गेहूं की खेती में हर किसान अपनी फसल की पैदावार बढ़ाना चाहता है. जिससे वह अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके. इसीलिए वह फसल की रोग प्रतिरोधी और बंपर पैदावार देने वाली किस्मों का चयन करते हैं. दरअसल, बाजार में गेहूं की कई उन्नत किस्में देखने को मिल जाएंगी. करनाल में गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं की खेती के लिए पांच नई उच्च उपज देने वाली किस्में विकसित की हैं, जिन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा अप्रूव किया गया है. यह अक्टूबर में आगामी बुवाई सीजन से किसानों के लिए उपलब्ध किया जाएगा.
आईसीएआर-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर) के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि गेहूं की ये 5 उन्नत किस्में जलवायु के अनुकूल हैं और इनकी उपज क्षमता 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. किसानों को प्रति एकड़ 20-22 क्विंटल की औसत उपज से 5-10 क्विंटल अधिक उपज प्राप्त करने में मदद करना.
गेहूं की खेती में उपज क्षमता और उपज क्षमता के आधार पर तीन किस्मों पर विचार किया गया है. जिनमें DBW-370, DBW-371 तथा DBW-372 शामिल हैं. इन किस्मों को जल्दी बुआई के लिए अनुशंसित किया जाता है क्योंकि इन किस्मों की उपज क्षमता 75 क्विंटल है. शीघ्र बुआई और अधिक उपज वाले डीबीडब्ल्यू-370 का उत्पादन दो जोनों के लिए 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, 371 का 75.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, 372 का 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (मध्य भारत के लिए 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) स्वीकृत किया गया है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इन किस्मों की खासियत, उपजाऊ क्षमता, और कहां-कहां की जाती है इसकी खेती.
ये भी पढ़ें: अल नीनो और क्लाइमेट चेंज के बीच किसान गेहूं की जलवायु प्रतिरोधी किस्मों के बारे में कितने जागरूक?
DBW-370 भारत में विकसित गेहूं की एक किस्म है. यह अधिक उपज देने वाली, अर्ध-बौनी गेहूं की किस्मों की श्रेणी में आता है. DBW-370 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित किया गया था और गेहूं अनुसंधान निदेशालय (DWR), करनाल, हरियाणा, भारत द्वारा जारी किया गया था. गेहूं की इस किस्म का उपयोग मुख्य रूप से चपाती और अन्य गेहूं-आधारित खाद्य उत्पाद बनाने के लिए किया जाता है. यह एक उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्म है, जिसका अर्थ है कि यह अनुकूल बढ़ती परिस्थितियों में प्रति इकाई क्षेत्र में अच्छी मात्रा में गेहूं के दाने पैदा कर सकती है. कई आधुनिक गेहूं किस्मों की तरह, DBW-370 में सामान्य गेहूं रोगों के प्रति कुछ हद तक प्रतिरोध होने की संभावना है, हालांकि विशिष्ट प्रतिरोध लक्षण स्थानीय पर्यावरण और प्रजनन लक्ष्यों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं. इसकी खेती उत्तरी भारत के गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों, विशेष रूप से हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश राज्यों के लिए अनुकूलित है.
DBW -371 गेहूं की यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में अगेती बुआई के लिए सही है. इस किस्म से अधिकतम 87.1 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है. जबकि इसकी औसत उपज 75.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म को कोटा और उदयपुर को छोड़कर हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, राजस्थान और अन्य जिलों में उगाया जा सकता है. इसकी खेती झाँसी मण्डल को छोड़कर उत्तर प्रदेश में की जा सकती है. इसके अलावा इसकी खेती जम्मू-कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिलों, हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले, उत्तराखंड की पांवटा घाटी और तराई क्षेत्रों में भी की जा सकती है. गेहूं की यह किस्म 150 दिन में पक जाती है.
गेहूं की डीबीडब्ल्यू- 372 किस्म की उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है. वहीं इसकी औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्राप्त होती है. यह किस्म 151 दिन में पककर तैयार हो जाती है. गेहूं की इस किस्म को भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today