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सीमांचल की सीमा कौन पार कर पाएगा? जिसके पास पूर्णियां की चाबी वही मारेगा मैदान

सीमांचल की सीमा कौन पार कर पाएगा? जिसके पास पूर्णियां की चाबी वही मारेगा मैदान

पूर्णिया लोकसभा सीट पर बढ़त या जीत का सीधा असर आसपास के कई लोकसभा सीटों पर देखने को मिलता है. पूर्णिया लोकसभा में चुनावी गणित का असर केवल सीमांचल के सात जिलों पर ही नहीं पड़ता है बल्कि मिथिलांचल के इलाके तक इसका असर देखने को मिलता है. आपको बता दें कि पूर्णिया के अलावा सीमांचल में अररिया, मधेपुरा, सुपौल, किशनगंज, और कटिहार जैसी लोकसभा सीटें भी हैं.

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बिहार का पूर्णिया जिला चुनावों में एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है  बिहार का पूर्णिया जिला चुनावों में एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है

बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर इस बार जबरदस्त मुकाबला दिखने वाला है.  नीतीश कुमार भले ही लोकसभा चुनाव के पहले पाला बदलकर एनडीए के साथ आ गए हो लेकिन उनके भतीजे तेजस्वी यादव ने भी चुनाव में अपने छिपे पत्ते खेलने की रणनीति बना ली है. शायद यही वजह है कि अपने घूर विरोधी माने जाने वाले चेहरों को भी तेजस्वी साथ लेकर आ रहे हैं. लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद पूर्व सांसद पप्पू यादव की महागठबंधन में एंट्री इसी बात का संकेत दे रही है. पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया लेकिन विलय के लिए दिल्ली जाने से पहले रात के वक्त पप्पू पटना में लालू यादव और तेजस्वी से मिलने पहुंचे थे और माना जा रहा है कि यहीं पर मिली हरी झंडी के बाद पप्पू के लिए महागठबंधन का दरवाजा खुल गया. 

पप्पू यादव की एंट्री क्यों?

पप्पू यादव पूर्णिया और मधेपुरा से कई दफे सांसद रह चुके हैं और इस इलाके में उनका खासा प्रभाव भी माना जाता है. हालांकि अपनी पार्टी बनाने के बाद पप्पू यादव कुछ खास असर नहीं छोड़ पाए लेकिन पिछले कुछ महीनो से पप्पू यादव ने पूर्णिया में कैंप कर रखा था. पिछले दिनों पप्पू यादव ने 'प्रणाम पूर्णिया' रैली के जरिए अच्छी खासी समर्थकों की भीड़ भी जुटाई थी. पप्पू यादव पिछली दफा जब लोकसभा पहुंचे थे तब वह आरजेडी के ही उम्मीदवार थे. साल 2014 के चुनाव में पप्पू यादव ने मधेपुरा सीट से जीत हासिल की थी लेकिन बाद में वह लालू प्रसाद और उनके बेटों पर ही आक्रामक हो गए. 

पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण आरजेडी से उनका नाता टूट गया और इसके बाद पप्पू यादव ने जन अधिकार पार्टी बनाई. पप्पू यादव लगातार संघर्ष करते रहे लेकिन उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई. कई बार पप्पू यादव के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा भी उड़ती रही लेकिन कहा ये जाता है की लालू यादव के साथ रहते कांग्रेस कभी पप्पू की एंट्री का साहस नहीं जुटा पाई. अब आखिरकार लालू यादव और तेजस्वी यादव से एनओसी मिलने के बाद ही पप्पू यादव कांग्रेस में शामिल हो पाए हैं. 

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पप्‍पू यादव पर टिकीं सबकी नजरें 

पप्पू यादव अब अपनी पार्टी समेत कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. यह भी तय माना जा रहा है कि वह पूर्णिया लोकसभा सीट से महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे. पप्पू यादव पूर्णिया लोकसभा सीट से तीन दफे पहले सांसद रह चुके हैं. सबसे पहले पप्पू यादव ने 1991 में पूर्णिया से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता था. 1996 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. यहां से जीत हासिल की इसके बाद 1999 में भी पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव जीता. 

पप्पू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा से किस्मत अजमाई थी लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.  इसके बाद पप्पू यादव ने वापस पूर्णिया का रुख कर लिया. इस बार पप्पू यादव हर हाल में पूर्णिया से चुनाव लड़ना चाहते हैं. इधर एनडीए को बिहार में मैप देने का संकल्प ले चुके तेजस्वी यादव 11 वोट की अहमियत समझ रहे हैं.

