आज के समय में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या बन गया है, जिसका सीधा प्रभाव फसल उत्पादन पर पड़ता है. बदलते मौसम की परिस्थितियों, तापमान में वृद्धि, अनियमित वर्षा और सूखे जैसी स्थितियों ने कृषि को अस्थिर कर दिया है. इन प्रभावों के चलते किसानों को फसल उत्पादन में कमी, फसल हानि और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है. जलवायु परिवर्तन के चलते कुछ फसलों की उपज में कमी आ सकती है, जिससे देश की खाद्य सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ( ICAR) ने जलवायु परिवर्तन को देखते हुए आलू की तीन जलवायु अनुकूल किस्में विकसित की हैं, जिन्हें 11 अगस्त 2024 को पूसा, दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में रिलीज किया गया. ये किस्में देश के किसानों के लिए विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में भी अच्छी उपज देती हैं और किसानों को बदलते मौसम के बावजूद स्थिर और अच्छी पैदावार सुनिश्चित करती हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित आलू की जलवायु अनुकूल किस्मों के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि ये किस्में विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में अधिक उत्पादन देती हैं. इसके अलावा, जलवायु अनुकूल किस्में आमतौर पर बीमारियों के प्रति बेहतर प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं. ऐसी किस्में विपरीत परिस्थितियों में अच्छी भंडारण क्षमता रखती हैं, जिससे किसान उन्हें लंबे समय तक संरक्षित कर सकते हैं. ये किस्में गर्मी सहनशील होती हैं औ हूपर बर्न जैसी समस्याओं से प्रभावित नहीं होतीं. जलवायु अनुकूल फसल किस्में कम पानी की स्थिति में भी अच्छा उत्पादन देती हैं, जिससे किसानों को सूखे जैसी परिस्थितियों में भी नुकसान नहीं होता है. ये किस्में किसानों को उच्च उत्पादन और गुणवत्ता प्रदान करती हैं, जिससे उनकी आय में वृद्धि होती है और आर्थिक स्थिरता बनी रहती है.
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कुफरी चिप्सोना-5 आलू की जलवायु अनुकूल किस्म है, जिसे ICAR-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में अधिक उत्पादन देने वाली है. यह 90-100 दिनों में तैयार होती है और इसका उत्पादन 35 टन प्रत् हेक्टेयर तक हो सकता है. इस किस्म के कंद सफेद क्रीम रंग के अंडाकार होते हैं और इसका गूदा क्रीम रंग का होता है. 'कुफरी चिप्सोना-5' किस्म में देर से झुलसा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक क्षमता होती है. इस किस्म में भंडारण क्षमता अच्छी होती है और यह चिप्स बनाने के लिए भी उपयुक्त है. इसे हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लिए अनुशंसित किया गया है.
आलू की कुफरी जमुनिया एक अंडाकार आकार की जलवायु अनुकूल नई किस्म है, जिसे ICAR-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के लिए अनुशंसित है. यह किस्म 90-100 दिनों में 32 से 35 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है और भोजन के लिए उपयुक्त है. इसमें अच्छी भंडारण क्षमता होती है. इस किस्म की खेती करने से जलवायु परिवर्तन के दौर में बेहतर उत्पादन मिलेगा जिससे आलू की उपज में स्थिरता बनी रहेगी.
कुफरी भास्कर ICAR-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश द्वारा विकसित एक अच्छी उत्पादन क्षमता वाली आलू की जलवायु अनुकूल किस्म है, जो अगेती बुवाई के लिए हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों और उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ के मुख्य बुवाई क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. यह किस्म गर्मी सहनशील है और कण और हूपर बर्न के प्रति सहनशीलता रखती है. यह 85-90 दिनों में तैयार होती है और इसका उत्पादन 30-35 टन प्रति हेक्टेयर तक हो सकता है. इसके आलू के छिलके सफेद क्रीम रंग के और आकार में अंडाकार होते हैं और इसका गूदा भी क्रीम रंग का होता है.
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आज के दौर में बदलते जलवायु के कारण फसल उत्पादन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए जलवायु अनुकूल फसल किस्मों का विकास अत्यंत अहम हो गया है. आलू, जो कि देश के आहार का मुख्य हिस्सा है, इसकी पैदावार और गुणवत्ता जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करती है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा आलू की तीन जलवायु अनुकूल किस्मों का विकास गया है क्योकि ये किस्में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में बेहतर उत्पादन देने के साथ-साथ फसल की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती हैं.
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