scorecardresearch
Onion Price: प्याज उत्पादक क‍िसानों के दर्द की दवा क्या है?

Onion Price: प्याज उत्पादक क‍िसानों के दर्द की दवा क्या है?

एक दशक पहले महाराष्ट्र में प्याज की जो उत्पादन लागत आती थी आज क‍िसानों को उतना दाम भी नहीं म‍िल रहा है. आज की उत्पादन लागत पर मुनाफा म‍िलने की बात तो छोड़ ही दीज‍िए. आख‍िर क‍िसानों को क्यों नहीं म‍िलता प्याज का उच‍ित दाम...क‍िसानों की सबसे बड़ी समस्या का क्या है समाधान?  

advertisement
प्याज के ग‍िरते दाम ने बढ़ाई महाराष्ट्र के क‍िसानों की समस्या (Photo-Kisan Tak). प्याज के ग‍िरते दाम ने बढ़ाई महाराष्ट्र के क‍िसानों की समस्या (Photo-Kisan Tak).

प्याज की बढ़ती कीमतें बीजेपी और कांग्रेस दोनों को रुला चुकी हैं. लगता है क‍ि इससे परेशान होकर सरकार ने प्याज पर अपना इतना कंट्रोल कर ल‍िया है क‍ि इसकी कीमतें बढ़ ही नहीं रहीं. प्याज की महंगाई से उपभोक्ताओं के आंसू न‍िकले तो सरकार पर तुरंत असर पड़ता है और दाम न म‍िलने की वजह से क‍िसानों के आंसू बहे तो सत्ता के गल‍ियारों में या तो सन्नाटा छा जाता है या फ‍िर कुछ करने की रस्म अदायगी भर होती है. बहरहाल, प्याज के मौजूदा दाम पर आते हैं. सात अप्रैल को महाराष्ट्र के छत्रपत‍ि संभाजी नगर में एक क‍िलो प्याज एक सामान्य टॉफी के दाम में खरीदा जा सकता था. मतलब एक रुपये प्रत‍ि क‍िलो. नास‍िक की येवला मंडी में भी यही भाव रहा.

क‍िसान अपने कलेजे पर पत्थर रखकर औने-पौने दाम पर प्याज बेचने को मजबूर हैं. दूसरी ओर, उपभोक्ताओं को 30 रुपये क‍िलो तक के भाव पर प्याज म‍िल रहा है. बेह‍िसाब मुनाफाखोरी करने वाले व्यापार‍ियों की मौज है, क्योंक‍ि उनकी कमाई पर सवाल भला कौन पूछेगा?  क‍िसानों की इनकम डबल करने वाले नारे के बीच प्याज के दाम का ऐसा हाल प‍िछले दो साल से चल रहा है.

महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक है. ज‍िसकी प्याज उत्पादन में ह‍िस्सेदारी 43 फीसदी है. यहां के लासलगांव में एश‍िया की सबसे बड़ी प्याज मंडी है. यहां की जलवायु ऐसी है क‍ि ज्यादातर क‍िसान इसी की खेती करना पसंद करते हैं. लेक‍िन, उनकी आवाज इतनी मुखर नहीं है क‍ि सरकार उन्हें उनकी लागत भी द‍िला दे. ऐसे में आपके खाने का जायका बढ़ाने वाला प्‍याज इन द‍िनों क‍िसानों को रुला रहा है.  

क्या चाहते हैं क‍िसान?

प्याज को न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में लाने की मांग को लेकर राज्य के क‍िसानों ने इसी साल मार्च में नास‍िक से मुंबई तक का पैदल मार्च क‍िया. क‍िसानों का कहना था क‍ि जो भी उत्पादन लागत आती है उसके ऊपर लाभ तय करके सरकार प्याज का न्यूनतम दाम फ‍िक्स कर दे. लेक‍िन, इस आंदोलन का कोई असर नहीं हुआ. 

स‍िर्फ फरवरी और मार्च में बेची गई प्याज पर सरकार ने 350 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल की दर से सहायता देकर अपना पल्ला झाड़ ल‍िया है. उसमें भी इतनी शर्तें लगा दी गई हैं क‍ि इसका लाभ पाना आसान नहीं है. क‍िसान प्याज का सही दाम न म‍िलने की समस्या का स्थायी समाधान चाहते हैं. जबक‍ि सरकार इस द‍िशा में काम नहीं कर रही. क‍िसानों का कहना है क‍ि सरकार अगर दो रुपये क‍िलो प्याज होने पर उसका दाम बढ़ा नहीं सकती तो जब दाम बढ़ता है तो घटाने का प्रयास भी न करे.