यही वजह है कि पूर्णिया में मजबूत होते पप्पू यादव को तेजस्वी यादव ने अपने खेमे में लाने पर सहमति दे डाली. पप्पू यादव भी इसके लिए तैयार बैठे थे. लालू यादव से हरी झंडी मिलने के बाद उन्होंने कांग्रेस का रुख कर लिया. महागठबंधन में पप्पू यादव की एंट्री के बाद राजद, कांग्रेस समेत सभी सहयोगी दलों के नेता या दावा कर रहे हैं कि सीमांचल के इलाके में अब महागठबंधन पहले से ज्यादा मजबूत दिखेगा.

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सीमांचल के लिए पूर्णियां खास क्यों

बिहार में एनडीए का रथ रोकने के लिए कसम खा बैठे तेजस्वी यादव 2020 के विधानसभा चुनाव को नहीं भूले हैं. तेजस्वी को अच्छे से याद है कि सीमांचल के इलाके में उनकी पार्टी और महागठबंधन के खराब प्रदर्शन के कारण ही वह सरकार बनाते–बनाते रह गए थे. तेजस्वी इस बार सीमांचल में बीजेपी के विरोध में खड़े सभी छोटी–बड़ी ताकतों को अपने साथ लेकर चलना चाहते हैं. सीमांचल के बारे में एक बात कही जाती है कि इस इलाके में अगर सियासी सिक्का जमाना है तो किसी भी राजनीतिक दल के लिए पूर्णिया लोकसभा सीट से जीत की चाबी अपने पास लेनी जरूरी है. हर खेमा चाहता है कि पूर्णिया में जीत हासिल कर सीमांचल में अपना सिक्का जमाए. 

पूर्णिया लोकसभा सीट पर बढ़त या जीत का सीधा असर आसपास के कई लोकसभा सीटों पर देखने को मिलता है. पूर्णिया लोकसभा में चुनावी गणित का असर केवल सीमांचल के सात जिलों पर ही नहीं पड़ता है बल्कि मिथिलांचल के इलाके तक इसका असर देखने को मिलता है. आपको बता दें कि पूर्णिया के अलावा सीमांचल में अररिया, मधेपुरा, सुपौल, किशनगंज, और कटिहार जैसी लोकसभा सीटें भी हैं. सीमांचल इलाके की 7 लोकसभा सीटों में से 6 पर इस वक्त एनडीए का कब्जा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की तरफ से केवल एक किशनगंज की सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी.

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तीन बार जीती कांग्रेस   

इस सीट पर पिछले तीन दफे से कांग्रेसी जीत हासिल करते आई है. पूर्णिया सीट पर पप्पू यादव आखिरी बार 1999 में निर्दलीय के तौर पर जीते थे. इसके बाद यह सीट दो दफे बीजेपी ने जीती. 2014 के लोकसभा चुनाव में जब नीतीश कुमार ने अकेले चुनाव लड़ा था. उस वक्त जदयू के संतोष कुशवाहा ने यहां से जीत हासिल की. 2019 में उन्होंने नीतीश के एनडीए में रहते जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर फिर से जीत हासिल की. संतोष कुशवाहा पिछले दो टर्म से पूर्णिया के सांसद हैं. 

अब अगर उनका मुकाबला पप्पू यादव से होता है तो संतोष कुशवाहा के सांसद रहते उनके खिलाफ होने वाली एंटी इनकंबेंसी का फायदा उठाना महागठबंधन का मकसद होगा. पूर्णिया मिथिलांचल का भी हिस्सा है लिहाजा इसका असर मिथिलांचल के कुछ दूसरे जिलों पर भी देखने को मिलता है. खासतौर पर दरभंगा और खगड़िया जैसी लोकसभा सीट को भी इसके समीकरण प्रभावित करते हैं. 

पूर्णियां का सामाजिक समीकरण

पूर्णिया लोकसभा सीट में कुल वोटर्स की तादाद लगभग 18 लाख के आसपास है. इनमें 9 लाख से ज्यादा महिला मतदाता है जबकि साढ़े 8 लाख से ज्यादा पुरुष मतदाता. धार्मिक आधार पर अगर देखे तो यहां 60 फीसदी हिंदू वोटर्स और लगभग 40 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. पूर्णिया में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या तकरीबन सात लाख है. पूर्णिया लोकसभा सीट के अंदर कुल 6 विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें कोढ़ा, बनमनखी और कसबा विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल हैं. अगर जातीय समीकरण की बात करें तो पूर्णिया में ओबीसी के साथ एससी–एसटी मतदाताओं की संख्या जोड़कर 5 लाख से ऊपर चली जाती है.  यादव मतदाताओं की तादाद तकरीबन डेढ़ लाख है.  

