बिहार में बीते कुछ वर्षों के दौरान विदेशी ड्रैगन फ्रूट की खेती का क्रेज तेजी से बढ़ा है. इस विदेशी फल की खेती से किसान अच्छी आमदनी भी कर रहे हैं. हालांकि, तुड़ाई के समय इस फल को तोड़ने के लिए उपयुक्त यंत्र न होने के कारण किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. लेकिन, अब किसानों की यह समस्या दूर हो जाएगी, क्योंकि बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर ने ड्रैगन फ्रूट की तुड़ाई के लिए दो हैंड हेल्ड यंत्र बनाए हैं. खास बात यह है कि इन दोनों यंत्रों को भारतीय पेटेंट भी मिल चुका है. इससे किसानों को अब ड्रैगन फ्रूट की तुड़ाई में किसी तरह की कठिनाई नहीं होगी.
बीएयू के बनाए गए ये दोनों यंत्र नवोन्मेषी हैं और इनका इस्तेमाल करना बेहद आसान है. इनसे फलों की तुड़ाई कम खर्च में प्रभावी ढंग से की जा सकती है. यह उपकरण ड्रैगन फ्रूट बागानों में दक्षता और उत्पादकता बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगे और किसानों को अधिक लाभ मिल सकेगा.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के बनाए गए दोनों ड्रैगन फ्रूट पीकर को बनाने में डॉ. वसीम सिद्दीकी, डॉ. शमीम, डॉ. सत्यनारायण, डॉ. महेश, डॉ. सिंह, डॉ. फौजिया और डॉ. सनोज कुमार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. आमतौर पर ड्रैगन फ्रूट को घुमाकर तोड़ा जाता है, लेकिन यह पौधा कैक्टस प्रजाति का होने के कारण कोमल होता है. इससे पौधे को नुकसान पहुंचता है और फल का कुछ हिस्सा टूटकर पौधों पर रह जाता है, जिससे शेल्फ लाइफ और बाजार मूल्य प्रभावित होता है.
बिहार के लगभग आधे जिलों में ड्रैगन फ्रूट की खेती छोटे और बड़े पैमाने पर की जा रही है. बिहार सरकार ने इस फल की खेती को बढ़ावा देने के लिए ‘ड्रैगन फ्रूट विकास योजना’ शुरू की है, जिसके तहत राज्य के 21 जिलों में इसकी खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इस योजना के तहत किसानों को 40% तक की सब्सिडी दी जा रही है, जिससे न केवल किसानों की आय और उत्पादकता में वृद्धि होगी, बल्कि राज्य की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था भी सशक्त होगी.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने कहा, “बिहार में नई-नई बागवानी फसलों को बढ़ावा देने का लक्ष्य है. इसके लिए खेती को आसान बनाना होगा, जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें. ड्रैगन फ्रूट पिकर इसी दिशा में एक सफल प्रयास है, जिससे तुड़ाई लागत में कमी आएगी और किसानों को सीधा लाभ मिलेगा.
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