बीएसपी से मलूक नागर का जाना और RLD में एंट्री करना, बिजनौर में बीजेपी और जयंत चौधरी को कैसे होगा फायदा

बीएसपी से मलूक नागर का जाना और RLD में एंट्री करना, बिजनौर में बीजेपी और जयंत चौधरी को कैसे होगा फायदा

पूरे देश में चुनाव का मौसम है और इस चुनावी मौसम में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से टिकट नहीं मिलने के बाद पार्टी के सांसद मलूक नागर ने सुप्रीमो मयावती को तगड़ा झटका दिया है. मालूक गुरुवार को जयंत चौधरी की पार्टी राष्‍ट्रीय लोकदल (आरएलडी) में शामिल हो गए. एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करके आरएलडी में नागर के शामिल होने की घोषणा की गई.

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 बीएसपी से मलूक नागर का जाना और RLD में एंट्री करना, बिजनौर में बीजेपी और जयंत चौधरी को कैसे होगा फायदा बीएसपी के सांसद मलूक नागर आरएलडी में हुए शामिल

पूरे देश में चुनाव का मौसम है और इस चुनावी मौसम में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से टिकट नहीं मिलने के बाद पार्टी के सांसद मलूक नागर ने सुप्रीमो मयावती को तगड़ा झटका दिया है. मालूक गुरुवार को जयंत चौधरी की पार्टी राष्‍ट्रीय लोकदल (आरएलडी) में शामिल हो गए. एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करके आरएलडी में नागर के शामिल होने की घोषणा की गई. मालूक नागर ने साल 2019 में समाजवादी पार्टी (एसपी), बीएसपी और आरएलडी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्‍होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बिजनौर सीट जीती थी. मालूक नागर ने इससे पहले साल 2009 में मेरठ से और 2014 में  बिजनौर से चुनाव लड़ा था. लेकिन तब वह दोनों ही जगह हार गए थे. 

पार्टी छोड़ने के बाद क्‍या बोले मलूक 

आरएलडी में शामिल होने के बाद, उन्होंने कहा, 'एक राजनेता के तौर पर मेरे 39 वर्षों में यह शायद पहली बार है कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा या सांसद नहीं बनूंगा.' इस बयान के साथ ही उन्‍होंने आम चुनावों के लिए अपनी स्थिति को भी स्‍पष्‍ट कर दिया. मलूक ने कहा कि उन्होंने बीएसपी छोड़ने का फैसला किया लेकिन यह भी याद दिलाया कि कैसे युवावस्‍था के समय वह आरएलडी से जुड़े थे. उन्‍होंने बताया कि उस समय वह पार्टी में युवा विंग के अध्यक्ष थे. 

इस बार आम चुनावों से पहले आरएलडी राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के साथ आ गई है. आरएलडी ने बिजनौर सीट से जाट उम्मीदवार चंदन चौहान को मैदान में उतारा है. बिजनौर सीट पार्टी को बीजेपी के साथ हुए समझौते के तहत मिली थी. मलूक नागर ने कहा कि वह न केवल रालोद उम्मीदवारों बल्कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उन उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार में मदद करेंगे जिनके लिए जयंत सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं. 

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आरएलडी में शामिल होने की कहानी  

लेकिन उनके दोबारा आरएलडी में शामिल होने के पीछे की कहानी क्या है? सूत्रों का कहना है कि गुर्जर नेता बिजनौर से अपना टिकट काटे जाने से बसपा से नाराज हैं. इसकी वजह से बाकी दलों के साथ भी बैठक और बातचीत का दौर चला. सूत्रों की मानें तो बीएसपी के साथ रिश्ते में खटास आने के बाद नागर आरएलडी के साथ-साथ बीजेपी के भी संपर्क में थे. 

