हल्दी एक महत्वपूर्ण मसाले वाली फसल है, जिसका उपयोग भारतीय रसोई में मसाले के रूप में तो होता ही है, साथ ही इसे औषधि, रंग, ब्युटि प्रॉडक्ट और धार्मिक चीजों में भी प्रयोग किया जाता है. भारत हल्दी की खेती और निर्यात में विश्व में पहले स्थान पर है. यह फसल गुणों से भरपूर होती है और इसे कम लागत में आसानी से उगाया जा सकता है, जिससे यह किसानों के लिए आमदनी का अच्छा साधन बन सकती है.
भारत के विभिन्न राज्यों में हल्दी की खेती की जाती है. प्रमुख रूप से यह फसल आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल में उगाई जाती है.
किसानों को अपनी जलवायु और ज़मीन के अनुसार हल्दी की किस्म का चुनाव करना चाहिए. हल्दी की कुछ प्रमुख किस्में हैं:
इनमें से किसी भी किस्म की थोड़़ी सी मात्रा से आगे के वर्षों के लिए बीज तैयार किया जा सकता है.
हल्दी की बुवाई का सबसे अच्छा समय 15 मई से 15 जून के बीच होता है. बुवाई का समय जलवायु, किस्म और सिंचाई की सुविधा पर निर्भर करता है.
हल्दी की बुवाई के लिए स्वस्थ और सुविकसित गांठों वाले कंदों का उपयोग करना चाहिए. आमतौर पर बुवाई मेड़ बनाकर की जाती है.
अच्छी पैदावार के लिए:
कंदों को लगाने से पहले 0.3% डाइथेन एम-45 (Dithane M-45) के घोल से उपचारित करना चाहिए, जिससे कंद सड़न की बीमारी से बचा जा सके. हल्दी गर्म जलवायु की फसल है. यह समुद्र तल से लगभग 1500 मीटर ऊंचाई तक के स्थानों पर भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. यदि तापमान 20°C से कम हो जाए, तो पौधों की वृद्धि पर असर पड़ता है.
हल्दी के लिए बलुई दोमट या मटियार दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. मिट्टी में जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए. थोड़ी अम्लीय मिट्टी में भी हल्दी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. हल्दी की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करना आवश्यक है. जमीन को 2-3 बार हल या कल्टीवेटर से जोतकर भुरभुरी बनाना चाहिए, क्योंकि यह एक भूमिगत फसल है.
जैविक खाद: खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद या कम्पोस्ट 40 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं.
रासायनिक उर्वरक:
हल्दी की खेती एक लाभकारी व्यवसाय है जिसे कम लागत में अपनाया जा सकता है. उचित देखरेख, सही किस्म और सही समय पर बुवाई करके किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. घरेलू और वैश्विक बाजारों में हल्दी की मांग को देखते हुए यह फसल किसानों के लिए आमदनी का एक स्थायी और लाभदायक साधन बन सकती है.
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