वाराणसी में स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (IIVR) ने किसानों के लिए एक बड़ी पहल की है. आईआईवीआर, वाराणसी और एडोर सीड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, पुणे कंपनी के बीच भिंडी की उन्नत किस्म 'काशी सहिष्णु' के बीज उत्पादन के लिए समझौता हुआ है. जिसे आईसीएआर की कंपनी एग्रीइनोवेट के सीईओ डॉ प्रवीण मलिक के माध्यम से पूरा किया गया है. इस साझेदारी के तहत भारत की प्रमुख बीज उत्पादन कंपनी अब भिंडी की इस उन्नत किस्म के बीजों का उत्पादन करके सीधे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवं पंजाब के किसानों तक पहुंचा सकेगी.
संस्थान के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. मलिक के साथ तकनीकी हस्तांतरण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए और उनका आदान-प्रदान भी किया. इस उन्नत किस्म के प्रजनक वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप करमाकर के अनुसार 'काशी सहिष्णु' (वीआरओ-111) चौथे कृषि क्षेत्र यानी पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में खेती के लिए 2024 में ही अनुशंसित है. इस किस्म में मध्यम ऊंचाई (130-140 सेमी) के पौधों में छोटे इंटरनोड्स होते हैं और बुआई के 40-43 दिन बाद 5-6 नोड्स पर पहला फूल आता है. मुख्य तने के साथ संकीर्ण कोण में 1-3 शाखाएं जुड़ी होती हैं.
इस किस्म में गहरे हरे रंग के फल लगते हैं जिनमें बेसल रिंग नहीं बनती और फलों की कटाई आसान होती है. बुआई के 45-48 दिन में पहली कटाई होती है और 48-110 दिन तक फलन अवधि चलती है. इससे 135-145 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है जो सर्वोत्तम चेक किस्म से 20-23% अधिक है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह किस्म येलो वेन मोज़ेक वायरस (वाईवीएमवी) और एंटेशन लीफ कर्ल वायरस (ईएलसीवी) दोनों के लिए प्रतिरोधी है.
इस किस्म को विकसित करने में कई वर्षों का वैज्ञानिक ने कठिन परिश्रम लगा है. इस महत्वपूर्ण कार्य में वैज्ञानिकों के गहन शोध के साथ-साथ बार-बार क्षेत्रीय प्रदर्शन और संस्थान की इंस्टिट्यूट टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट यूनिट (आईटीएमयू) की विशेष भूमिका रही है. संस्थान के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि 'काशी सहिष्णु' किस्म किसानों के लिए अत्यधिक फायदेमंद है क्योंकि यह दो प्रमुख वायरल रोगों के लिए प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को कीटनाशकों का कम उपयोग करना पड़ेगा और उत्पादन लागत में कमी आएगी.
उन्होंने कहा कि इसकी अधिक उत्पादकता से किसानों की आय में 20-25% तक की वृद्धि हो सकती है. डॉ कुमार के अनुसार भिंडी की इस किस्म की व्यवसायिक लाभों को देखते हुए कई अन्य कंपनियों ने भी इसके लाइसेंस के लिए आवेदन किया है, जिन पर विचार किया जा रहा है. फसल उन्नयन विभाग के अध्यक्ष डॉ नागेंद्र राय ने कहा कि इस किस्म में फलों की गुणवत्ता बेहतर होने से बाजार में किसानों को अच्छी कीमत मिलेगी और कटाई-पैकिंग में आसानी से मजदूरी की लागत भी कम होगी.
यह किस्म पारंपरिक किस्मों की तुलना में अधिक समय तक फल देती है. जिससे किसानों को लंबे समय तक आय प्राप्त होती रहेगी. इस तकनीकी हस्तांतरण से सब्जी उत्पादक किसानों को सीधे तौर पर फायदा होगा क्योंकि अब उन्नत किस्म के बीज आसानी से उपलब्ध होंगे और किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ भिंडी की गुणवत्तापूर्ण पैदावार में भी सुधार आएगा.
ये भी पढे़ं-
यूपी में आज मूसलधार बारिश का अलर्ट, 50 KM की रफ्तार से चलेंगी तेज हवा, बिजली गिरने की भी चेतावनी
गन्ने के कचरे से बनाया क्लासरूम, तापमान के साथ AQI भी रहता है मेंटेन
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today