अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने कहा है कि उच्च क्षेत्र और उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि इस वर्ष देश में सरसों के उत्पादन को बढ़ा सकती है. पिछले कई वर्षों से भारत खाद्य तेल के आयात पर निर्भर हो गया है. इसी तरह अगर अन्य तिलहन का उत्पादन बढ़ता है तो हमें तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे. संगठन का दावा है कि यदि मौसम अगले एक महीने तक अनुकूल बना रहा तो उत्पादन पिछले वर्ष की तुलना में 6 प्रतिशत अधिक बढ़कर लगभग 125 लाख टन तक पहुंच सकता है. फसल वर्ष 2022-23 में 6 जनवरी तक 95.34 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हो चुकी है जो अब तक की सबसे अधिक है.
ठक्कर का कहना है कि अभी तक सरसों की फसल बहुत अच्छी है. कहीं से भी किसी बड़े कीट हमले की कोई खबर नहीं है. जहां पर जल्दी बुवाई हुई थी वहां पर फूल और फली बनने की अवस्था चल रही है. उम्मीद है कि पहली फसल समय से आनी शुरू हो जाएगी. उन्होंने कहा कि किसानों को सही दाम मिलेगा तो फसल की बुवाई करेंगे और भारत धीरे-धीरे खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर हो जाएगा. सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक पीके राय ने भी कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में कम से कम 125 लाख टन सरसों उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक 2021-22 में सरकार ने 101.97 लाख टन सरसों उत्पादन का लक्ष्य रखा था, जबकि चतुर्थ अग्रिम अनुमान में यह बढ़कर 117.46 हो गया. सरसों का दाम, बुवाई का रकबा, उत्पादकता और उत्पादन सब बढ़ रहा है. भारत में सरसों का सामान्य क्षेत्र 63.46 लाख हेक्टेयर ही माना जाता है लेकिन इस साल अब तक 95.34 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है. यानी 31.88 लाख हेक्टेयर अधिक. पिछले साल 6 जनवरी तक देश में 88.42 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी. अभी इस साल में सरसों की बुवाई के कुल क्षेत्र का अंतिम डाटा आना बाकी है.
ठक्कर का कहना है कि किसान अच्छे भाव के कारण सरसों की ओर रुख कर रहे हैं. पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम भाव मिल रहा था इसलिए किसान इसकी खेती के प्रति दिलचस्पी नहीं दिखा रहे थे. किसानों को किसी भी तरह से अच्छा दाम मिलना जारी रखना चाहिए, ताकि खाद्य तेलों के मामले में हमारी विदेशी निर्भरता कम हो. बता दें कि हम खाद्य तेलों के आयात पर सालाना लगभग एक लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं. हमारी नीतियां ठीक होंगी तो यह पैसा दूसरे देशों के किसानों को मिलने की जगह अपने देश के किसानों को मिलेगा.
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