मलयालम नववर्ष की शुरुआत होते ही केरल के खेतों में किसान धान की फसल की तैयारी में जुट जाते हैं लेकिन इस बार सुर्खियों में है कोझिकोड का एक किसान, वेणु, जो न केवल धान की खेती कर रहा है, बल्कि 70 अनोखी किस्मों के जरिए एक समृद्ध विरासत को संजोए हुए हैं.
70 अलग किस्मों के धान उगाते हैं वेणु
पल्लीक्कारा थझे इलम के वेणु की कहानी पारंपरिक और जैविक खेती के प्रति उनके जुनून की मिसाल है. वेणु के खेतों में धान की 70 अलग-अलग किस्में लहलहा रही हैं. इनमें से कुछ प्रजातियां केरल की मूल प्रजातियां हैं, तो कुछ उन्होंने भारत के अन्य राज्यों से जुटाई हैं. उनके खेतों में औषधीय गुणों वाली नवर, आयरन से भरपूर रक्तशाली, और काले रंग की ब्लैक जैस्मिन जैसी चावल की किस्में शामिल हैं.
औषधीय धान की किस्में भी उगाते हैं
इसके अलावा, 60-आम कुरुवा, कुथिर, अन्नपूर्णा, ज्योति, कृष्ण कामोद, अथिरा और उमा जैसी किस्में भी उनके खेत में उग रही हैं. वह दूसरे किसानों के साथ बीजों का आदान-प्रदान करते हैं. जब वह अपने बीज किसी दूसरे किसान को देते हैं तो बदले में उन्हें भी धान की एक नई किस्म मिलती है. वेणु के संग्रह में भारत के अन्य राज्यों से प्राप्त पारंपरिक बीज और किस्में शामिल भी हैं.
पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं
वेणु की खेती की खासियत है उनका जैविक तरीका. वेणु पूरी तरह से जैविक खेती करते हैं. उनके खेतों में रासायनिक उर्वरकों के लिए कोई जगह नहीं है. वह कहते हैं कि जैविक तरीके से उगाए गए धान की भूसी में औषधीय गुण होते हैं. इसलिए वे खुद धान पीसते हैं लेकिन भूसी नहीं हटाते, क्योंकि उनका मानना है भूसी में पोषण होता है.
शीर्ष किसान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है
वेणु खेती के लिए जमीन लीज पर लेते हैं और पंप, उर्वरक जैसे सभी खर्च खुद वहन करते हैं. रासायनिक उर्वरकों की तुलना में जैविक खेती महंगी पड़ती है. फिर भी, वेणु का हौसला कम नहीं हुआ है. थिक्कोडी कृषि भवन ने उन्हें शीर्ष किसान के रूप में सम्मानित किया है. वेणु न केवल खेती करते हैं, बल्कि अपने ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाने में भी विश्वास रखते हैं. वह नियमित रूप से स्कूली बच्चों को अपने खेतों में बुलाते हैं और उन्हें खेती के बारे में सिखाते हैं.
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