किसान वर्षों से अपने पशुओं के लिए अलग-अलग तरह का चारा उगाते और खिलाते आए हैं. इसका मुख्य उद्देश्य होता है कि पशु स्वस्थ रहें और दूध उत्पादन में वृद्धि हो. लेकिन हर साल नई बुआई, चारे की गुणवत्ता और कीटों से लड़ना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती रही है. ऐसे में काली नेपियर घास (Black Napier Grass) एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरी है, जो पशुपालन को आसान और लाभदायक बना रही है.
काली नेपियर घास एक खास प्रकार की चारा घास है जिसे एक बार लगाने के बाद 5 से 6 साल तक बार-बार काटकर उपयोग में लाया जा सकता है. यह घास कहीं भी आसानी से उगाई जा सकती है – खेतों में, घर के पीछे, या बागों में. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह तेजी से बढ़ती है और इसे पशु बहुत चाव से खाते हैं.
काली नेपियर घास में प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. यह घास न केवल दूध उत्पादन बढ़ाती है, बल्कि पशुओं की प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत बनाती है. डॉक्टर कुशवाहा के अनुसार, इसमें ऐंठो साइनिंग (Anthocyanin) अधिक होता है जो रोगों से लड़ने की शक्ति देता है.
अन्य घासों की तुलना में काली नेपियर घास में कीट और फफूंदी का खतरा नहीं होता. इससे किसान बार-बार कीटनाशकों का उपयोग करने से बच जाते हैं. यह घास काफी नरम होती है, जिसे पशु आसानी से चबाकर पचा सकते हैं. इसे खाने से पेट की समस्या और त्वचा से जुड़ी बीमारियां भी कम होती हैं.
काली नेपियर घास के उपयोग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. दूध उत्पादन बढ़ने से बाजार में बेहतर दाम मिलते हैं, और पशु भी लंबे समय तक स्वस्थ रहते हैं. साथ ही बार-बार बुआई की जरूरत न होने के कारण किसानों की मेहनत और लागत दोनों में कमी आती है.
कुल मिलाकर, काली नेपियर घास पशुपालन करने वाले किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है. यह घास न केवल पशुओं की सेहत को बेहतर बनाती है, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी मदद करती है. यदि आप भी पशुपालन करते हैं, तो काली नेपियर घास को एक बार जरूर आज़माएं- यह एक लंबे समय तक चलने वाला और फायदेमंद विकल्प है.
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