विदर्भ में किसानों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टेंशन बढ़ाए रखी है. हालांकि यहां चुनाव निपट गया है, लेकिन नतीजों पर कहीं असर न पड़ जाए, इसकी आशंका बनी हुई है. मुख्य वजह है खरीफ फसलों के गिरते दाम. कपास और सोयाबीन के दाम को लेकर किसान परेशान हैं. महीनों से किसानों ने इन उपजों को घर में स्टोर कर रखा है कि आगे चलकर अच्छे भाव मिलेंगे. लेकिन अभी तक ऐसी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है. मराठवाड़ा में भी यही हाल है. इसका सीधा असर क्या चुनाव पर पड़ेगा? इसका जवाब नतीजे आने के बाद ही मिल पाएगा.
विदर्भ क्षेत्र में 19 अप्रैल को पहले चरण के तहत वोट डाले गए थे. पहले चरण में हुई वोटिंग बीजेपी के लिए चिंताजनक है. जैसे-जैसे किसानों के बीच असंतोष बढ़ रहा है, चुनावी लड़ाई गुरुवार को आठ और निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान के लिए तैयार हो रही है. शुक्रवार यानी 26 अप्रैल को दूसरे राउंड की वोटिंग होनी है. विदर्भ और मराठवाड़ा दोनों में बीजेपी नेता खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वहीं विरोधी उम्मीदों से भरे हुए हैं.
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मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में कपास, सोयाबीन और तूर प्राथमिक खरीफ फसलें हैं. यहां पर कई किसानों ने उच्च कीमतों की उम्मीदों में कपास की फसल को स्टोर करके रखा था. हालांकि, उनकी आशाओं के बावजूद, कपास की कीमतों में अप्रैल में भी गिरावट जारी रही. इससे उन्हें निराशाजनक दरों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा. लगातार दूसरे साल कपास की कीमतों में काफी गिरावट आई है. किसान 12,000 रुपये और 13,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच कीमतों की उम्मीद कर रहे थे. जबकि मौजूदा दर गिरकर 6,800 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गई है.
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विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल-वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी निर्वाचन क्षेत्र में शु्क्रवार को वोटिंग होनी है. ये वो क्षेत्र हैं जो गंभीर कृषि संकट का सामना कर रहे हैं, जिससे किसानों में काफी असंतोष है. पहले चरण के मतदान की समीक्षा के दौरान, शुरुआती आंकड़ों से पता चला है कि किसानों के बीच यह अशांति बीजेपी उम्मीदवारों के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकती है. दूसरे चरण के मतदान में इसी तरह के मुद्दों को कम करने के लिए बीजेपी नेता अब अपने अभियान में कपास की कीमतों के मुद्दे को प्राथमिकता दे रहे हैं.
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यवतमाल जिले के रालेगांव में एक चुनावी रैली के दौरान महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि वो कपास और सोयाबीन की गिरती कीमतों के बारे में चिंतित न हो. उन्होंने वादा किया कि सरकार मौजूदा कीमतों और चुनाव के बाद किसानों द्वारा अपेक्षित कीमतों के बीच अंतर को कम कर देगी. इसके अलावा उन्होंने गारंटी दी है कि चुनाव आचार संहिता खत्म होते ही सरकार तुरंत किसानों के खातों में रकम जमा कर देगी.
लेकिन सिर्फ विदर्भ और मराठवाड़ा में ही बीजेपी नेताओं को नाराज किसानों का सामना करना पड़ रहा है, ऐसा नहीं है. महाराष्ट्र के पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में, जहां अगले महीने चुनाव होने हैं, वहां भी किसान अपनी चिंताएं जता रहे हैं. हाल ही में राज्य मंत्री चंद्रकांत पाटिल के भाषण के दौरान एक किसान ने टोकते हुए सवाल किया कि सरकार ने पिछले एक दशक में किसानों के लिए क्या किया है.
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जैसे-जैसे चुनाव सामने आएगा, यह न केवल महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार देगा, बल्कि किसानों की चिंताएं मतदान पैटर्न को किस हद तक प्रभावित करती हैं, इसके लिए एक बैरोमीटर के रूप में भी काम करेगा. जहां बीजेपी के राज्य नेताओं ने अधिकतम सीटें हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर भरोसा जताया है, वहीं विपक्षी दलों ने अपना अभियान तेज कर दिया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार किसानों के मुद्दों और कृषि संकट का समाधान करने में विफल रही है.
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