पारंपरिक खेती के मुकाबले किसान अब बागवानी फसलों की खेती करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. खास कर फूलों की खेती में लोगों का रुझान कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है, क्योंकि इसमें लागत के मुकाबले ज्यादा कमाई भी है. यही वजह है कि ओडिशा के कंधमाल जिले में आदिवासी समुदाय के लोग धान-गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों के बजाए गेदें के फूल की खेती कर रहे हैं. वहीं, कंधमाल प्रशासन भी इन आदिवासी किसानों को आर्थिक रूप से सहयोग और प्रोत्साहित कर रहा है.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, 'मुख्यमंत्री जनजाति जीविका मिशन' के तहत 30 पंचायतों में 100 एकड़ भूमि पर गेंदे के फूल की खेती शुरू की गई है. यह कंधमाल में गेंदा की खेती का एक बड़ा विस्तार है, जो पहले कुछ क्षेत्रों तक सीमित था. सूत्रों ने बताया कि कंधमाल कलेक्टर अमृत रुतुराज ने जलवायु परिस्थितियों और खासकर त्योहारों के दौरान गेंदा की मांग का अध्ययन करने के बाद खेती की योजना पर जोर दिया.
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एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (आईटीडीए), फूलबनी की परियोजना प्रशासक देवजानी भुइयां ने कहा कि हमने इस योजना के तहत इस साल फूलबनी (35 एकड़), फिरिंगिया (45 एकड़) और खजुरीपाड़ा (20 एकड़) सहित तीन ब्लॉकों में गेंदा की खेती करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि आईटीडीए ने किसानों को अफ्रीकी और मैक्सिकन गेंदा के उच्च उपज वाले बीज मुफ्त में उपलब्ध कराए हैं. उन्होंने कहा कि अतिरिक्त कृषि इनपुट और तकनीकी सहायता भी प्रदान की गई. खास बात यह है कि दो रंग लाल और पीले कलर के फूल वाले पौधे लगाए गए हैं.
सूत्रों ने बताया कि आईटीडीए इस परियोजना पर करीब 25 लाख रुपए खर्च करेगा. आईटीडीए फूलबनी के परियोजना प्रबंधक पी मुरली मोहन ने बताया कि 90 महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्य और करीब 40 किसान पौधरोपण अभियान में शामिल हैं, जो अच्छी तरह से आगे बढ़ रहा है और सितंबर के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है. उन्होंने बताया कि विशेषज्ञों ने किसानों को गेंदा की खेती का प्रशिक्षण दिया है. मोहन ने बताया कि दीवाली से पहले फूलों की कटाई होने की उम्मीद है और यह प्रक्रिया जनवरी के पहले सप्ताह तक जारी रहेगी. त्योहारी सीजन के दौरान गेंदा बेचने के लिए आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, भुवनेश्वर और बरहामपुर के फूल व्यापारियों के साथ चर्चा शुरू हो चुकी है.
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