झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के तकनीकी सहयोग से यूपी सरकार का उद्यान विभाग, बुंदेलखंड इलाके में मौजूद चित्रकूट और झांसी मंडल के सात जिलों में अलग अलग फलों के क्लस्टर बनाने की योजना को आगे बढ़ा रहा है. इनमें नींबू वर्ग के खट्टे फलों के अलावा अनार, अंजीर, केला और एप्पल बेर से लेकर ड्रैगन फ्रूट तक, अन्य फलों के क्लस्टर शामिल हैं.
विभाग का दावा है कि इस परियोजना से किसानों की आय में इजाफा करना आसान होगा. फलों की खेती की ओर किसानों को मोड़ने का एक अन्य मकसद, पानी और अन्य संसाधनों की अधिकता वाली गेहूं एवं धान की फसलों पर किसान की निर्भरता को घटाया जाएगा. उद्यान विभाग ने बुंदेलखंड को यूपी की फलपट्टी बनाने के लिए बुंदेलखंड औद्यानिक विकास योजना तैयार की है.
झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा अशोक कुमार सिंह ने 'किसान तक' को बताया कि भारत सरकार ने सिर्फ यूपी ही नहीं बल्कि बुंदेलखंड में शामिल मध्य प्रदेश के इलाके में भी किसानों को फल उत्पादन एवं प्रसंस्करण की नई तकनीक मुहैया कराने की जिम्मेदारी इस विश्वविद्यालय को सौंपी है. डाॅ सिंह ने कहा कि इस मकसद को पूरा करते हुए ड्रोन तकनीक से फलदार पेड़ों में लगने वाले रोगों की पहचान करने एवं दवा का छिड़काव करने की सुविधा इस इलाके के दोनों राज्यों के सभी 14 जिलों के किसानों को मुहैया कराना शुरू कर दिया है.
विश्वविद्यालय के शिक्षा प्रसार विभाग के निदेशक डॉ एस एस सिंह ने बताया कि बुंदेलखंड में फलों की खेती के प्रति किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सफल प्रयोग किए गए हैं. इसके तहत ड्रेगन फ्रूट और स्ट्रॉबेरी की साझा खेती भी शामिल है. उन्होंने बताया कि ऐसे लघु एवं सीमांत किसान जिनके पास बहुत उपजाऊ जमीन नहीं है, उनके लिए कम जमीन में एक साथ इन दोनों फलों की खेती करना सिखाया जा रहा है. इसमें जमीन की सतह पर स्ट्रॉबेरी और सतह से ऊपर ड्रेगन फ्रूट की उपज ली जा सकती है.
झांसी और चित्रकूट मंडल के उप निदेशक विनय कुमार ने 'किसान तक' को बताया कि बुंदेलखंड इलाका नींबू वर्गीय फलों की खेती के लिए उपयुक्त है. इस इलाके में बहुत पहले से इन फलों की खेती की जाती रही है. कालांतर में खाद्यान्न, दलहन और तिलहन की खेती का प्रसार होने के कारण फलों की खेती सिमट गई. अब इसे फिर से क्लस्टर में शुरू किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि झांसी में अनार और केले का क्लस्टर बनाया जा रहा है. इसी तरह जालौन में भी केला, ललितपुर में मौसमी, हमीरपुर और महोबा में किन्नू, बांदा में संतरा और चित्रकूट में मौसमी एवं अमरूद के क्लस्टर बनाए गए हैं. उन्होंने बताया कि पिछले साल हमीरपुर में 10 हेक्टेयर का एक क्लस्टर अंजीर की खेती के लिए बनाया जा चुका है.
उन्होंने कहा कि हर जिले में 1000 हेक्टेयर का क्लस्टर सिर्फ फलों की खेती के लिए बनाया गया है. इसमें 500 हेक्टेयर में किसी एक फल की फसल होगी और बाकी 500 हेक्टेयर में अन्य फलों की फसलें होंगी. इसी प्रकार एप्पल बेर का एक प्रोजेक्ट झांसी में चल रहा है, जबकि झांसी के बरुआसागर में नींबू वर्गीय फलों के लिए 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' स्थापित किया जाएगा. साथ ही बांदा में पिंड खजूर के लिए 'सेंटर ऑफ एक्सीलेंस' बनाया जाएगा. इन केंद्रों की मदद से किसानों को उन्नत बीज, पौध एवं अन्य तकनीकी सहयोग मिल सकेगा.
कुमार ने बताया कि बुंदेलखंड में पानी की कमी को देखते हुए फलों में सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन को लगाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसका सफल प्रयोग झांसी जिले में केले की खेती के लिए किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि केला ही नहीं, अन्य सभी फलों की खेती में सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक को अनिवार्य तौर पर लगाया जा रहा है. ड्रिप सिस्टम लगवाने के लिए छोटे किसानों को 90 प्रतिशत एवं अधिक जमीन वाले बड़े किसानों को 80 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है.
कुमार ने कहा कि पिछले 2 सालों में बुंदेलखंड इलाके का मौसम तेजी से बदला है. इस दौरान किसानों की दलहन और तिलहन की फसलें बड़े पैमाने पर अनयिमित बारिश के कारण बर्बाद हो गईं. इससे किसानों का बहुत नुकसान हुआ. है.किसानों ने इस बात को महसूस कर बदलाव का रास्ता चुना है. इसमें पहले से फलों की खेती कर रहे किसानों को हो रहे मुनाफे को देखकर भी किसान अब अपना रुख फलोंं की खेती की ओर कर रहे हैं.
फलों की खेती से मुनाफे के सवाल पर कुमार ने कहा कि नींबू वर्ग की ऐसी कोई फसल नहीं है जिसमें सालाना, प्रति हेक्टेयर 4 से 5 लाख रुपये का शुद्ध लाभ किसान को न मिले. किसानों को मालूम है कि गेहूं और धान सहित अन्य पारंपरिक फसलों में 50 से 60 हजार रुपये का लाभ हो पाता है. ऐसे में फलों से जब 5 गुना तक मुनाफा होते देख किसानों का रुख बदलना अब आसान हुआ है.
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