मक्के के बाबत एक बहुत प्रचलित पहेली है,'हरी थी मन भरी थी, लाख मोती जड़ी थी, राजा जी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी'. सबने इसे बचपन में सुनी होगी. इसमें मक्के को रानी और किसान को राजा कहा गया है. वाकई में बहुउपयोगी मक्का फसलों की रानी है. इसे वैज्ञानिक तरीके से बोने वाला किसान राजा बन सकता है. किसानों की आय बढ़े. वह खुशहाल हों यही योगी सरकार का भी यही लक्ष्य है. इसीलिए पूरे प्रदेश को त्वरित मक्का विकास कार्यक्रम के तहत आच्छादित किया गया है. सरकार मक्के के हर तरह के बीज पर किसानों को प्रति क्विंटल बीज पर बीज 15000 रुपए की दर से अनुदान दे रही है.
इस अनुदान से संकर, देशी पॉप कॉर्न, बेबी कॉर्न तथा स्वीट कॉर्न के बीज भी आच्छादित हैं. पर्यटक की अधिकता वाले क्षेत्र में देशी पॉप कॉर्न, बेबी कॉर्न तथा स्वीट कॉर्न की अधिक मांग है. इसलिए कार्यक्रम के तहत सरकार इनको भी बढ़ावा दे रही है. एक्टेंशन प्रोगाम के तहत वैज्ञानिक जगह- जगह किसान गोष्ठियों में जाकर किसानों को मक्का के उत्पादन, आच्छादन बढ़ाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं. करीब हफ्ते भर पहले यहां लखनऊ में भी राज्य स्तरीय कार्यशाला में इन मुद्दों पर चर्चा हुई थी. उसे किसानों के लिए कैसे अधिकतम लाभदायी बनाया जाय,इस पर चर्चा हुई थी.
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने दूसरे कार्यकाल में मक्के का उत्पादन 2027 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए तय अवधि में इसे बढ़ाकर 27.30 लाख मीट्रिक टन करने का लक्ष्य है. इसके लिए रकबा बढ़ाने के साथ प्रति हेक्टेयर प्रति कुंतल उत्पादन बढ़ाने पर भी बराबर का जोर होगा. इसके लिए योगी सरकार ने "त्वरित मक्का विकास योजना" शुरू की है. इसके लिए वित्तीय वर्ष 2023/2024 में 27.68 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
त्तर प्रदेश के कृषि निदेशक डॉ जितेंद्र कुमार तोमर ने बताया कि अभी प्रदेश में करीब 8.30 लाख हेक्टेयर में मक्के की खेती होती है. कुल उत्पादन करीब 21.16 लाख मीट्रिक है. प्रदेश सरकार की मदद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से संबद्ध भारतीय मक्का संस्थान भी कर रहा है. धान और गेंहू के बाद यह खाद्यान्न की तीसरी प्रमुख फसल है. उपज और रकबा बढाकर 2027 तक इसकी उपज दोगुना करने के लक्ष्य के पीछे मक्के का बहुपयोगी होना है. अब तो एथनॉल के रूप में भविष्य में इसकी संभावनाएं और बढ़ गई हैं.
डॉ जितेंद्र कुमार तोमर ने कहा कि बात चाहे पोषक तत्वों की हो या उपयोगिता की. बेहतर उपज की बात करें या सहफसली खेती या औद्योगिक प्रयोग की. हर मौसम (रबी, खरीफ एवं जायद) और जलनिकासी के प्रबंधन वाली हर तरह की भूमि में होने वाले मक्के का जवाब नहीं.
मालूम हो कि मक्के का प्रयोग ग्रेन बेस्ड इथेनॉल उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों,कुक्कुट एवं पशुओं के पोषाहार, दवा, कास्मेटिक, गोद, वस्त्र, पेपर और एल्कोहल इंडस्ट्री में भी इसका प्रयोग होता है. इसके अलावा मक्के को आटा, धोकला, बेबी कार्न और पाप कार्न के रूप में तो ये खाया ही जाता है. किसी न किसी रूप में ये हर सूप का अनिवार्य हिस्सा है. ये सभी क्षेत्र संभावनाओं वाले हैं.
डॉ तोमर बताते हैं कि आने वाले समय में बहुपयोगी होने की वजह से मक्के की मांग भी बढ़ेगी. इस बढ़ी मांग का अधिक्तम लाभ प्रदेश के किसानों को हो इसके लिए सरकार मक्के की खेती के प्रति किसानों को लगातार जागरूक कर रही है. उनको खेती के उन्नत तौर तरीकों की जानकारी देने के साथ सीड रिप्लेसमेंट (बीज प्रतिस्थापन) की दर को भी बढ़ा रही है. किसानों को मक्के की उपज का वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार पहले ही इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में ला चुकी है.
मक्के में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व भी पाए जाते हैं. इसमें कार्बोहाइड्रेड, शुगर, वसा, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल मिलता है. इस लिहाज से मक्का की खेती कुपोषण के खिलाफ जंग साबित हो सकती है. इन्हीं खूबियों की वजह से मक्के को अनाजों की रानी कहा गया है.
विशेषज्ञों की मानें तो उन्नत खेती के जरिये मक्के की प्रति हेक्टेयर उपज 100 क्विंटल तक भी संभव है. प्रति हेक्टेयर सर्वाधिक उत्पादन लेने वाले तमिलनाडु की औसत उपज 59.39 कुंतल है. देश के उपज का औसत 26 कुंतल एवं उत्तर प्रदेश के उपज का औसत 2021-22 में 21.63 कुंतल प्रति हेक्टेयर था. ऐसे में यहां उपज मक्के की उपज बढाने की भरपूर संभावना है.
मक्के की तैयार फसल में करीब 30 फीसद तक नमी होती है. अगर उत्पादक किसान या उत्पादन करने वाले इलाके में इसे सुखाने का उचित बंदोबस्त न हो तो इसमें फंगस लग जाता. सरकार अनुदान पर ड्रायर मशीन उपलब्ध करा रही है. 15 लाख पर 12 लाख अनुदान दिया जा रहा. कोई भी किसान निजी रूप से या उत्पादक संगठन इस मशीन को खरीद सकता है. इसी तरह पॉप कॉर्न मशीन पर भी 10 हजार का अनुदान देय है. मक्के की बोआई से लेकर प्रोसेसिंग संबंधित अन्य मशीनों पर भी इसी तरह का अनुदान है. प्रदेश सरकार प्रगतिशील किसानों को उत्पादन की बेहतर टेक्निक जानने के लिए प्रशिक्षण के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान भी भेजती है.
कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन्नत प्रजातियों की बोआई करें. डंकल डबल, कंचन 25, डीकेएस 9108, डीएचएम 117, एचआरएम-1, एनके 6240, पिनैवला, 900 एम और गोल्ड आदि प्रजातियों की उत्पादकता ठीकठाक है. वैसे तो मक्का 80-120 दिन में तैयार हो जाता है. पर पापकार्न के लिए यह सिर्फ 60 दिन में ही तैयार हो जाता है.
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