ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है, जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में मदद करती है. यह फसल खासतौर पर दो महीनों के लिए बोई जाती है और इसके बाद इसे मिट्टी में मिला दिया जाता है. इससे मिट्टी में जैविक पदार्थ, नमी और पोषक तत्व बढ़ते हैं, जिससे अगली फसल को फायदा होता है. सरकार ढैंचा की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रति एकड़ 2,000 रुपये का प्रोत्साहन देती है.
इसी कड़ी में हरियाणा से एक बड़ी खबर आई है जहां हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, किसानों द्वारा किए गए ढैंचा की खेती के लगभग 47% दावे झूठे पाए गए. कुल 26,942 एकड़ भूमि में से सिर्फ 14,184 एकड़ पर ही वाकई में ढैंचा की बुवाई की गई थी. बाकी 12,788 एकड़ के दावे फर्जी निकले.
विभाग ने 1,181 कर्मचारियों की मदद से राज्य के 1,457 गांवों में फील्ड निरीक्षण और सैटेलाइट निगरानी के ज़रिए यह सत्यापन किया. सत्यापन से यह भी पता चला कि सोनीपत (2,208 एकड़), मेवात (2,539 एकड़) और जींद (1,510 एकड़) जिले सबसे अधिक फर्जी दावों वाले रहे.
कृषि विभाग के उपनिदेशक डॉ. राजबीर सिंह ने बताया, "कई किसानों ने ढैंचा की बुवाई किए बिना ही सब्सिडी पाने के लिए आवेदन कर दिया." इससे यह साफ हो गया है कि कुछ लोग सरकारी योजनाओं का गलत फायदा उठा रहे हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार, ढैंचा मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है और फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम और आयरन जैसे आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ाता है. यह मिट्टी की संरचना सुधारने, नमी बनाए रखने, कटाव रोकने और खरपतवार नियंत्रण में भी मदद करता है.
कृषि विभाग इस साल 80% सब्सिडी पर किसानों को ढैंचा का बीज उपलब्ध करा रहा है. विभाग का उद्देश्य है कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस लाभदायक फसल को अपनाएं और मिट्टी की सेहत को सुधारें.
ढैंचा की खेती न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह किसानों को भविष्य में रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता से भी बचाती है. लेकिन अगर योजनाओं का दुरुपयोग होता रहेगा, तो इससे न केवल सरकार को नुकसान होगा, बल्कि किसानों का भरोसा भी टूटेगा. जरूरी है कि किसान इस योजना का सही तरीके से लाभ उठाएं और टिकाऊ खेती की दिशा में ईमानदारी से कदम बढ़ाएं.
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