पशुओं में प्रोटीन की सारी कमी दूर कर देता है ये चारा, बस 60 दिनों में हो जाता है तैयार

पशुओं में प्रोटीन की सारी कमी दूर कर देता है ये चारा, बस 60 दिनों में हो जाता है तैयार

लोबिया/चना भारत में उगाई जाने वाली सबसे लोकप्रिय फलीदार चारा फसलों में से एक है. चना मुख्य रूप से अंतर-फसल के रूप में उगाया जाता है, लेकिन इसे एकल फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है. इस फसल का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है. लोबिया एक तेजी से बढ़ने वाली फलीदार चारा है.

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पशुओं में प्रोटीन की सारी कमी दूर कर देता है ये चारा, बस 60 दिनों में हो जाता है तैयारपशुओं के लिए फायदेमंद है ये चारा

पशुओं में प्रोटीन की कमी के कारण कई तरह की समस्याएं एक साथ सामने आने लगती हैं. इन्हीं में से एक है दूध उत्पादन में कमी आना. जिससे किसानों और पशुपालकों को काफी नुकसान होता है. इस समस्या से निपटने के लिए किसान कई तरह की चीजें अपनाते हैं. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि उन्हें निराशा ही हाथ लगती है. इस समस्या को दूर करने के लिए किसान इस चारा का इस्तेमाल कर सकते हैं. आपको बता दें पशुओं में प्रोटीन की कमी को दूर करने के लिए इस चारे का इस्तेमाल कर सकते हैं. क्या है ये चारा और इसकी खासियत आइए जानते हैं.

क्या है इसकी खासियत

लोबिया/चना भारत में उगाई जाने वाली सबसे लोकप्रिय फलीदार चारा फसलों में से एक है. चना मुख्य रूप से अंतर-फसल के रूप में उगाया जाता है, लेकिन इसे एकल फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है. इस फसल का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है. लोबिया एक तेजी से बढ़ने वाली फलीदार चारा है. अत्यधिक पौष्टिक और सुपाच्य होने के कारण घास के साथ मिलाकर बोने पर इसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है. यह फसल खरपतवारों को नष्ट करके मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है. इसे खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाया जा सकता है.

इस चारे से बढ़ता है दूध उत्पादन

लोबिया एक प्रकार का हरा चारा है, जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. इसके साथ ही इसमें फास्फोरस और कैल्शियम भी अधिक मात्रा में पाया जाता है. यह पशुओं में दूध उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे की जाती है इसकी खेती.

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खेत का चुनाव और तैयारी

लोबिया की बुवाई के लिए बलुई दोमट मृदा अच्छी रहती है. बुवाई एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दो जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके कर सकते है.

खाद और उर्वरक

चने के लिए बुवाई से 15-20 दिन पहले 15-20 टन गोबर की खाद तथा 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन और 30-40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है.

उन्नत किस्में

HFC 42-1, IGFRIS-450, IGFRIS-457, EC 4216, FOS 1, CO 1, CO 10, कोहिनूर, बुंदेल लोबिया-1, बुंदेल लोबिया-2, UPC 5286, UPC 5287 और IGFRI 95-1.

बीज और बुवाई का तरीका

चने के लिए प्रति हेक्टेयर 40-50 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. यदि आप इसे अन्य फसलों के साथ अंतरवर्ती फसल के रूप में उगाना चाहते हैं तो बीज की मात्रा 15-20 किलोग्राम रखनी चाहिए. बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित करके बुवाई करें. पंक्तियों में बुवाई करना उचित रहता है. पंक्तियों के बीच 50-60 सेमी की दूरी रखें तथा पौधों के बीच की दूरी 10 सेमी होनी चाहिए. चना बोने के लिए जुलाई का महीना सबसे अच्छा है.

सिंचाई कटाई का तरीका

यदि समय-समय पर वर्षा होती रहे तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. यदि समय पर वर्षा न हो तथा फसल मुरझाने लगे तो सिंचाई कर देनी चाहिए. सामान्यतः हरे चारे की फसलों की कटाई 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था पर कर लेनी चाहिए. चना की फसल 60-90 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. चना से प्रति हेक्टेयर 250-350 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता है.

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