देश में इस साल प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन की बंपर पैदावार हुई है, लेकिन मंडियों में इसकी कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे चल रही है. पिछले कुछ महीनों से कीमतों में गिरावट बनी हुई है. सरकारी एजेंसियों ने अक्टूबर से अब तक सोयाबीन उत्पादन वाले 6 प्रमुख राज्यों में प्राइस सपोर्ट स्कीम के तहत लगभग 10 लाख टन तिलहन वैरायटी खरीदी है. सरकारी एजेंसियां मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात और तेलंगाना में सोयाबीन खरीद रही हैं और अब तक यहां के 4.12 लाख किसानों से सोयाबीन खरीदी जा चुकी है. नेफेड और एनसीसीएफ जैसी एजेंसियां 15 जनवरी 2025 तक मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत सोयाबीन खरीदेंगी.
सरकार की ओर से सोयाबीन 2024-25 सीजन (जुलाई-जून) के लिए 4,892 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी घोषित किया गया है. 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को MSP की तुलना में सोयाबीन का औसत मंडी भाव 4300 रुपये प्रति क्विंटल रहा. सोयाबीन की कीमतें गिरने के कई कारण हैं. इनमें से सबसे बड़ा कारण है, वैश्विक स्तर पर सोयाबीन का बंपर उत्पादन, जिसके चलते वैश्विक सप्लाई अच्छी बनी हुई है और घरेलू बाजार में दाम कम मिल रहे हैं. सोयाबीन से तेल निकाले जाने के बाद इसकी खली का इस्तेमाल पशुचारे और पोल्ट्री फीड के रूप में किया जाता है.
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सोयाबीन की कीमतें गिरने के कारण सोयामील की कीमतों पर भी काफी असर पड़ा है. इंदौर में सोयामील की एक्स-फैक्ट्री कीमतें शुक्रवार को घटकर 2950 रुपये प्रति क्विंटल रह गईं. जबकि 2024 की शुरुआत में यह 4150 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिक रही थी. कृषि मंत्रालय के अग्रिम अनुमानों के मुताबिक, खरीफ तिलहन किस्म का उत्पादन 13.36 मीट्रिक टन रह सकती है. यह पिछले साल के मुकाबले मामूल रूप से ज्यादा है.
बता दें कि केंद्र सरकार ने 14 सितंबर से कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेलों पर आयात शुल्क 5.5% से बढ़ाकर 27.5% कर दिया था, ताकि घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले और किसानों को उपज की अच्छी कीमतें मिल सकें. वहीं, रिफाइंड इडिबल ऑयल पर आयात शुल्क 13.75 प्रतिशत से बढ़ाकर 35.75% किया गया था. मालूम हो कि सरकार तिलहन और दलहन फसलों के लिए मिशन चला रही है, ताकि देश में इनका उत्पादन बढ़े. भारत में 24-25 मीट्रिक टन की खाद्य तेल की खपत होती है, जिसका लगभग 58% विदेशों से आयात किया जाता है.
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