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राजपूत और ब्राह्मण वोटर्स सबसे ज्‍यादा 

इसके अलावा सवर्ण वोटर्स में राजपूत और ब्राह्मणों की तादाद सबसे ज्यादा है.  दोनों सवर्ण जातियों को मिलाकर तकरीबन 3 लाख मतदाता हैं.  पूर्णिया लोकसभा सीट के बनमनखी विधानसभा क्षेत्र को यादव बहुल माना जाता है जबकि धमदाहा, रुपौली और पूर्णियां में सवर्ण (राजपूत+ब्राम्हण) मतदाताओं का प्रभाव है. महागठबंधन के लिहाज से देखें तो पूर्णिया की बनमनखी विधानसभा सीट के साथ-साथ कसबा और कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र में उसके लिए स्थिति मजबूत है. लेकिन बाकी की तीन विधानसभा सीटों पर एनडीए का पलड़ा भारी रह सकता है.  

2014 के लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड पर अकेले चुनाव लड़ने के बावजूद जीत गया था. तब बीजेपी को यहां हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव नतीजे के बाद कहा यह गया था कि बीजेपी के तत्कालीन सांसद उदय सिंह की कार्यशैली को लेकर पूर्णिया की जनता नाराज थी.

 इसके बाद 2019 में उदय सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर किस्मत अजमाया लेकिन तब एनडीए उम्मीदवार के तौर पर संतोष कुशवाहा ने एक बार फिर से जीत हासिल कर ली. अब संतोष कुशवाहा का भी लिटमस टेस्ट होगा जेडीयू उन्हें अगर फिर से मैदान में उतारता है तो क्या वह पप्पू यादव का मुकाबला कर पाएंगे यह देखने वाली बात होगी.

पूर्णिया के बारे में एक खास बात यह भी कही जाती है कि यहां एनडीए कैंप के वोटर और महागठबंधन खेमे के मतदाताओं की तादाद लगभग बराबर है. लेकिन उम्मीदवारों की मौजूदगी के बाद बीच के हिस्से में मौजूद लगभग 3 लाख वोटर जिधर रुख करते हैं उसे ही जीत हासिल होती है. जीत के लिए जरूरी आंकड़े में सबसे खास भूमिका ओबीसी और एससी एसटी वोटर की होती है जिनकी तादाद लगभग 5 लाख है. 

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ओवैसी फैक्टर से परेशानी

सीमांचल के इलाके में महागठबंधन के लिए एक सबसे बड़ी परेशानी ओवैसी फैक्टर है.  पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव को ओवैसी की पार्टी ने सीमांचल में झटका दे दिया था.  पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ओवैसी एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में अपने दखल का अहसास कर रहे हैं.

पूर्णिया में भी वह महागठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं. ओवैसी पूर्णिया समेत सीमांचल की सीटों पर जितना भी वोट हासिल करेंगे वह महागठबंधन के कोटे से ही कटने वाला है. इसका सीधा फायदा एनडीए गठबंधन को होगा और तेजस्वी यादव और उनकी टीम को नुकसान उठाना पड़ेगा. महागठबंधन भी इस बात को भली-भांति समझ रहा है कि ओवैसी फैक्टर बीजेपी को सीमांचल के इलाके में फायदा पहुंचा सकता है. 

महागठबंधन का रुख करने वाले पप्पू यादव के ऊपर भी इस बात का दारोमदार होगा कि वह इस फैक्टर की कार्ड कैसे निकालते हैं. एनडीए के पक्ष में दूसरी बात जो जाती है वह पूर्णिया की 6 विधानसभा सीटों में दलीय स्थिति को लेकर है. 6 में से केवल एक विधानसभा सीट इस वक्त कांग्रेस के कब्जे में है. बाकी तीन पर बीजेपी और दो पर जेडीयू का कब्जा है, हालांकि जेडीयू की महिला विधायक बीमा भारती इन दिनों नाराज हैं और इसका नुकसान एनडीए को उठाना पड़ सकता है. बीमा भारती जिस मंडल बिरादरी से आती हैं उसके वोटर्स की तादाद भी अच्छी खासी है.  

पिछले लोकसभा चुनावों का समीकरण 

पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार को 54 फ़ीसदी वोट शेयर हासिल हुआ था. जबकि कांग्रेस यहां से 32 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई थी. पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो पूर्णिया लोकसभा सीट के अंदर आने वाली 6 विधानसभा सीटों को मिलने पर एनडीए के पाले में कुल 40 परसेंट से ज्यादा वोट शेयर था. जबकि महागठबंधन खेमे के पास लगभग 35 फ़ीसदी वोट की हिस्सेदारी थी. लोक जनशक्ति पार्टी ने अकेले चुनाव लड़कर 10 फ़ीसदी से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया था जो बताता है कि इस बार चिराग पासवान के साथ रहने से बीजेपी को पूर्णिया ही नहीं सीमांचल में भी फायदा होने की उम्मीद है. 

(शशिभूषण के इनपुट के साथ)