भारत में प्राचीन काल से ही धनिया का उपयोग बीज मसाले के रूप में किया जाता रहा है. इसके बीजों में मौजूद आवश्यक तेल भोजन को स्वादिष्ट और सुगंधित बनाता है. यही कारण है कि इसे रसोई में सबसे ज़रूरी मसालों में से एक माना जाता है. धनिया के बीजों में औषधीय तेल की मात्रा किस्म और वातावरण के आधार पर 0.1% से 1.7% तक होती है. इस तेल में लगभग 26% हाइड्रोकार्बन और शेष ऑक्सीजन युक्त आवश्यक तत्व होते हैं. इसके बीजों में लिनोलिक एसिड और कॉन्ड्रियोल नामक यौगिक होते हैं. इसके अलावा, इसमें विटामिन ए, नमी (11.2%), प्रोटीन (14.1%), वसा (16.1%), कार्बोहाइड्रेट (21.5%), फाइबर (32.6%), और राख (4.4%) भी होते हैं.
विश्व में भारत के अलावा मोरक्को, रोमानिया, फ्रांस, स्पेन, इटली, रूस आदि देश धनिये के प्रमुख उत्पादक हैं. भारत में राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक में धनिये की खेती होती है. राजस्थान में कोटा, बूंदी, झालावाड़ और बारां जिले मुख्य उत्पादन क्षेत्र हैं, जहाँ से राज्य की लगभग 95% पैदावार होती है.
धनिया पिसा हुआ या साबुत दोनों रूपों में उपयोग होता है. यह अचार, सॉस, मिठाई, करी पाउडर, चटनी, सूप और सब्जियों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होता है. इसके बीजों से निकला तेल परफ्यूम, साबुन, चॉकलेट, केंडी और मदिरा को सुगंधित करने में काम आता है.
धनिया केवल मसाला नहीं बल्कि एक आयुर्वेदिक औषधि भी है. यह अपच, दस्त, जुकाम और मूत्र संबंधी बीमारियों में उपयोगी होता है. यह वायुनाशक, मूत्रवर्धक, बलवर्धक और उत्तेजक होता है. एलोपैथिक दवाओं में भी इसके तेल का प्रयोग बदबू को छिपाने में किया जाता है.
धनिया रबी की फसल है और ठंडा व सूखा मौसम इसकी खेती के लिए अच्छा होता है. बुवाई के समय फूलों पर पाला न पड़े, इसका ध्यान रखना जरूरी है. अधिक तापमान और तेज हवा दाने की गुणवत्ता व उत्पादन पर बुरा असर डालते हैं.
धनिया के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी उत्तम होती है. बारानी क्षेत्रों में काली या भारी मिट्टी उपयुक्त होती है. खेत को पहले मिट्टी पलटने वाले हल से और फिर 3-4 बार देशी हल से जोतकर पाटा लगाना चाहिए.
धनिया की बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक करनी चाहिए. बीज की मात्रा 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहती है. बीज को हल्के से रगड़कर दो भागों में बांटकर बोना चाहिए. बीजोपचार के लिए कार्बेन्डिजिम (0.75 ग्राम) और थायरम (1.5 ग्राम) प्रति किलो बीज के अनुसार मिलाकर उपचार करें.
अंतिम जुताई के समय प्रति हेक्टेयर 10-20 टन गोबर की खाद डालना चाहिए. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पैदावार में सुधार होता है.
धनिया न केवल भारतीय रसोई का जरूरी हिस्सा है बल्कि यह औषधीय दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है. इसकी खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली है, अगर मौसम और मिट्टी का सही चुनाव कर बुवाई की जाए. उचित देखभाल और उन्नत तकनीकों के साथ किसान इससे अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं.
ये भी पढ़ें:
दलहन मिशन: दालों में आत्मनिर्भरता सपना होगा साकार, जब काम करेगा 'पंच-मंत्र' प्लान
Groundnut: कैसे 16वीं सदी की एक पुर्तगाली फसल ने बदलकर रख दी भारत के किसानों की जिंदगी
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today