बहरहाल, दाम बहुत कम होने का शोर मचा तो केंद्र ने भी रस्म अदायगी कर दी है, ताक‍ि ऐसा लगे क‍ि उसने भी परेशान प्याज क‍िसानों के ल‍िए कुछ क‍िया. क‍िसानों को राहत देने के नाम पर नाफेड महाराष्ट्र में प्याज खरीद रहा है, लेक‍िन उसका दाम तय करने का तरीका ऐसा है क‍ि क‍िसानों को कोई खास फायदा नहीं होता. इसके अध‍िकारी दाम तय करने के ल‍िए उत्पादन लागत को आधार बनाने की बजाय बाजार में चल रहे दाम को पैमाना बना लेते हैं. 

दूसरी बात यह है क‍ि नाफेड ने तीन लाख टन प्याज खरीदने का फैसला क‍िया है. यह मात्रा आम लोगों को बहुत ज्यादा लग सकती है. लेक‍िन, यह सोचने वाली बात है क‍ि जहां 318 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ है वहां नाफेड स‍िर्फ तीन लाख टन प्याज खरीदकर क्या बना-ब‍िगाड़ लेगा. वो कुल उत्पादन का एक फीसदी भी तो खरीद नहीं कर रहा.

इसे भी पढ़ें: Success Story: भारत ने कृषि क्षेत्र में कैसे लिखी तरक्की की इबारत? 

दाम न म‍िलने की समस्या बहुत पुरानी

अगर एक रुपये से लेकर सात-आठ रुपये तक के औसत दाम पर क‍िसान करीब दो साल से प्याज बेच रहे हैं तो उन्हें इसकी खेती से क्या फायदा म‍िलेगा? खेती घाटे का सौदा बनती जाएगी. सरकार क‍िसी भी पार्टी की रही हो, प्याज उत्पादक क‍िसान दाम न म‍िलने वाली समस्या को झेलते रहे हैं. इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं. 

नास‍िक न‍िवासी क‍िसान दत्तात्रय शंकर द‍िघोले अब इस दुन‍िया में नहीं हैं. उन्होंने फरवरी 2012 में 2.80 रुपये प्रत‍ि क‍िलो की दर पर प्याज बेचा था. 'क‍िसान तक' को इसकी रसीद उनके बेटे और क‍िसान नेता भारत द‍िघोले ने दी उपलब्ध करवाई है. अब यह जानने की जरूरत है क‍ि आख‍िर उस वक्त प्याज की उत्पादन लागत क‍ितनी थी. केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय की एक र‍िपोर्ट के मुताब‍िक उस वक्त महाराष्ट्र में प्याज की उत्पादन लागत 353.11 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल आती थी. यानी उस वक्त भी क‍िसान कम दाम की समस्या से जूझ रहे थे. 

इस आंकड़े के आधार पर हम यह कह सकते हैं क‍ि महाराष्ट्र के काफी क‍िसानों को आज 2023 में भी प्याज का उतना दाम नहीं म‍िल पा रहा है जो 11 साल पहले 2012 में म‍िलता था. जबक‍ि तब के मुकाबले महंगाई क‍ितनी बढ़ चुकी है, यह क‍िसी से छ‍िपा नहीं है. ऐसे में दो बड़े सवाल सामने आते हैं. पहला यह क‍ि आख‍िर यहां के क‍िसान प‍िछले साल से घाटे में प्याज की खेती क्यों कर रहे हैं और सत्ता में बैठे नेता इस समस्या की ओर ध्यान क्यों नहीं दे रहे?   

साल 2012 में क‍िसानों को क‍ितना म‍िल रहा था प्याज का भाव. (Photo-Kisan Tak)

प्याज का दाम घटाने पर क्यों जोर देते हैं नेता?

नेताओं के पास जब क‍िसानों और सत्ता में से एक को चुनना होगा तो वो सत्ता को चुनेंगे. इसल‍िए हमेशा उन्होंने प्याज का दाम कम करने को प्राथम‍िकता दी. उन्हें उपभोक्ताओं की च‍िंता ज्यादा है. साल 1998 का ही उदाहरण लीज‍िए. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार प्याज के बढ़ते भाव को काबू करने में नाकाम साब‍ित हो रही थी. 

