उत्तर प्रदेश में रेशम उत्पादन अब किसानों के लिए अतिरिक्त आय का मजबूत जरिया बन चुका है. कृषि पर आधारित यह कुटीर उद्योग न सिर्फ किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है बल्कि ग्रामीण युवाओं को स्थानीय स्तर पर स्वरोजगार भी दे रहा है. प्रदेश की जलवायु, भौगोलिक विविधता और पर्यावरण रेशम उद्योग के लिए पूरी तरह अनुकूल हैं. शहतूती, टसर और एरी, तीनों तरह का रेशम उत्पादन प्रदेश के 57 जनपदों में हो रहा है. शहतूती रेशम मुख्य रूप से मैदानी और तराई क्षेत्र में, अरण्डी आधारित एरी रेशम यमुना के समीपवर्ती जिलों में और टसर रेशम विन्ध्य और बुंदेलखण्ड क्षेत्र में प्रचलित है.
रेशम कीटों के भोज्य पौधों जैसे शहतूत, अरण्डी, अर्जुन और आसन के वृक्षों की खेती कर किसान इनकी पत्तियों से कीटपालन करते हैं. शहतूती क्षेत्र में चार, अरण्डी क्षेत्र में तीन और टसर क्षेत्र में दो कीटपालन फसलें सालाना ली जाती हैं. रेशम उत्पादन के प्रमुख चरणों में कीटाण्ड उत्पादन, कीटपालन, कोया उत्पादन और धागाकरण शामिल हैं. यह उद्योग न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि रोजगार सृजन में भी अहम भूमिका निभा रहा है. प्रदेश सरकार पौध उत्पादन, वृक्षारोपण, कोया उत्पादन और धागाकरण जैसे कार्यों को प्रोत्साहित कर रही है.
राज्य के लखीमपुर खीरी, गोण्डा, श्रावस्ती, बलरामपुर, कुशीनगर, पीलीभीत और बहराइच जैसे जिलों में सरकारी रीलिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं. वहीं गोरखपुर में निजी क्षेत्र की इकाई कार्यरत है. रेशम मित्र पोर्टल के जरिए लाभार्थी ऑनलाइन पंजीकरण कर सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं. एनजीओ, एफपीओ और स्वयं सहायता समूहों को भी इस अभियान से जोड़ा जा रहा है.
बरकछा, मिर्जापुर स्थित लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल राजकीय रेशम प्रशिक्षण संस्थान में अब तक 484 लाभार्थियों को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया गया है. महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से एसआरएलएम और रेशम विभाग ने मिलकर रेशम सखी योजना के तहत 5 वर्षों में 5000 समूहों की 50000 महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य तय किया है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में 2025-26 के लिए मुख्यमंत्री रेशम विकास योजना के तहत एक करोड़ रुपये के बजट की स्वीकृति दी गई है. इससे बहराइच, श्रावस्ती, लखीमपुर, सीतापुर, गोण्डा, बलरामपुर, बस्ती, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, बिजनौर और सहारनपुर में रेशम उत्पादन को नई रफ्तार मिलेगी.
प्रदेश में ककून की पारदर्शी बिक्री के लिए sericulture.eservicesup.in पर ई-मार्केटिंग की व्यवस्था शुरू की गई है. वर्ष 2024-25 में रेशम उत्पादन में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है. वहीं ‘सिल्क समग्र 2’ योजना के तहत शहतूती सेक्टर के दो और एरी सेक्टर के एक एफपीओ के 300 किसानों को जोड़ने के लिए 542.312 लाख रुपये की परियोजनाएं शुरू की गई हैं.
एग्रोफॉरेस्ट्री योजना के तहत जनपद सोनभद्र में टसर रेशम उत्पादन के लिए 60 हेक्टेयर क्षेत्र में 1.12 लाख पौधों का वृक्षारोपण कराया गया है. देखा जाए तो अब रेशम उत्पादन अब प्रदेश में ग्रामीण समृद्धि और स्वरोजगार का नया पर्याय बनता जा रहा है.
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