केंद्र सरकार ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए पूरी तरह से तैयारी कर ली है. वह साल 2024-25 में 18 मिलियन टन चावल का अतिरिक्त भंडारण करेगी. इसके लिए उसने स्टेकहोल्डर्स के साथ बातचीत शुरू कर दी है, ताकि चावल की बढ़ती खुदरा कीमतों को कम किया जा सके. हालांकि, देश में अभी चावल का प्रयाप्त स्टॉक है. 1 जून को केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक 21.8 प्रतिशत बढ़कर 50.46 मिलियन टन हो गया है, जबकि एक साल पहले यह 41.42 मिलियन टन था. खास बात यह है कि चावल के स्टॉक में 17.94 मिलियन टन चावल (अभी तक संसाधित नहीं किए गए धान के रूप में) भी शामिल है. इस साल धान के स्टॉक में पिछले साल की तुलना में 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, खाद्य मंत्रालय ने शुक्रवार को विभिन्न विकल्पों पर उद्योग के विचार जानने के लिए कुछ निर्यातकों और चावल मिल मालिकों के साथ बैठक की. विचार-विमर्श में भाग लेने वाले सूत्रों के अनुसार, निर्यातकों ने सरकार से 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क हटाने और सफेद (कच्चे) चावल के शिपमेंट पर प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया. बैठक में भाग लेने वाले एक निर्यातक ने कहा कि हमने सरकार से कहा कि चावल की कीमत पर अधिक यथार्थवादी न बनें और इसे एक अलग खाद्य पदार्थ के रूप में न लें. जब राज्य सरकारें 31 रुपये प्रति किलोग्राम पर धान खरीद रही हैं, तो मिल मालिकों से 30-35 रुपये प्रति किलोग्राम पर चावल बेचने की उम्मीद करना बेहद अवास्तविक है.
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छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों से धान खरीदने के लिए 3,100 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करने के बाद, भाजपा द्वारा ओडिशा में इसे लागू करने की संभावना है, क्योंकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में यह वहां का चुनावी वादा था. निर्यातक ने कहा कि इसे जल्द ही अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकार को सालाना 40-41 मिलियन टन चावल की आवश्यकता होती है. 81 करोड़ राशन कार्ड धारकों को हर महीने 5 किलो चावल या गेहूं मिलता है.
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि चालू सीजन (अक्टूबर-सितंबर) में खरीद 31 मई तक 50 मिलियन टन को पार कर चुकी है और 30 सितंबर तक और चावल जोड़ा जाएगा, जब 2023-24 के लिए खरीद पूरी तरह बंद हो जाएगी. सूत्रों ने कहा कि अगर खुली बिक्री के लिए कोई उठाव नहीं होता है, तो सरकार के पास WTO के नियमों का उल्लंघन किए बिना स्टॉक को निपटाने के लिए बहुत सीमित विकल्प हैं. लेकिन विदेश व्यापार नीति विश्लेषक एस चंद्रशेखरन ने कहा कि WTO सब्सिडी का अनुपालन व्याख्या का विषय है. प्रशासन और सीमाओं के भीतर रहने के लिए प्रावधान उपलब्ध हैं.
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