उत्तर प्रदेश में नए साल की शुरुआत से ही मौसम का मिजाज बिगड़ चुका है. राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के बाकी हिस्सों में भी शीतलहर का प्रकोप जारी है. वही ऐसे में कोहरे और पाले से चना और मटर की फसल को खतरा मंडराने लगा है. महंगे बीज और महंगी खाद के माध्यम से किसानों ने चना और मटर की फसल की बुवाई की थी लेकिन अब वहीं कोहरे और पाले के चलते उनकी फसलों पर खतरा मंडराने लगा है. ऐसे में किसानों को कृषि विभाग के द्वारा एहतियात बरतने की सलाह भी दी जा रही है. बुंदेलखंड क्षेत्र में सबसे ज्यादा चना और मटर की फसल बोई जाती है. चना और मटर और हर के लिए कोहरा काफी घातक माना जाता है. कृषि विभाग के प्लांट प्रोटक्शन प्रभाग के असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ एलएस यादव ने बताया कि कोहरा पड़ने पर तापमान गिरने से फसल का बढ़ना धीमा हो जाता है. फसल की देखरेख में किसानों को खास सावधानी बरतनी चाहिए. ऐसे में झुलसा रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है. इस रोग के प्रभाव से फसल की पत्तियां किनारे की तरफ से भूरे रंग की होकर सूखने लगती है. वही मटर में कोहरे और पाले की वजह से बुकनी रोग लगता है जो काफी ज्यादा नुकसानदायक माना गया .
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बुंदेलखंड में चना और मटर की फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है. शीतलहर के चलते तापमान में काफी ज्यादा गिरावट हुई है. वहीं नए साल की शुरुआत से ही कोहरे का प्रकोप भी बढा है. ऐसे में कृषि विभाग ने फसलों की सुरक्षा के लिए एडवाइजरी भी जारी की है. कोहरे के दौरान रात में पढ़ने वाले पाला की स्थिति में फसलों को अधिक नुकसान होता है. कृषि विभाग के प्लांट प्रोटक्शन की असिस्टेंट डायरेक्टर डॉ एल एस यादव ने बताया है कि शीतलहर और पाले से फसलों की सुरक्षा के लिए हल्की सिंचाई करना काफी ज्यादा लाभप्रद रहता है. पाला पड़ने से चने की फसल में फली बेधक कीट लगता है जिससे बचाव के लिए हल्की सिंचाई करें और सल्फर का छिड़काव करें. इसके अलावा इल्ली का का प्रकोप होता है. इसके लिए क्लोरोपायरी फ़ास का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
कोहरा और पाला पड़ने से मटर की फसल में बुकनी रोग लग जाता है. इस रोग के कारण पत्तियों और डंठल पर सफेद कीड़े जैसे दाग पड़ जाते हैं. इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है और मटर की फसल में दाने नहीं पड़ते हैं. इसलिए किसानों को हल्की सिंचाई के साथ-साथ प्रति हेक्टेयर 2 लीटर सल्फर का छिड़काव करना चाहिए.
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