तिलहन की मुख्य फसल सरसों का दाम (Mustard Price) न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से नीचे आ गया है. रबी मार्केटिंग सीजन (RMS) 2023-24 के लिए इसका एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. जबकि किसान इसे 4500 रुपये के रेट पर बेचने के लिए मजबूर हैं. पिछले साल यानी आरएमएस 2022-23 में इसका दाम 7500 रुपये प्रति क्विंटल था. मतलब एक ही वर्ष में प्रति क्विंटल पर किसानों को लगभग 3000 रुपये का नुकसान हो रहा है. भारत खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है. हम करीब 56 फीसदी खाने का तेल इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना आदि से मंगाते हैं. यानी अपने यहां मांग ज्यादा है और उत्पादन व सप्लाई कम. ऐसे में सरसों का दाम बढ़ने की बजाय इतना कम कैसे हो गया? यह बड़ा सवाल है.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का आरोप है कि केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से किसानों की जेब पर बड़ा झटका लग रहा है. दरअसल, केंद्र सरकार ने खाद्य तेल आयात को प्रमोट करने वाली पॉलिसी बना दी है. जिसका असर अब सीधे तौर पर किसानों की आय पर पड़ रहा है. जो पैसा अपने देश के किसानों को मिलना चाहिए वह दूसरे देशों में जा रहा है. साल 2020 तक खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी 45 फीसदी थी. पाम आयल पर अतिरिक्त 5 फीसदी सुरक्षा शुल्क भी था, जिसे अक्टूबर 2021 को जीरो कर दिया गया. इसलिए आयात सस्ता हो गया. व्यापारियों ने आयात पर जोर दिया और उसकी मार अब भारतीय किसानों पर पड़ रही है. इससे तिलहन को बढ़ावा देने की मुहिम को झटका लगेगा. किसानों को निराश करके देश कैसे खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बन पाएगा?
इसे भी पढ़ें: Wheat Procurement: क्या एफसीआई ने अब तक इसलिए जारी नहीं किया गेहूं खरीद का एक्शन प्लान?
रामपाल जाट का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है ताकि खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़े और भारतीय किसानों को राहत मिले. सरसों के दाम जिस अनुपात में गिरे हैं सरसों का तेल उस अनुपात में कम नहीं हुआ, बल्कि तेल के भाव लगभग स्थिर बने हुए हैं. किसानों को तो भाव गिरने से अपनी उपज के कम दाम प्राप्त हो रहे हैं, जबकि उपभोक्ताओं को खाने के तेल के दाम लगभग उतने ही चुकाने पड़ रहे हैं. इसका मतलब सरसों के दाम गिरने का लाभ बिचौलियों को मिल रहा है. यह देश के किसानों एवं उपभोक्ताओं दोनों के साथ लूट से कम नहीं है. किसानों को सरसों का सही दाम दिलाने की मांग को लेकर 6 अप्रैल से दिल्ली में सरसों सत्याग्रह शुरू होगा. जिसमें 101 किसान सुबह 11 से शाम 4 बजे तक उपवास पर रहेंगे.
साल 2017-18 के दौरान भारत में सिर्फ 67.04 लाख हेक्टेयर में ही सरसों की खेती हुई थी. क्योंकि दाम एमएसपी से कम मिलता था. सरकारें सरसों खरीदने से परहेज करती थीं. लेकिन, किसानों को सरसों का अच्छा भाव मिलना शुरू हुआ तो उन्होंने इसकी खेती बढ़ा दी. साल 2021-22 में 91.44 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई.
रबी फसल सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई, जो 2021-22 के मुकाबले 6.77 लाख हेक्टेयर अधिक थी. ऐसे में इस बार केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 128.18 लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो अब तक की रिकॉर्ड पैदावार होगी. इसका उत्पादन 2021-22 की तुलना में 8.55 लाख टन अधिक है. पिछले साल 119.63 लाख टन सरसों पैदा हुई थी.
यह सफलता इसलिए मिली क्योंकि ओपन मार्केट में सरसों को एमएसपी से अधिक दाम मिला. उत्पादन में इतना उछाल देश के लिए बहुत अच्छा है. क्योंकि हम सालाना 1.4 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहे हैं. लेकिन, अगर इस साल किसानों को एमएसपी से कम दाम मिला तो एक बार फिर सरसों का रकबा कम हो जाएगा. ऐसे में खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर होने की मुहिम पूरी नहीं हो पाएगी. खाद्य तेलों की घरेलू खपत लगभग 250 लाख टन है, जबकि औसत उत्पादन केवल 112 लाख टन ही है. हालांकि, इस साल अधिक उत्पादन का अनुमान है.
किसान महापंचायत के मुताबिक भारत में खाद्य तेलों के आयात पर एक दशक में 7 लाख 60 हजार 500 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं. वर्ष 2021-22 में तो खाद्य तेल आयात पर हमने 1 लाख 41 हजार 500 करोड़ रुपये खर्च किए. इसके बाद भी सरकार आयात पर ही फोकस कर रही है. अच्छा होता कि सरकार अपने देश के किसानों को अच्छा दाम दिलाने वाली पॉलिसी बनाती तो भारत का यह पैसा दूसरे देशों को नहीं मिलता. अब किसान खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने की मांग उठा रहे हैं.
सरसों के दाम में इतनी गिरावट के पीछे जहां किसान आयात नीति को मुख्य वजह बता रहे हैं वहीं वो एमएसपी पर होने वाली खरीद की पॉलिसी पर भी सवाल उठा रहे हैं. जिसके तहत कुल सरसों उत्पादन में से 75 फीसदी उपज एमएसपी की खरीद परिधि से बाहर हो जाती है. यानी तिलहन फसलों की अधिकतम सरकारी खरीद कुल उत्पादन की सिर्फ 25 फीसदी ही हो सकती है. ऐसी नीति का किसान विरोध कर रहे हैं. एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल से अधिक खरीद नहीं करना तथा वर्ष भर में खरीद की अवधि अधिकतम 90 दिन रखने की वजह से भी किसानों को नुकसान हो रहा है.
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) के मुताबिक रबी फसल मौसम 2022-23 में सरसों उत्पादन पर किसानों को प्रति क्विंटल औसतन 2670 रुपये खर्च करना पड़ता है. इस पर 104 फीसदी की वृद्धि करके सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए 5450 रुपये प्रति क्विंटल की एमएसपी तय की हुई है. हालांकि सी-2 लागत 3740 रुपये प्रति क्विंटल है. किसान इसी लागत पर एमएसपी तय करने की मांग कर रहे हैं. इतनी लागत पर अगर अच्छा दाम नहीं मिला तो किसान निराश होकर इसकी खेती फिर कम कर देंगे.
इसे भी पढ़ें: कृषि क्षेत्र में कार्बन क्रेडिट कारोबार की एंट्री, कमाई के साथ-साथ अब ग्लोबल वार्मिंग भी कम करेंगे किसान
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today