मलूक नागर ने सीटों की घोषणा से पहले जयंत चौधरी से मुलाकात की थी. वह आरएलडी के टिकट पर बिजनौर से चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन बातचीत उस स्तर तक नहीं पहुंच पाई थी. इसलिए नेताओं के बीच सहमति की कोशिश की गई. सूत्रों के मुताबिक भविष्य में नागर को आरएलडी से राज्यसभा भेजा जा सकता है क्योंकि आरएलडी को बीजेपी ने गठबंधन वार्ता में वह जगह दे दी है जहां पर वह यह फैसला कर सकती है. यह भी पता चला है कि मलूक नागर बीजेपी में शामिल होना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक कारणों से उन्हें टाल दिया गया क्योंकि इससे बसपा और परेशान हो सकती थी. 

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सबसे अमीर राजनेताओं में एक 

मलूक नागर आज उत्तर प्रदेश के सबसे अमीर राजनेताओं और व्यवसायी में से एक हैं. जब उन्होंने साल 2009 में चुनाव लड़ा था, तो उनके हलफनामे के अनुसार, उनकी घोषित संपत्ति 85 करोड़ से ज्‍यादा थी. जबकि साल 2019 में उन्होंने 115 करोड़ की अचल संपत्ति के साथ 249 करोड़ की संपत्ति की घोषणा की थी. उन पर सात आपराधिक मामलों की भी जानकारी है जो उन पर दायर किए गए थे. साल 2020 में मलूक नागर को इनकम टैक्स की छापेमारी का भी सामना करना पड़ा था.

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बिजनौर का जाति विभाजन 

  • कुल 17 लाख वोट 
  • 6 लाख मुसलमान
  • 2.7 लाख - दलित
  • 2.1 लाख जाट
  • 1.4 लाख -गुर्जर
  • 60,000 - सैनी

जातीय समीकरण

  • मुस्लिम: 41 फीसदी
  • जाटव: 15 फीसदी
  • जाट: 7 फीसदी
  • गुज्जर: 6 फीसदी
  • सैनी: 6 फीसदी
  • राजपूत: 5 प्रतिशत

मतदाताओं पर डालेंगे कितना असर 

एक गुर्जर नेता के रूप में मलूक नागर ओबीसी गुर्जर मतदाताओं पर कुछ प्रभाव डाल सकते हैं. इन मतदाताओं के पास 1.40 लाख मजबूत वोट हैं और इन्‍हें यूपी में आरएलडी-बीजेपी गठबंधन के लिए मजबूत करने की जरूरत होगी. बिजनौर सीट का जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है. इस निर्वाचन क्षेत्र में छह लाख से ज्‍यादा मुस्लिम मतदाता हैं, जो क्षेत्र के मतदाताओं का 41 फीसदी से ज्‍यादा  हैं.  हालांकि, आज़ादी के बाद से सिर्फ एक मुस्लिम नेता, कांग्रेस पार्टी के अब्दुल लतीफ बिजनौर से सांसद चुने गए थे. उन्‍होंने साल 1957 में लोकसभा का चुनाव जीता था. यहां तक कि मायावती भी 1989 में बिजनौर से सांसद थीं. 

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साल 2014 में हारे चुनाव 

मलूक नागर साल 2014 में बिजनौर से हार गए क्योंकि वह मुसलमानों का समर्थन हासिल करने में नाकाम रहे थे. यूपी में मुसलमान परंपरागत रूप से एसपी के पक्ष में वोट करते हैं.  साल 2019 में आरएलडी-एसपी-बीएसपी के समर्थन से मलूक नागर ने सीट जीती है. लेकिन इस बार मुकाबला आसान नहीं होने वाला है क्योंकि एसपी और बीएसपी साथ नहीं हैं.  गठबंधन और आरएलडी ने बीजेपी के साथ जाने का विकल्प चुना है. बसपा ने जाट बिजेंद्र सिंह को और सपा ने अंतिम समय में यशवीर सिंह को बदलकर दीपक सैनी को मैदान में उतारा है.

(मिलन शर्मा की रिपोर्ट)

 

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