Apple Import: सेब के आयात पर कृषि मंत्री ने किया बड़ा ऐलान Apple Import: भारत-अमेरिका के बीच ट्रेड डील फिलहाल किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. लेकिन इस दौरान ही केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़ा ऐलान कर दिया है. उन्होंने कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार आयातित सेबों को और महंगा बनाने और घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए टैरिफ या ड्यूटीज में बदलाव करेगी. उन्होंने यह बात शुक्रवार को उस समय कही जब वह आज जम्मू-कश्मीर में छात्रों, किसानों और वैज्ञानिकों के एक समूह को संबोधित कर रहे थे.
जम्मू-कश्मीर भारत में सेब व्यापार का केंद्र है. जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश, घरेलू स्तर पर उगाए जाने वाले करीब 2.4-2.5 मिलियन टन सेबों का करीब 97 प्रतिशत हिस्सा उगात हैं. भारत के साथ जारी ट्रेड डील वार्ता में अमेरिका अपने कृषि उत्पादों के लिए घरेलू बाजार तक और ज्यादा पहुंच के लिए दबाव बना रहा है. सेब भी उसकी मांग का एक अहम हिस्सा है. भारत अभी वर्तमान में अमेरिका से आयातित सेबों पर करीब 50 प्रतिशत शुल्क लगाता है. यह आंकड़ा कुछ साल पहले और भी ज्यादा थी. अमेरिका भारतीय बाजार में आसान पहुंच के लिए शुल्कों में कमी चाहता है.
चौहान ने अपने संबोधन में कहा, 'हमें विदेश से फल क्यों लाने हैं? हम जम्मू-कश्मीर को भारत का बागवानी केंद्र बना सकते हैं.' उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को भारत में उगाए जाने वाले सेबों की पैदावार में सुधार लाने के मकाद से और ज्यादा रिसर्च करने के निर्देश जारी किए गए हैं. चौहान ने यह भी कहा कि वह रेल मंत्रालय से इस बात पर चर्चा करेंगे कि जम्मू-कश्मीर से सेबों को भारत के सभी हिस्सों में कुशलतापूर्वक पहुंचाया जाए.
हाल ही में जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों ने अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलकर केंद्र सरकार से संपर्क किया था. उनका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि व्यापार समझौते के तहत अमेरिका से आयातित सेबों के टैरिफ में कोई गलत बदलाव न किया जाए. वहीं भारतीय सेब किसान संघ (AFFI) की तरफ से कुछ दिनों पहले इससे जुड़ा एक अहम बयान जारी किया गया था.
इसमें कहा गया था, '2001 से भारत का सेब आयात 200,000 टन से बढ़कर 600,000 टन हो गया है. साथ ही घरेलू उत्पादन 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 22.5 प्रतिशत हो गया है. अमेरिका और बाकी देशों से आने वाले विदेशी सेब हमारे घरेलू फलों को पछाड़ रहे हैं. इसकी वजह से 800,000 से ज्यादा सेब उत्पादक परिवारों की आजीविका खतरे में पड़ गई है. यह संगठन जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के सेब उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करता है.
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