की बहुत जरूरत होती है. पानी के इस खर्च को देखते हुए नई तकनीकों का इजाद किया जा रहा है. इन तकनीकों की मदद से खेती की लागत, श्रम और पानी की बचत की जा रही है. ऐसी ही एक तकनीक है डीएसआर जिसके बारे में यहां जानने की कोशिश करेंगे.

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इस विधि से करें धान की बुआई तो 6000 रुपये प्रति एकड़ बचेगा खर्च, पानी भी कम लगेगाधान की सीधी बुवाई करने का समय. (सांकेतिक फोटो)

धान की सीधी बुआई या डीएसआर एक ऐसी तकनीक है, जिसमें धान के पौधे की बिना नर्सरी तैयार किए सीधे खेत में बुआई की जाती है. इस विधि में सबसे खास बात यह है, कि किसानों को धान की रोपाई में आने वाले खर्च और श्रम दोनों की बचत होती है. इस तकनीक से लागत में लगभग 6000 रुपये/एकड़ की कमी आती है. इस विधि में 30 प्रतिशत कम पानी का उपयोग होता है. रोपाई के दौरान, 4-5 सें.मी. पानी की गहराई को बनाए रखते हुए खेत को लगभग रोजाना सिंचित करना पड़ता है.

धान को रोपाई, सूखा-डीएसआर और गीला-डीएसआर 3 प्रमुख तरीकों से खेत में लगाया जा सकता है. ये विधि या तो भूमि की जुताई या फसल लगाने की विधि या दोनों में दूसरों से भिन्न होती हैं.

सूखी डीएसआर विधि

सूखी डीएसआर विधि में धान को अलग-अलग तरीकों का उपयोग करके लगाया जाता है. इसमें जीरो टिलेज या पारंपरिक जुताई के बाद बिना पके हुए, मिट्टी पर सूखे बीजों का छिड़काव, अच्छी तरह से तैयार खेत में डिबल्ड विधि और बाद में पंक्तियों में बीजों की ड्रिलिंग शामिल है.

गीला-डीएसआर में पहले से अंकुरित बीजों को पोखर वाली मृदा पर बोना शामिल है. जब पहले से अंकुरित बीजों को पोखर वाली मिट्टी की सतह पर बोया जाता है, तो बीज का वातावरण ज्यादातर वायवीय और एरोबिक होता है. इसे एरोबिक गीला-डीएसआर के रूप में जाना जाता है. जब पहले से अंकुरित बीजों को पोखर वाली मृदा में बोया जाता है, तो बीज का वातावरण ज्यादातर अवायवीय होता है और इसे एनारोबिक गीला डीएसआर कहा जाता है. एरोबिक और एनारोबिक के तहत गीला-डीएसआर, बीजों को या तो प्रसारित किया जा सकता है या ड्रम सीडर 81 या अवायवीय सीडर के साथ फरों ओपनर का उपयोग करके बोया जा सकता है.

धान की उपयुक्त किस्म से अधिक उपज

सिंचित और वर्षा जल की कमी को देखते हुए एरोबिक धान की संभावनाएं देश के विभिन्न धान उगाने वाले क्षेत्रों में बढ़ती जा रही हैं. उपयुक्त किस्म का चयन और उन्नत सस्य क्रियाएं अपनाकर धान की सीधी बुआई से कठिन परिस्थितियों में भी अधिक उत्पादकता और लाभ कमाया जा सकता है. इस विधि में अधिक उपज देने वाली किस्मों को लेवरहित या अनपडल्ड दशा में देसी हल या सीड ड्रिल अथवा पैडीड्म सीडर से सीधे खेत में बुआई करते हैं. 

इस विधि से धान की बुआई का उपयुक्त समय जून ही है. इस विधि में 25-30 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर को 25×10 सें.मी. की दूरी पर, खेत में पलेवा कर सीधी बुआई करते हैं. एरोबिक धान के लिए 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 60 कि.ग्रा. पोटाश के साथ 25-30 कि.ग्रा./हेक्टेयर जिंक सल्फेट की सिफारिश की जाती है.

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