इस बीच दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. तब सुषमा स्वराज सरकार ने जगह-जगह स्टॉल लगाकर सस्ते भाव पर प्याज बेचा, लेक‍िन जनता इतने गुस्से में थी क‍ि सुषमा को सत्ता से बेदखल होना पड़ा. फ‍िर प्याज के बढ़े दाम ने शीला दीक्ष‍ित को भी परेशान क‍िया. इससे पहले 1980 के आम चुनाव में इंद‍िरा गांधी ने जनता पार्टी सरकार के ख‍िलाफ प्याज के बढ़े दाम को मुद्दा बनाया था. ऐसे में महाराष्ट्र के क‍िसानों को भी अब नेताओं से खास उम्मीद नहीं द‍िखती.    

क्या मजबूरी है प्याज की खेती?

महाराष्ट्र प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत द‍िघोले ने इस सवाल का जवाब द‍िया. उनका कहना है क‍ि प्याज की खेती करना मजबूरी ही है. महाराष्ट्र सूखा प्रभाव‍ित क्षेत्र है. ऐसे एर‍िया में प्याज की खेती न करें तो क्या क‍िसान धान की खेती करें? सूखे वाले क्षेत्रों के क‍िसानों के ल‍िए यह बेहतर फसल है. सरकार ने आज तक इसे लेकर कोई पॉल‍िसी नहीं बनाई, ज‍िससे क‍ि बार-बार दाम कम होने वाली समस्या न आए. क‍िसान अपनी दूसरी फसलों और पशुपालन आद‍ि के काम से जीवनयापन कर रहे हैं. 

द‍िघोले कहते हैं क‍ि ऐसा नहीं है क‍ि प्याज का दाम हमेशा डाउन रहता है. साल में कुछ महीने ऐसे आते हैं जब दाम इतना म‍िल जाता है क‍ि क‍िसानों का गुजारा हो जाता है. लेक‍िन जब मार्केट में नया प्याज आता है तब दाम बहुत ग‍िर जाते हैं. हालांक‍ि, इस बार मामला थोड़ा अलग है, क्योंक‍ि पूरे 2022 और 2023 के अप्रैल महीने तक मुश्क‍िल से 15 द‍िन ही ठीक भाव म‍िला होगा. बाकी द‍िनों में इसका रेट बहुत डाउन ही रहा है. प्याज के दाम की इतनी बुरी स्थ‍ित‍ि कभी नहीं आई थी. 

क‍ितनी है प्याज की उत्पादन लागत? 

नेशनल हॉर्टिकल्चरल रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन के हवाले से आरबीआई के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर बैंक‍िंग ने अपनी एक र‍िपोर्ट में बताया है क‍ि साल 2014 के खरीफ सीजन के दौरान महाराष्ट्र में प्याज की उत्पादन लागत 724 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल आती थी. मतलब इस वक्त यानी 2023 में क‍िसानों को एक दशक पुरानी उत्पादन लागत भी नहीं म‍िल रही है. अब सोच‍िए क‍ि उनकी आय कैसे डबल होगी. क्या सरकार को प्याज के वर्तमान उत्पादन लागत और दाम के बारे में पता नहीं है?  

अगर क‍िसान यह कह रहे हैं क‍ि अब प्याज की लागत 15 से 20 रुपये प्रत‍ि क‍िलो तक पहुंच गई है तो 2014 के आंकड़े को देखते हुए इसमें कोई अत‍िशयोक्त‍ि नहीं लगती है. क्योंक‍ि खाद, पानी, श्रम, खेती की जुताई, बीज की कीमत और कीटनाशक आद‍ि का खर्च काफी बढ़ चुका है. लेक‍िन बड़ा सवाल यह है क‍ि आख‍िर उत्पादन लागत के मुताब‍िक दाम क्यों नहीं बढ़ा? 

यहां यह भी सवाल आता है क‍ि कोई सरकार क‍िसानों को क्यों नाराज करना चाहेगी. आख‍िर वो प्याज क‍िसानों के भले की नीत‍ियां क्यों नहीं बनाती? द‍िघोले ने इसका जवाब द‍िया. उनका कहना है क‍ि आजादी के 75 साल बाद भी केंद्र सरकार ने प्याज को लेकर कोई पॉल‍िसी नहीं बनाई है. उसकी एक ही पॉल‍िसी है क‍ि उपभोक्ताओं के ल‍िए सस्ता प्याज चाह‍िए. ताक‍ि वोटर नाराज न हों, भले ही क‍िसान का नुकसान क्यों न हो जाए? 

