पिछले कुछ सालों से मॉनसून के बदलते पैटर्न की वजह से कई चीजों में बदलाव देखा गया है. इस प्रतिकूल मॉनसून के कारण इसका सीधा असर खेती पर पड़ रहा है. मॉनसून का सबसे ज्यादा असर खरीफ की फसल पर पड़ता है, क्योंकि यह फसल पूरी तरह से मॉनसून पर निर्भर होती है. अनियमित मानसून के कारण कभी अत्यधिक बारिश तो कभी सूखे की स्थिति किसानों को भारी नुकसान पहुंचाती है. यही वजह है कि किसान कम अवधि वाली फसलों की बुवाई करना पसंद कर रहे हैं, ताकि विपरीत परिस्थितियों में फसल उत्पादन प्रभावित न हो. कम अवधि वाली खरीफ फसल में सोयाबीन की सबसे लोकप्रिय किस्म एनआरसी 150 है, लेकिन इसकी जगह अब यह किस्म भी किसानों को अच्छा मुनाफा देती है. आइए जानते हैं सोयाबीन की इस नवीनतम किस्म के बारे में.
पिछले कुछ सालों से खरीफ की फसल के दौरान एनआरसी 150 सोयाबीन किस्म अपनी कम अवधि के साथ-साथ पैदावार के मामले में किसानों के लिए सफल साबित हुई है. सोयाबीन की यह किस्म जल्दी पक जाती है. जिससे अनियमित मॉनसून के दौरान पैदावार पर असर भी नहीं पड़ता है.
वहीं दूसरी ओर किसानों को रबी की फसल काटने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है. लेकिन अब लंबे समय तक इस्तेमाल में रहने के कारण एनआरसी 150 की रोग प्रतिरोधक क्षमता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है. जिसके कारण सोयाबीन की यह किस्म कीटों और बीमारियों से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है. आपको बता दें आईसीएआर-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मध्य प्रदेश) द्वारा सोयाबीन की एनआरसी 150 किस्म विकसित की गई है. सोयाबीन की इस किस्म को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए खासतौर पर विकसित किया गया है.
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अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना इंदौर द्वारा विकसित सोयाबीन की उन्नत किस्म 'एनआरसी 150' की खेती से किसानों को अच्छा लाभ मिलेगा. यह किस्म सोयाबीन की जेस 9560 किस्म की तरह जल्दी पकते हैं और गंध रहित है. आईआईएसआर के वैज्ञानिकों द्वारा वर्षों की मेहनत के बाद शोध में विकसित यह किस्म सोयाबीन की प्राकृतिक गंध के लिए जिम्मेदार लिपोक्सीजिनेज-2 एंजाइम से मुक्त है. यानी सोयाबीन की इस किस्म से बने सोया मिल्क, सोया चीज, सोया टोफू आदि उत्पादों में यह गंध नहीं आएगी. आईआईएसआर के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार सोयाबीन की किस्म 'एनआरसी 150' प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर है और इसे कुपोषण दूर करने के उद्देश्य से विकसित किया गया है.
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