कौन कमा रहा असली फायदा

द‍िघोले का कहना है क‍ि सरकार की एक ही पॉल‍िसी है क‍ि जब भी प्याज महंगा होगा उसे पूरी ताकत के साथ सस्ता कर दो. चाहे उसके ल‍िए एक्सपोर्ट बैन करना हो या व‍िदेशों से प्याज इंपोर्ट करना हो. बाकी सब चीज सस्ता चाह‍िए, लेक‍िन कृष‍ि उपज का दाम ज्यादा नहीं होना चाह‍िए. प्याज का दाम नहीं बढ़ना चाह‍िए. प्याज का दाम मार्केट में 50 रुपये क‍िलो भी हो जाए तो लोग कहना शुरू कर देते हैं क‍ि प्याज रुला है. जबक‍ि, कोई ये नहीं देखता क‍ि क‍िसान क‍ितना रो रहे हैं. कोई यह नहीं देखता क‍ि वो मार्केट में जो 50 रुपये क‍िलो प्याज खरीदा रहे हैं उसमें से क‍िसानों को क‍ितना पैसा म‍िला है?  

असल में प्याज का दाम क‍िसान नहीं बल्क‍ि ट्रेडर और कालाबाजारी करने वाले लोग बढ़ाते हैं, ज‍िन पर कार्रवाई करने से सरकार बचती द‍िखती है. क‍िसान से एक, दो और पांच रुपये क‍िलो प्याज खरीदकर द‍िल्ली जैसे शहरों में उसे 30 से 35 रुपये क‍िलो के भाव पर बेचा जा रहा है. ऐसे में सरकार व्यापार‍ियों से क्यों नहीं पूछती क‍ि वो इतना मुनाफा कैसे कमा सकते हैं? 

ये भी पढ़ें:  व‍िकस‍ित देशों को क्यों खटक रही भारत में क‍िसानों को म‍िलने वाली सरकारी सहायता और एमएसपी? 

आगे का रास्ता क्या है? 

मशहूर कृष‍ि अर्थशास्त्री देव‍िंदर शर्मा कहते हैं क‍ि क‍िसानों के ल‍िए बनाए गए मॉडल में ही फाल्ट है. आपने उसे बाजार के हवाले छोड़ द‍िया है. इससे क‍िसान लगातार नुकसान झेल रहे हैं. दरअसल, एश्योर्ड इनकम ही क‍िसानों की सबसे बड़ी समस्या का समाधान है. उत्पादन लागत के मुताब‍िक उस पर मुनाफा जोड़कर आप उसका एक एश्योर्ड प्राइस तय कर दीज‍िए, वरना यही हाल रहेगा क‍ि दस साल पहले जो उत्पादन लागत आती थी आज उतना दाम भी नहीं म‍िल पा रहा है. स‍िर्फ प्याज ही नहीं ज्यादातर कृष‍ि उपज के साथ यही हो रहा है. 

शर्मा का सुझाव है क‍ि क‍िसानों के ल‍िए सभी फसलों का एमएसपी तय हो और उपभोक्ताओं के ल‍िए एमआरपी. ताक‍ि क‍िसानों और उपभोक्ताओं दोनों का नुकसान न हो और ट्रेडर बेह‍िसाब कमाई न कर पाएं. क‍िसानों को एश्योर्ड प्राइस दें और उपभोक्ताओं के ल‍िए यह सुन‍िश्च‍ित करें क‍ि उनको क‍िसानों को म‍िलने वाली रकम से दोगुना दाम न चुकाना पड़े. क‍िसान से तीन रुपये प्रत‍ि क‍िलो प्याज खरीदकर उसे आपको 30 रुपये में बेचा जा रहा है तो समझ लीज‍िए क‍ि क‍िसानों और उपभोक्ताओं के बीच वाले लोग क‍ितने गुना मुनाफा कमा रहे हैं. 

महाराष्ट्र के लासलगांव में है एश‍िया की सबसे बड़ी प्याज मंडी (File Photo).

स्टोरेज की बड़ी समस्या

जब सीजन शुरू होता है तब प्याज की इतनी आवक हो जाती है क‍ि उससे दाम ग‍िर जाता है. ट्रेडर इसी का फायदा उठाते हैं. वो आवक का हवाला देकर क‍िसानों से कम दाम पर प्याज खरीदते हैं और अपने पास स्टोर करते हैं. सवाल ये है क‍ि क्या क‍िसान अपना प्याज स्टोर नहीं बना सकते? द‍िघोले का कहना है क‍ि सब किसानों के घर पर प्याज रखने की पर्याप्त जगह नहीं है. उन पर इतना आर्थिक दबाव होता है कि वो फसल निकालते ही मंडी में ले जाते हैं. 

किसी गांव में 100 किसान हैं तो मुश्किल से 10 के पास ही स्टोरेज का इंतजाम होता है. सरकार स्टोर बनाने के लिए बहुत कम आर्थिक मदद देती है. यहां 25 टन का स्टोर बनाने के लिए 4 लाख रुपये लगते हैं. जबकि राज्य सरकार इसके लिए अधिकतम 87,500 रुपये ही देती है. अगर एक तहसील में 2000 किसानों ने स्टोर के लिए आवेदन किया तो 100 लोगों को ही बनाने के ल‍िए अनुदान म‍िल पाता है. ऐसे में नई फसल आते ही किसान स्टोर के अभाव में सस्ते दाम पर व्यापारियों को फसल बेचने पर मजबूर हो जाते हैं.

स्टोरेज की कमी की तस्दीक राष्ट्रीय क‍िसान आयोग के सदस्य रहे पद्मभूषण रामबदन स‍िंह भी कर रहे हैं. उनका कहना है क‍ि प्याज स्टोरेज की समस्या बहुत बड़ी है, ज‍िसके अभाव में क‍िसानों को बहुत नुकसान झेलना पड़ता है. इसका समाधान करने की जरूरत है. इसके अलावा देश में प्याज की खपत पर सही असेसमेंट हो ताक‍ि क‍िसानों को पता चले क‍ि उन्हें क्या करना है. 

देश में प्याज उत्पादन (टन में)

साल उत्पादन 
2018-19 22819000
2019-20 26091000
2020-21 26292000
2021-22 31700000
2022-23 31800000 

Source: Ministry of Agriculture

क‍ितना है प्याज का दाम 

  • छत्रपत‍ि संभाजी नगर में न्यूनतम दाम 100 अध‍िकतम 650 और औसत भाव 375 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. 
  • नास‍िक की येवला मंडी में न्यूनतम दाम 150 अध‍िकतम 722 और औसत भाव 600 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. 
  • येवला की अंदरसूल मंडी में न्यूनतम भाव 100 अध‍िकतम 676 और औसत भाव 550 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. 
  • लासलगांव मंडी में न्यूनतम दाम 300 अध‍िकतम 760 और औसत भाव 600 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल दर्ज क‍िया गया. 
  • लासलगांव की न‍िफाड मंडी में न्यूनतम दाम 300, अध‍िकतम 650 और औसत भाव 551 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. 
  • चांदवड मंडी (नास‍िक) में न्यूनतम दाम 103, अध‍िकतम 717 जबक‍ि औसत भाव 450 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल रहा. 

यह दाम 8 अप्रैल 2023 का है. 
 
(Source: Maharashtra State Agricultural Marketing Board) 

दाम ग‍िरने की क्या वजह मान रही सरकार

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय ने कहा है फरवरी के महीने में लाल प्याज की कीमतों में गिरावट देखने को मिली है, विशेष रूप से महाराष्ट्र राज्य में जहां औसत दर घटकर 500-700 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई. विशेषज्ञ कीमतों में इस गिरावट की मुख्य वजह अन्य राज्यों के उत्पादन में बढ़त को बता रहे हैं. प्याज सभी राज्यों में उगाया जाता है, हालांकि देश के कुल उत्पादन में लगभग 43 प्रतिशत की हिस्सेदारी के साथ महाराष्ट्र सबसे बड़ा उत्पादक है. 

यहां साल भर में तीन बार प्याज की फसल ली जाती है. खरीफ, पछेती खरीफ और रबी सीजन के दौरान इसकी पैदावार होती है. रबी की फसल सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका राष्ट्रीय उत्पादन में लगभग 72-75 प्रतिशत योगदान होता है और मार्च से मई महीने के दौरान उपज प्राप्त की जाती है. 

द‍िघोले केंद्र सरकार के इस तर्क को खार‍िज करते हैं क‍ि उत्पादन बढ़ने की वजह से दाम कम हो गया. उनका कहना है क‍ि यह तो खुशी की बात है क‍ि प्याज का उत्पादन ज्यादा हो गया है. सरकार उन देशों को प्याज एक्सपोर्ट करे जहां इसका भाव बहुत ज्यादा है. इससे हमारे पास व‍िदेशी मुद्रा आएगी और घरेलू बाजार में क‍िसानों को अच्छा दाम भी म‍िलेगा. जो चीज हमारी मजबूती बन सकती है उसे अध‍िकारी लोग कमजोरी क्यों बना देते हैं?